शुक्रवार, 29 अगस्त 2025

🍇 अंगूर की बेलों से बना बायोप्लास्टिक: पर्यावरण और किसानों के लिए नई उम्मीद

🍇अंगूर की बेलों से बना बायोप्लास्टिक: पर्यावरण और किसानों के लिए नई उम्मीद


Source: @Science Acumen by Linkedin  

प्लास्टिक प्रदूषण आज वैश्विक संकट बन चुका है। पेट्रोलियम-आधारित पारंपरिक प्लास्टिक सदियों तक नष्ट नहीं होते और माइक्रोप्लास्टिक का रूप लेकर हमारे पारिस्थितिक तंत्र व शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इसी बीच साउथ डकोटा स्टेट यूनिवर्सिटी (South Dakota State University – SDSU) के वैज्ञानिकों ने अंगूर की बेलों (grapevines) के कचरे से एक ऐसा जैव-अपघटित (biodegradable) विकल्प विकसित किया है जो केवल 17 दिनों में मिट्टी में पूरी तरह विलीन हो जाता है

“Waste is only waste if we waste it.” – Will.i.am


शोध क्या कहता है?

  • अंगूर की बेलों में लगभग 35% सेल्यूलोज़ होता है।

  • शोधकर्ताओं ने क्षारीय और विरंजन (alkaline & bleaching) प्रक्रियाओं से सेल्यूलोज़ निकाला।

  • इस सेल्यूलोज़ को ज़िंक क्लोराइड, कैल्शियम आयन और ग्लिसरॉल के साथ प्रोसेस करके पारदर्शी व लचीली फिल्में बनाई गईं।

  • इन फिल्मों की तन्य शक्ति (Tensile Strength) 15.42–18.20 MPa पाई गई, जो पारंपरिक कम घनत्व वाले पॉलीइथाइलीन बैग से अधिक है।

  • लगभग 84% पारदर्शिता होने के कारण ये फूड पैकेजिंग के लिए आदर्श हो सकती हैं।

  • मिट्टी (24% नमी वाली) में यह फिल्म 17 दिनों में पूरी तरह अपघटित हो जाती है और कोई हानिकारक अवशेष नहीं छोड़ती

“Innovation is taking two things that already exist and putting them together in a new way.” – Tom Freston

संभावित लाभ

  1. प्लास्टिक प्रदूषण में कमी माइक्रोप्लास्टिक की समस्या का समाधान।

  2. किसानों के लिए नया अवसर अंगूर की छंटाई से निकलने वाला कचरा अब अतिरिक्त आय का स्रोत बन सकता है।

  3. सस्टेनेबल अपशिष्ट प्रबंधन कृषि उप-उत्पादों का प्रभावी उपयोग।

  4. उपभोक्ता और नियामक मांगपर्यावरण-अनुकूल पैकेजिंग की बढ़ती ज़रूरत को पूरा करना।

“Sustainability is not a choice anymore, it is a necessity.”

चुनौतियाँ और अगला कदम

  • अभी तक यह फिल्म खाद्य संपर्क (food-contact safety) के मानकों पर परखी नहीं गई है।

  • विषाक्तता (toxicity) और migration tests की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह खाद्य पैकेजिंग के लिए पूरी तरह सुरक्षित है।

  • व्यावसायिक पैमाने पर उत्पादन के लिए तकनीकी और आर्थिक मॉडल विकसित करने की ज़रूरत होगी।

आइए इसे डिटेल्स में समझने का प्रयास करते हैं -

साउथ डकोटा स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अंगूर की बेलों के कचरे का उपयोग करके पारंपरिक प्लास्टिक का एक जैव-निम्नीकरणीय विकल्प विकसित किया है। यह नवाचार अंगूर के बागों की छंटाई के कचरे—खासकर अंगूर की बेलों—को पर्यावरण-अनुकूल पैकेजिंग फिल्मों में बदलकर वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या का समाधान करता है, जो केवल 17 दिनों में विघटित हो जाती हैं।

अंगूर की बेलों की, जिन्हें आमतौर पर छंटाई के बाद फेंक दिया जाता है या जला दिया जाता है, लगभग 35% सेल्यूलोज़ होती है, जो पौधों की कोशिका भित्ति में पाया जाने वाला एक मज़बूत और प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला बायोपॉलिमर है। टीम क्षारीय और विरंजन उपचारों के माध्यम से सेल्यूलोज़ निकालती है, फिर इसे ज़िंक क्लोराइड, कैल्शियम आयनों और ग्लिसरॉल के साथ संसाधित करके पारदर्शी, लचीली फिल्में बनाती है। इन फिल्मों की तन्य शक्ति 15.42 से 18.20 MPa है, जो पारंपरिक कम घनत्व वाले पॉलीइथाइलीन प्लास्टिक बैग से कहीं अधिक है, और 84% पारदर्शिता प्रदान करती है, जो उन्हें खाद्य पैकेजिंग के लिए आदर्श बनाती है जहाँ दृश्यता महत्वपूर्ण है।

पेट्रोलियम-आधारित प्लास्टिक के विपरीत, जो सदियों तक बने रहते हैं और ग्रेट पैसिफिक गार्बेज पैच और माइक्रोप्लास्टिक संदूषण जैसी समस्याओं में योगदान करते हैं, ये सेल्यूलोज़-आधारित फ़िल्में 24% नमी वाली मिट्टी में 17 दिनों के भीतर पूरी तरह से जैव-अपघटित हो जाती हैं और कोई हानिकारक अवशेष नहीं छोड़तीं। यह तीव्र अपघटन माइक्रोप्लास्टिक से जुड़ी पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का समाधान करता है, जो पारिस्थितिक तंत्र और मानव शरीर में घुसपैठ करते हैं।

यह नवाचार न केवल प्लास्टिक कचरे को कम करता है, बल्कि कृषि उप-उत्पादों का मूल्य भी बढ़ाता है, जिससे किसानों के लिए संभावित रूप से नए राजस्व स्रोत बन सकते हैं। अंगूर के बागों से निकलने वाले कचरे का पुन: उपयोग करके, यह दृष्टिकोण स्थायी अपशिष्ट प्रबंधन का समर्थन करता है और पर्यावरण-अनुकूल सामग्रियों की बढ़ती नियामक और उपभोक्ता मांग के अनुरूप है। यह शोध भविष्य में खाद्य पैकेजिंग उद्योग के लिए क्रांतिकारी साबित हो सकता है, बशर्ते यह सुरक्षा मानकों पर खरा उतरे। क्योंकि इससे न केवल पर्यावरण को राहत मिलेगी, बल्कि किसानों को भी आर्थिक लाभ होगा। यह सफलता अन्य कृषि अपशिष्टों के लिए व्यापक अनुप्रयोगों का सुझाव देती है, जिससे स्केलेबल, कम्पोस्टेबल पैकेजिंग समाधानों का मार्ग प्रशस्त होता है जो एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक के पर्यावरणीय प्रभाव को काफी कम कर सकते हैं।

रविवार, 24 अगस्त 2025

“मानव यौन व्यवहार की जैव-भौतिकीय और आनुवंशिक भूमिका: आनंद से जीन स्थानांतरण तक” (“Biophysical and genetic role of human sexual behavior: from pleasure to gene transfer”)

“मानव यौन व्यवहार की जैव-भौतिकीय और आनुवंशिक भूमिका: आनंद से जीन स्थानांतरण तक”

“Biophysical and genetic role of human sexual behavior: from pleasure to gene transfer”

“Biology gave us sex; evolution made it pleasurable; society gave it meaning.”


जहां तक मै समझता हूं कि मानव सभ्यता के विकसित होने के साथ ही अपनी आबादी की  बढ़ोत्तरी एवं वर्चस्व स्थापित करने की होड़ में अधिक संतानें पैदा करने एवं संपत्ति और कृषि कार्यों में सहयोग क लिए बहुपत्नी रखने की प्रथा जैसी थी। यह उस समय की मांग भी थी क्योंकि जन्मदर कम थी और मृत्यु दर अधिक होने से ज्यादा बच्चे पैदा करते थे। हालांकि और भी कारण थे परंतु वंश बढ़ाने के लिए जरूरी सहवास या संभोग हमेशा एक आवश्यक जैव-वैज्ञानिक प्रक्रिया रही है। यह सभी जीवित जीवों में अपनी आबादी बढ़ाने तथा अपने Genes को बिखेरने के लिए जरूरी मांग और प्रक्रिया रही है। हालांकि सभी जीवों में जनन प्रक्रिया का स्वरूप अलग अलग रहा है और मानव में इस प्रक्रिया की चर्चा इसलिए होती है कि वह इस संसार का सबसे बुद्धिमान प्राणी माना जाता है, जिसने पूरी दुनियाँ को अपनी बुद्धिमता से नियंत्रित किया हुआ है, सिवाय प्राकृतिक आपदाओं को रोकने के, कुछ नियंत्रण जरूर हुआ है इस दिशा में। 

मनुष्यों के बीच सहवास (SEX) एक प्रकार के "आनंद की अनुभूति के साथ साथ दुनियाँ में सबसे महत्वपूर्ण अपने Genes को बिखेरना है"। हालांकि सेक्स के बीच आनंद की अनुभूति हमारे जननांगों के आकार की विशेषता एवं उचित प्राकृतिक स्नेहक (Proper Lubrication) की बजह से है। जिसके बाद स्खलित सीमेन के माध्यम से Genes का स्थानांतरण अगली पीढ़ी में होता है। जिसे अक्सर हम वंश परंपरा को आगे बढ़ाना भी कहते हैं, हालांकि यह सभी जीवों में अपने वंश को बढ़ाने के लिए जरूरी प्रक्रिया है। इस पर हम यहाँ शोधपरक चर्चा उदाहरण सहित करने का प्रयास करेंगे। यह पूरी दुनियाँ का सबसे चर्चित और कुछ मामलों में विवादास्पद इशू भी है, जो कि सही तथ्यों के साथ नहीं रखने के कारण अक्सर विवादों में ही रहा है। यह जीव-वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर जैविक विज्ञान (Biological Science), मानव विकास (Human Evolution), और न्यूरोसाइंस (Neuroscience) से जुड़ा हुआ विषय है। जो कि एक सामाजिक उपयोगी एवं नेतिकता तथा जनन प्रक्रिया के लिए जरूरी चीजों में से एक है, जिस पर स्वस्थ तरीकों से बात करने का प्रयास किया जाएगा।       

“Sexual pleasure is nature’s reward for reproduction, but
culture has transformed it into a language of intimacy.

यहाँ हम इसे कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं के आधार पर समझने का प्रयास करेंगे:- 

  • “आनंद केवल क्षणिक नहीं, बल्कि पीढ़ियों तक जीनों के रूप में अमरता का साधन है।”

1. सेक्स का मूल उद्देश्य (Evolutionary Perspective)

  • चार्ल्स डार्विन की "Sexual Selection" Theory (1871) के अनुसार, सेक्स केवल प्रजनन का साधन नहीं है, बल्कि जीन को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का प्राकृतिक तरीका है।

  • जैविक दृष्टि से सेक्स का सबसे बड़ा उद्देश्य है:

    1. Genetic Variation (जैविक विविधता) पैदा करना।

    2. Genes का Survival सुनिश्चित करना।

    3. Species Continuity (प्रजाति की निरंतरता) बनाए रखना।

👉 उदाहरण:
मानव में DNA का केवल आधा हिस्सा पिता से और आधा हिस्सा माँ से मिलता है। यह मिश्रण (Genetic Recombination) आने वाली पीढ़ी को नए गुण देता है, जिससे वह बीमारियों और पर्यावरणीय चुनौतियों के प्रति अधिक मजबूत हो सकती है।


2. आनंद की अनुभूति क्यों होती है? (Neurobiology of Pleasure)

  • सेक्स में आनंद की अनुभूति डोपामिन, ऑक्सीटोसिन, और एंडोर्फिन जैसे "हैप्पी हार्मोन" के कारण होती है।

  • Neuroscientific शोध (2005, Rutgers University, USA) में पाया गया कि Orgasm के दौरान मस्तिष्क के reward centers (nucleus accumbens, ventral tegmental area) बहुत सक्रिय हो जाते हैं।

  • इसका उद्देश्य केवल "fun" नहीं है, बल्कि:

    • इंसानों को सेक्स की ओर आकर्षित रखना।

    • ताकि वे बार-बार संभोग करें और प्रजनन की संभावना बढ़े।

👉 उदाहरण:
यदि सेक्स में आनंद न होता, तो मनुष्य बार-बार संभोग के लिए प्रेरित न होते और species survival खतरे में पड़ जाता।


3. जननांगों की संरचना और आनंद (Anatomical Adaptations)

  • पुरुष जननांग (Penis) का आकार और संरचना मानव विकास का परिणाम है।

    • Gallup & Burch (2004, Evolutionary Psychology) के अनुसार Penis का आकार और bell-shaped glans (शीर्ष भाग) पिछले Male sperm को बाहर निकालने (sperm competition) और अपने genes को प्राथमिकता देने के लिए विकसित हुआ।

    • साथ ही friction (घर्षण) से आनंद उत्पन्न करता है। 

  • महिला जननांग (Vagina & Clitoris):

    • Proper lubrication (जो Bartholin’s glands और vaginal epithelium से आता है) friction को संतुलित करता है।

    • योनि की अंदरूनी दीवारें mucosal lining से ढकी होती हैं, जिनमें nerves की बहुतायत होती है।

    • जब पेनिस glans और shaft के साथ आगे-पीछे होता है, तो ये lining mechanoreceptors और nerve endings को stimulate करती है।

    • Clitoris विशेष रूप से केवल आनंद के लिए विकसित संरचना है (Sherfey, 1966; O’Connell et al., 2005)।

    • चरमोत्कर्ष (Orgasm) महिलाओं में sperm retention (वीर्य रोकने) और partner bonding बढ़ाने में सहायक माना जाता है।

    • परिणाम स्वरूप पुरुष को orgasm और semen ejaculation मिलता है। और महिला में भी clitoral और vaginal stimulation से orgasm हो सकता है। 

  • उदाहरण: Bonobos (एक प्रकार का प्राइमेट) में भी clitoral stimulation और सेक्स का उपयोग social bonding और conflict resolution के लिए होता है।


4. सीमेन स्खलन (Semen-Ejaculation) और जीन का स्थानांतरण ( Gene Transfer)

  • Semen केवल शुक्राणु (sperm cells) नहीं होता, इसमें fructose, enzymes, prostaglandins, proteins होते हैं जो sperm को जीवित रखते हैं और female reproductive tract में आगे बढ़ने में मदद करते हैं। 

  • Orgasm के बाद ejaculation में semen बाहर आता है। प्रत्येक स्खलन में औसतन 200–300 मिलियन sperm निकलते हैं, यह sperm महिला की योनि से uterus और फिर fallopian tube तक पहुँचते हैं। परंतु केवल एक sperm अंडाणु (egg) तक पहुँचकर fertilization करता है। → Pregnancy → Genes का स्थानांतरण।

  • इस प्रक्रिया से पिता का DNA अगली पीढ़ी में प्रवेश करता है।

👉 उदाहरण:
2015 के एक Genetic Study (Nature) में पाया गया कि एक sperm में लगभग 37.2 MB genetic data होता है। इसका अर्थ है कि एक स्खलन में इतना genetic material होता है जितना हजारों किताबों में लिखा जा सकता है।


5 . आनंद की जैव-भौतिक रासायनिकी (Physico-Chemical Biology of Pleasure)

संभोग के दौरान यह पूरी प्रक्रिया भौतिक (Physical) और रासायनिक (Chemical) दोनों कारकों का परिणाम है:

भौतिक पहलू (Physical Aspect):

  • घर्षण (Friction) → Nerve endings सक्रिय → मस्तिष्क को electrical signals।

  • Proper lubrication → आरामदायक अनुभव, injury से बचाव।

रासायनिक पहलू (Chemical Aspect):

  • Dopamine (Reward hormone) → आनंद और motivation।

  • Oxytocin (Love hormone) → Bonding और trust।

  • Endorphins → Pain relief और खुशी।

  • Prolactin → Orgasm के बाद संतुष्टि की अनुभूति।


6 . सेक्स का सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू

  • इंसानों में सेक्स केवल प्रजनन (reproduction) के लिए नहीं, बल्कि:

    1. संबंध (Bonding) मजबूत करने के लिए।

    2. सामाजिक स्थिरता (Social Stability) बनाए रखने के लिए।

  • Oxytocin ("love hormone") का स्तर सेक्स के दौरान और बाद में बढ़ता है, जो trust, intimacy और long-term relationship को मजबूत करता है।

👉 उदाहरण:
गोटमैन इंस्टीट्यूट (USA) के शोध के अनुसार, सेक्सुअल संतुष्टि वैवाहिक संबंधों में long-term stability का मुख्य कारण है।


निष्कर्ष:-

मानव यौन-आनंद केवल शारीरिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि जैविक, रासायनिक और मनोवैज्ञानिक समन्वय का परिणाम है। यह प्रक्रिया न सिर्फ जीन स्थानांतरण और प्रजनन का साधन है, बल्कि मानव संबंधों, भावनाओं और सामाजिक संरचना को आकार देने वाला भी है।

ग्लान्स पेनिस और योनि की आंतरिक संरचना के बीच उत्पन्न घर्षण से उत्पन्न संवेदनाएँ मस्तिष्क में डोपामिन, ऑक्सीटोसिन और एंडोर्फिन जैसे न्यूरोकेमिकल्स के स्राव को सक्रिय करती हैं। यही वह आधार है जो आनंद, निकटता और संतुष्टि की अनुभूति कराता है।

सहवास (संभोग) केवल आनंद का अनुभव नहीं, बल्कि एक सुव्यवस्थित Physico-Chemical & Biological Process है। जो कि Friction के साथ stimulation होने से आनंद पैदा करता है, और वीर्य स्खलन के जरिए जीन अगली पीढ़ी तक पहुँचता है। जहाँ स्खलन और गर्भधारण जैविक निरंतरता सुनिश्चित करते हैं, वहीं आनंद (orgasm) एक ऐसा इनाम (reward mechanism) है जो जीवित प्राणियों को इस प्रक्रिया की ओर प्रेरित करता है। यह एक ऐसा अद्भुत मेल है जहाँ शरीर (body), मन (mind) और जीन (genes) तीनों एक साथ कार्य करते हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि विज्ञान यह दर्शाता है कि यौन-क्रिया का आनंद एक प्राकृतिक जैव-रासायनिक रणनीति है, जो प्रजनन की सफलता सुनिश्चित करने और साथी के बीच बंधन को मजबूत करने के लिए विकसित हुआ। यह आनंद केवल संतानोत्पत्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि मानव अस्तित्व के सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। 

इस संबंध में इन महान वैज्ञानिकों एवं दार्शनिकों ने कहा है कि -

चार्ल्स डार्विन: “Love and desire are the great evolutionary forces that bind living beings into the web of life.”

सिग्मंड फ्रायड: “Sexuality is not only the means of reproduction, but also the core of human energy and creativity.”

कार्ल सागन: “We are a way for the cosmos to know itself — and in our intimacy, the universe celebrates its continuity.”

  • सेक्स का मुख्य जैविक उद्देश्य Genes का स्थानांतरण है

  • परंतु आनंद की अनुभूति, जननांगों की संरचना, और proper lubrication जैसे कारक केवल एक “Evolutionary Design” हैं ताकि मनुष्य बार-बार सेक्स करें और species का survival सुनिश्चित हो

  • इसे हम Biological Imperative + Pleasure Mechanism कह सकते हैं।

मेरे अंतिम विचार यही हैं कि -

मानव यौन-आनंद को केवल प्रजनन का साधन मानना अधूरा दृष्टिकोण है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो शरीर, मस्तिष्क और समाज—तीनों को एक साथ जोड़ती है। इसे समझना हमें यह सिखाता है कि आनंद और प्रेम केवल व्यक्तिगत अनुभव नहीं हैं, बल्कि प्रकृति की वह अद्भुत भाषा हैं जिनके माध्यम से जीवन निरंतर आगे बढ़ता है। अंत में .. 

“मानव यौनिकता केवल जीनों का खेल नहीं, यह भावनाओं और रिश्तों की गहराई का भी माध्यम है।”


🔑 Keywords (सामान्य)

  • Human Sexual Behavior
  • Biophysical Basis of Pleasure
  • Genetic Role of Sex
  • Neurochemistry of Orgasm
  • Evolutionary Biology of Reproduction
  • Physico-Chemical Biology of Intercourse
  • Dopamine & Endorphins in Sexual Activity
  • Gene Transfer via Ejaculation
  • Reproductive Success and Evolution
  • Ethical & Social Perspectives of Human Sexuality

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📖 स्रोत-संदर्भ (Research References)

    1. Masters, W. H., & Johnson, V. E. (1966). Human Sexual Response. Boston: Little, Brown and Company.

    2. Fisher, H. E. (2004). Why We Love: The Nature and Chemistry of Romantic Love. Henry Holt & Co.

    3. Pfaus, J. G. (2009). “Pathways of Sexual Desire.” Journal of Sexual Medicine, 6(6), 1506–1533.

    4. Levin, R. J. (2007). “Sexual activity, health and well-being – the beneficial roles of coitus and masturbation.” Sexual and Relationship Therapy, 22(1), 135–148.

    5. Diamond, J. (1997). Why Is Sex Fun? The Evolution of Human Sexuality. Basic Books.

    6. Basson, R. (2001). “Human sex-response cycles.” Journal of Sex & Marital Therapy, 27(1), 33–43.

    7. Reich, W. (1942/1973). The Function of the Orgasm. Farrar, Straus and Giroux.

    8. Georgiadis, J. R., & Kringelbach, M. L. (2012). “The human sexual response cycle: Brain imaging evidence linking sex to survival.” Frontiers in Human Neuroscience, 6, 330.

    9. Thornhill, R., & Gangestad, S. W. (2008). The Evolutionary Biology of Human Female Sexuality. Oxford University Press.

    10. Levin, R. J. (2014). “The physiology of sexual arousal in the human female: A recreational and procreational synthesis.” Archives of Sexual Behavior, 43(7), 1219–1236.


टिप्पणी:-

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लेखक:-

डॉ. प्रदीप सोलंकी 

 

"मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ।" - डेसकार्टेस 


विज्ञान शिक्षक, शिक्षाविद, प्राणिविद, पर्यावरणविद, ऐस्ट्रोनोमर, करिअर-काउन्सलर, ब्लॉगर, यूट्यूबर, एवं पूर्व सदस्य टीचर्स हैन्ड्बुक कमिटी सीएम राइज़ स्कूल्स एवं पीएम श्री स्कूल्स परियोजना तथा पर्यावरण शिक्षण समिति, माध्यमिक शिक्षा मण्डल भोपाल मध्यप्रदेश 





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    हमारे देश में यह चर्चा हमेशा से रही है कि आखिर मुर्गियों में इतना Calcium कहाँ से आता है कि वे रोज एक अंडा बना सकें ? चलिए आज इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि मुर्गियाँ कैसे अपने शरीर में इतना कैल्सीयम एकत्रित करती हैं, Bio-Transformation के जरिए या फिर Bio-Transmutation के जरिए ? या फिर कुछ और ही कहानी है -

    मुर्गियों में आहार से कैल्शियम अवशोषण एवं अंडे के खोल निर्माण का विज्ञान


    कैल्शियम स्रोत एवं आंतीय अवशोषण

    कमर्शियल मुर्गियाँ लगभग प्रत्येक 24 घंटे में एक अंडा देती हैं, इसलिए उन्हें अंडे के कठोर खोल निर्माण के लिए बड़ी मात्रा में कैल्शियम की आवश्यकता होती है। सामान्यतः चिकन के भोजन (जैसे दाना) में कैल्शियम की मात्रा सीमित होती है, अतः अंडे देने वाली मुर्गियों को अतिरिक्त कैल्शियम-युक्त आहार (जैसे चूना, सीप के गोले या बोन मील) दिया जाता है। भोजन में शामिल कैल्शियम मुख्यतः छोटी आंत (विशेषकर डुओडेनम और जेजुनम) द्वारा सक्रिय तंत्रों से अवशोषित होता है। इस सक्रिय अवशोषण में कैल्शियम-ट्रांसपोर्टर प्रोटीन और कैल्बिंडिन जैसे कैल्शियम बाँधने वाले प्रोटीन की भूमिका होती है। चूँकि रोजमर्रा के भोजन से मिलने वाला कैल्शियम अंडे के लिए पर्याप्त नहीं होता, मुर्गियों में आत्मसात कैल्शियमयुक्त आहार के प्रति विशेष भूख विकसित होती है और आंत में कैल्शियम अवशोषण की क्षमता बढ़ जाती है। सक्रिय विटामिन D (1,25(OH)₂D₃) आंत से कैल्शियम अवशोषण को बढ़ावा देता है, जबकि पैराथायरॉयड हार्मोन (PTH) हड्डियों से कैल्शियम के मुक्त होने को प्रेरित करता है।

    कैल्शियम चक्र एवं संचय

    मुर्गी के शरीर में कैल्शियम का बड़ा भंडार हड्डियों में होता है। यौवन अवस्था की शुरुआत में एस्ट्रोजन हार्मोन के प्रभाव से लंबी हड्डियों और फेनी हड्डियों की मज्जा में “मेडुलरी हड्डी” बनती है। यह अस्थि-मज्जा में बनने वाली अस्थिर अस्थि है, जो अण्डे के खोल निर्माण के समय तत्परता से कैल्शियम मुहैया कराती है। व्यावसायिक मुर्गी के शरीर को प्रतिदिन लगभग 2 ग्राम कैल्शियम की आवश्यकता होती है, जिसे आहार से दिन में प्राप्त किया जाता है। चूंकि मुर्गी दिन में खाना खाती है लेकिन अधिकांश अंडे का खोल रात्रि में तैयार होता है, इसलिए अंडा बनने के समय करीब 20–40% कैल्शियम हड्डियों के रिसोर्प्शन से प्राप्त होता है। इस दैनिक चक्र में मैडुलरी हड्डी का तेजी से टूटना (रिसोर्प्शन) और बाद में पुनः निर्माण शामिल होता है। पैराथायरॉयड हार्मोन (PTH) हड्डियों से कैल्शियम के मुक्त होने की दर को बढ़ाता है, जबकि सक्रिय विटामिन D₃ आंत में कैल्शियम के अवशोषण को बढ़ावा देता है। एस्ट्रोजन (और टेस्टोस्टेरोन) हार्मोन अंडा देने की तैयारी में मैडुलरी हड्डी निर्माण को प्रोत्साहित करते हैं। इन सब प्रक्रियाओं का समन्वय मुर्गी में कैल्शियम की स्थिर मात्रा बनाए रखता है।

    अंडाशय एवं शेल ग्रंथि में अंडा निर्माण

    मुर्गी के प्रजनन तंत्र में अंडाशय से निकलकर अंडा क्रमशः अलग-अलग खंडों से गुजरता है। इसका संक्षिप्त चक्र इस प्रकार होता है:

    1. इन्फंडिबुलम (Infundibulum): अंडाशय से निकला योल्क यहाँ लगभग 15–30 मिनट तक रहता है (फेर्टिलाइज़ेशन यदि हो तो इसी चरण में होता है)।

    2. मैग्नम (Magnum): अगले ~3.25–3.5 घंटे तक अंडे की सफेदी (एल्ब्यूमेन) बनती है।

    3. इस्थ्मस (Isthmus): करीब 1 घंटा यहाँ बिता और अंडे के चारों ओर अन्दर-बाहरी मेम्ब्रेन की परतें बनती हैं।

    4. शेल ग्रंथि (यूटरस): लगभग 19–20 घंटे तक अंडे के अंतिम आकार में आने और खोल बनने की प्रक्रिया होती है। शेल ग्रंथि की ऊतक कोशिकाएँ रक्त से आयनिक कैल्शियम और कार्बोनेट आयन ले जाती हैं और इन्हें ऊपरी इलस्ट्रिस्थान (shell lumen) में कैल्शियम कार्बोनेट के रूप में निक्षेपित करती हैं, जिससे अंडे का कठोर खोल बनता है।

    अंडे के खोल की संरचना और निर्माण


    “मुर्गियों के अंडे का खोल लगभग 95% कैल्शियम कार्बोनेट से मिलकर बना होता है, इसलिए अंडे के निर्माण के लिए उन्हें एक प्रभावी कैल्शियम चयापचय बनाए रखना पड़ता है।" 



    चिह्नित चित्र में चिकन अंडे के खोल की सूक्ष्म संरचना दिखाई गई है। चिकन के अंडे का खोल मुख्यतः कैल्शियम कार्बोनेट (कैसाइट) से निर्मित होता है और इसका लगभग 95% हिस्सा अकार्बनिक खनिज है। अंडे का खोल कई परतों से मिलकर बना होता है — नीचे की ओर मैमिलरी परत (mammillary layer) आती है, जिसके बाद पैलिसेड परत (palisade layer) बनती है, और बाहरी सतह पर कटिकल (cuticle) परत होती है। मैमिलरी परत पर छोटे-छोटे मैमिलरी नॉब्स (glandular knobs) होते हैं, जिन पर कैल्शियम कार्बोनेट के क्रिस्टल परतें बनने की शुरूआत होती है। खोल बनते समय पहले अमूर्त कैल्शियम कार्बोनेट (ACC) जमता है, जो बाद में कैसाइट क्रिस्टल में परिवर्तित हो जाता है। इन क्रिस्टलीकरण प्रक्रियाओं में अंडे के खोल में उपस्थित विभिन्न जैविक मैट्रिक्स प्रोटीन (जैसे ओवल्ब्यूमिन, ओवोकैल्ज़िन इत्यादि) का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है, जो क्रिस्टल के विकास को नियंत्रित करके खोल को मजबूती प्रदान करते हैं।


    हार्मोन एवं नियंत्रक तंत्र

    मुर्गी में कैल्शियम होमियोस्टेसिस कई हार्मोन द्वारा नियंत्रित होता है। पैराथायरॉयड हार्मोन (PTH) ऑस्टेओक्लास्ट नामक कोशिकाओं को सक्रिय करके हड्डियों से कैल्शियम के मुक्त होने को बढ़ाता है, जबकि सक्रिय विटामिन D₃ आंत में कैल्शियम अवशोषण को बढ़ावा देता है। उच्च एस्ट्रोजन स्तर अंडा उत्पादन के पहले मैडुलरी हड्डी निर्माण को उत्तेजित करते हैं। इन हार्मोन और अन्य नियामक तंत्रों का समन्वय मुर्गी के शरीर में कैल्शियम की मात्रा को नियंत्रित रखता है और आवश्यकतानुसार सीधे रक्तप्रवाह में या हड्डी भंडार से कैल्शियम मुहैया कराता है।

    “जब शेल ग्रंथि (रात में) सक्रिय होती है तो मुर्गियों की आंत से कैल्शियम का अवशोषण लगभग 72% तक बढ़ जाता है, जिससे हड्डियों से कैल्शियम की जरूरत कम हो जाती है।”

    क्या वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह मान्यता सत्य है कि मुर्गियों के शरीर में पोटैशियम जैसे तत्व कैल्शियम में परिवर्तित होते हैं — यानी क्या यह जैव-परिवर्तन (Bio Transmutation) होता है। चलिए इसकी पुष्टि या खंडन के लिए उपलब्ध वैज्ञानिक प्रमाण, शोध या विवादों की जानकारी के आधार पर डिटेल्स जानने की कोशिश करते हैं।

    मुर्गियों में पोटैशियम से कैल्शियम में जैव-परिवर्तन की वैज्ञानिक समीक्षा

    जैव-परिवर्तन (Bio-Transmutation) की अवधारणा और इतिहास

    “केर्व्रान ने दावा किया कि मुर्गियां अपने आहार के पोटेशियम को ‘कम-ऊर्जा ट्रांसम्यूटेशन’ द्वारा कैल्शियम में बदल सकती हैं, लेकिन बाद की शोधों ने यह सिद्ध नहीं किया; ‘केर्व्रान प्रभाव’ का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं पाया गया।”

    फ्रांसीसी वैज्ञानिक कॉरेंटिन लुइ कर्व्रान ने 1960 के दशक में दावा किया कि जीवों के भीतर एक तत्व दूसरे तत्व में परिवर्तन कर सकता है। उदाहरणतः उन्होंने यह अनुभव किया कि कैल्शियम-रहित आहार पर भी मुर्गियाँ अंडों के खोल में पर्याप्त कैल्शियम बना लेती थीं। कर्व्रान ने इसे “बायोलॉजिकल ट्रांसम्यूटेशन” कहा और प्रस्तावित किया कि मुर्गियाँ अपने आहार का पोटैशियम अणुओं को कैल्शियम में परिवर्तित कर सकती हैं। इस तरह की प्रक्रिया हेतु कर्व्रान ने रसायन की बजाय एक प्रकार की अल्प-ऊर्जा न्यूक्लियर प्रतिक्रिया (low-energy transmutation) की कल्पना की, जिसमें एंजाइमिक क्रियाओं द्वारा “कमज़ोर परमाणु बल” का उपयोग हो सकेगा।

    वैज्ञानिक प्रामाणिकता और परीक्षण

    परंपरागत विज्ञान के अनुसार जैविक प्रक्रियाओं से तत्व-रूपांतरण असंभव है। तत्वीय संरक्षण के नियम के तहत जीवन तंत्र में किसी तत्व का दूसरे में रूपांतरण नहीं होता। आधुनिक अनुसंधानों में कर्व्रान के दावों की पुष्टि नहीं मिली। इटली के शोधकर्ताओं ने नियंत्रित प्रयोग में कोई जैविक ट्रांसम्यूटेशन नहीं पाया और यह दिखाया कि यदि मुर्गियों के चारे में कैल्शियम कम होता है तो वे हड्डियों से कैल्शियम खींच कर अंडे में प्रयोग करती हैं। इस प्रकार, ओट में मौजूद कैल्शियम अंशतः उपलब्ध हो सकता है या शरीर से निकाला जाता है, न कि पोटैशियम से नया कैल्शियम उत्पन्न होता है। विज्ञान लेखक जोए श्वार्ज़ ने स्पष्ट किया है कि कर्व्रान प्रभाव अस्तित्व में नहीं है कर्व्रान ने केवल त्रुटिपूर्ण अवलोकनों के आधार पर गलत निष्कर्ष निकाला”।

    मुख्य बिंदु:

    • जलीय और जैव रसायनिक प्रक्रियाओं में तत्व की संख्या अपरिवर्तित रहती है।

    • मुर्गियों का कैल्शियम अंडे के खोल के लिए हड्डियों से जुटाया जा सकता है; तत्कालीन आहार में कैल्शियम की कमी को भी ध्यान में रखा जाता है।

    • वैज्ञानिक प्रयोगों (जैसे शेफ़ील्ड विश्वविद्यालय के मिल्टन वैनराइट का अध्ययन) में किसी भी जैविक रूपांतरण का पता नहीं चला और शोधकर्ता कहते हैं कि यह घटना “अस्तित्वहीन” प्रतीत होती है।

    परम्परागत जैव-रसायन और न्यूक्लियर भौतिकी का दृष्टिकोण

    रासायनिक और भौतिकी के सिद्धांत इस दावे के खंडन करते हैं। न्यूक्लियर ट्रांसम्यूटेशन (तत्वांतरण) के लिए परमाणु संलयन या विखंडन प्रक्रियाएँ जरूरी हैं, जिनमें अत्यधिक ऊर्जा लगती है। उदाहरणतः संलयन प्रतिक्रियाओं के लिए लगभग 15,000,000 केल्विन तापमान की आवश्यकता होती है, जो किसी भी जीवित कोष में प्राप्त नहीं हो सकती। वैज्ञानिक स्रोत बताते हैं कि दो नाभिकों को आपस में टकराने के लिए उच्च तापमान देकर ही प्रतिकर्षण को पार किया जा सकता है। जीवों के शरीर का तापमान तथा एंजाइमिक परिवेश इन चरम स्थितियों से कोसों दूर है। अत: न्यूक्लियर संलयन की तरह कोई प्रक्रिया जैविक स्तर पर संभव नहीं है। पोटैशियम और हाइड्रोजन को जोड़कर कैल्शियम बनाने की कल्पना “कोई वैज्ञानिक आधार नहीं रखती”

    उपलब्ध शोध एवं निष्कर्ष

    वैज्ञानिक साहित्य में जैव-परिवर्तन की कोई विश्वसनीय शोध-पत्रिका या प्रयोगात्मक पुष्टि नहीं है। कुछ अप्रयुक्त एवं विवादास्पद जर्नलों (जैसे Journal of Condensed Matter Nuclear Science इत्यादि) में इस विषय पर समीक्षाएँ प्रकाशित हुई हैं, लेकिन इन्हें मुख्यधारा के वैज्ञानिक समाज ने नहीं अपनाया। अधिकांश अध्ययनों या कथित परीक्षणों के परिणाम नकारात्मक रहे हैं। उदाहरण के लिए, शेफ़ील्ड विश्वविद्यालय की रिपोर्ट में कहा गया कि कर्व्रान के सिद्धांत के समर्थन में कोई सबूत नहीं मिला और यह सिद्धांत मौलिक रूप से असंभव लगता है। वैज्ञानिक समुदाय का मानना है कि जैव-परिवर्तन के दावे क्वैक साइंस की श्रेणी में आते हैं, न कि स्थापित विज्ञान में।

    ‘बायो-ट्रांसफ़ॉर्मेशन’ से अंतर

    ध्यान देने योग्य है कि जैव-रसायन में बायोट्रांसफॉर्मेशन शब्द का प्रयोग किसी अणु का जीव द्वारा रासायनिक रूपांतरण (जैसे दवा का चयापचय) के लिए होता है। यह प्रक्रिया एंजाइम द्वारा अणुओं की रासायनिक संरचना बदलने की ओर इशारा करती है। इसमें तत्वों का परिवर्तन शामिल नहीं होता। जबकि ‘बायोलॉजिकल ट्रांसम्यूटेशन’ के दावे में तत्वों (जैव अणुओं के मूल तत्वों) के नाभिकीय स्तर पर बदले की बात होती है। सरलतः, बायोट्रांसफॉर्मेशन = रासायनिक रूपांतरण (जैविक अणु स्तर पर), जबकि बायोलॉजिकल ट्रांसम्यूटेशन = कथित परमाणु परिवर्तन (विवादास्पद सिद्धांत)।

    निष्कर्ष:-

    सारांशतः, मुर्गियों के शरीर में पोटैशियम को कैल्शियम में परिवर्तित करने का दावा वैज्ञानिक दृष्टि से असंभव है। इस परंपरागत रसायनिकी और न्यूक्लियर भौतिकी दोनों के सिद्धांतों से मेल नहीं खाता। न तो विश्वसनीय प्रयोगों में ऐसी प्रक्रिया देखी गई है और न ही कोई मान्यता प्राप्त शोध-पत्र इसे पुष्ट करता है। इस प्रकार, जैव-परिवर्तन (Bio-Transmutation) की अवधारणा को आधुनिक विज्ञान में खारिज किया गया है। बायोट्रांसफॉर्मेशन से यह पूर्णतः भिन्न है क्योंकि वह तत्वों के बदले की नहीं बल्कि अणुओं के रासायनिक परिवर्तन की बात करता है।

    संदर्भ: 

    उपरोक्त जानकारी विभिन्न वैज्ञानिक शोध-पत्रों और पुनरावलोकनों पर आधारित है जो मुर्गियों में कैल्शियम चयापचय तथा अंडे के खोल निर्माण की जटिल प्रक्रियाओं को दर्शाती हैं।

    स्रोत:-

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    लेखक:-

    डॉ. प्रदीप सोलंकी 

     

    "मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ।" - डेसकार्टेस 


    विज्ञान शिक्षक, शिक्षाविद, प्राणिविद, पर्यावरणविद, ऐस्ट्रोनोमर, करिअर-काउन्सलर, ब्लॉगर, यूट्यूबर, एवं पूर्व सदस्य टीचर्स हैन्ड्बुक कमिटी सीएम राइज़ स्कूल्स एवं पीएम श्री स्कूल्स परियोजना तथा पर्यावरण शिक्षण समिति, माध्यमिक शिक्षा मण्डल भोपाल मध्यप्रदेश 



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