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बुधवार, 1 जनवरी 2025

"स्वजातिभक्षण: योग्यतम की उत्तरजीविता का एक आदिम उदाहरण" (Cannibalism: A Primitive Example of Survival of the Fittest)

स्वजातिभक्षण: योग्यतम की उत्तरजीविता का एक आदिम उदाहरण (Happy New Year-2025)

(Cannibalism: A Primitive Example of Survival of the Fittest) Happy New Year - 2025

डॉ. जेनिफर ब्रायन (Jennifer Bryan), जो Animal Behavioral Genetics में शोधकर्ता हैं, का यह कथन इस संदर्भ में उल्लेखनीय है:

"Cannibalistic behavior in domestic dogs represents a regression to survival instincts deeply encoded in their genetic framework, often triggered by environmental stress and gene expression anomalies." अर्थात: "घरेलू कुत्तों में Cannibalism का व्यवहार उनके आनुवंशिक ढांचे में गहराई से निहित जीवित रहने की प्रवृत्ति की पुनरावृत्ति है, जिसे पर्यावरणीय तनाव और जीन अभिव्यक्ति असामान्यताओं द्वारा प्रेरित किया जाता है।"

Cannibalism (स्वजाति भक्षण): विभिन्न जीवों द्वारा किसी जीन को हस्तांतरित करने का सबसे बुरा तरीका एवं सहज व्यवहार है। हालांकि अपनी ही संतान को खाना जैव विकास के दृष्टिकोण से सबसे अंतिम पायदान है। फिर भी स्वजातिभक्षण कोई वांछनीय चीज़ नहीं है, लेकिन कुछ परिस्थितियां इस जोखिम पूर्ण व्यवहार को उपयुक्त बना देती हैं। यदि कोई जीव भूख से मरने वाला है तो अपने किसी सगे या वारिस को खाकर वह अपना अस्तित्व तो बचा ही रहा है। यह उनके लिए प्राकृतिक संतुलन का एक अनोखा तरीका या सहज व्यवहार है।   

अध्ययन उपरांत की गई समीक्षा में शोधकर्ता बताते हैं कि विशिष्ट हार्मोन – अकशेरुकियों में "ऑक्टोपामाइन" और कशेरुकी जीवों में "एपिनेफ्रिन" – स्वजाति भक्षण में वृद्धि के लिए ज़िम्मेदार हैं। जैसे-जैसे प्रजाति की आबादी अधिक होने लगती है और भोजन मिलना मुश्किल हो जाता है तो इन हार्मोन की मात्रा बढ़ने लगती है। और भूख से त्रस्त जीव जो भी सामने आता है उसे झपटने लगते हैं।

रोसेनहाइम का मानना है कि स्वजाति भक्षण का परिणाम सकारात्मक होता है: इसके चलते कम संख्या वाली, स्वस्थ आबादी विकसित होती है। इसी कारण वे इसे बर्बर कहने से कतराते हैं। उनके मुताबिक मनुष्यों की बात हो तो अच्छी नहीं लगती लेकिन प्रकृति में संतुलन लाने में स्वजातिभक्षण (Cannibalism) का काफी योगदान है।

कुत्तों में Cannibalism के लिए कई आनुवंशिक जीन जिम्मेदार हो सकते हैं, विशेष रूप से MAOA, DRD4, और SLC6A4। यह व्यवहार अक्सर तनाव, भूख, और सामाजिक अस्थिरता के कारण उत्पन्न होता है। आधुनिक शोध इस पर ध्यान केंद्रित कर रहा है कि कैसे आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों के बीच संतुलन से इस प्रवृत्ति को समझा और नियंत्रित किया जा सकता है। इस पर आगे विस्तार से बात करेंगे। 


विशेष:   में कल 29 दिसंबर 2024 को रात 10:30 PM पर जब इस लेख को लिख रहा था तभी घर के सामने Cannibalism की घटना से रूबरू होने का मौका मिला। पूरी घटना को मैंने अपने Facebook अकाउंट पर विस्तार से लिखा है। जिसकी लिंक में नीचे दे रहा हूँ। जरूर पढ़ें, आपको अच्छा लगेगा।https://www.facebook.com/share/p/18J1Qnd1fy/

आइए हम यहाँ आपके मन में उठ रहे बहुत से जटिल एवं साधारण सवालों के जवाब देने की कोशिश करेंगे। ये सवाल कौन कौन से हो सकते हैं। मूलतः तीन ही प्रश्न हैं, जैसे कि - 

पहला सवाल: स्वजाति भक्षण क्या है और क्यों ये लक्षण जीवों में आते हैं और इनके लिए कौन जिम्मेदार होता है तथा इनके लिए क्या कोई Genes भी जिम्मेदार होते हैं? 

दूसरा सवाल: Cannibalism के लक्षण क्या Canines में ही देखने को मिलते हैं। इनके लिए कौन से Genes जिम्मेदार होते हैं और क्यों? विकासक्रम में ऐसे कौन से परिवर्तन हुए कि उनमें यह लक्षण विकसित हो गए? और 

तीसरा सवाल:  क्या पेड़-पौधों में भी Cannibalism पाया जाता है? 

इन सभी सवालों को बिंदूवार एवं विस्तार से, इनकी शोधपरक व्याख्या विभिन्न जीवों में उदाहरण सहित करेंगे जिससे विद्यार्थियों के लिए लेख की उपयोगिता बनी रहे। 

ध्यान रहे कि यह लेख थोड़ा स लंबा हो सकता है क्योंकि बहुत सारे सवालों को यह समेटे हुए है। इसलिए थोड़ा सा धैर्य रखने की में आप सभी से अपील करता हूँ, साथ ही इस लेख के साथ एक अजीब संयोग भी जुड़ा हुआ है जिसे मैंने अपने फेसबुक अकाउंट पर शेयर भी किया है। मैं चाहता हूँ कि यदि किसी और ने भी इस तरह की घटना देखी हो या सुनी हो, तो अवश्य ही कमेन्ट बॉक्स में शेयर करें। मेरी कोशिश रहेगी कि में उस घटना को यहाँ न सिर्फ़ शेयर करूँ बल्कि उसकी लिंक भी यहाँ शेयर करूंगा।  

आइए पहले सवाल को जानने की कोशिश करते हैं -    

जीव-जंतुओं में Cannibalism (स्वजातिभक्षण) के लक्षण विभिन्न कारकों का परिणाम होते हैं, जो आनुवंशिक (जीन्स), पर्यावरणीय, पारिस्थितिकीय और व्यवहारिक प्रभावों का मिश्रण हो सकते हैं। इसे समझने के लिए निम्नलिखित पहलुओं पर चर्चा की जाती है:


1. आनुवंशिक (Genetic) प्रभाव

कुछ शोधों के अनुसार, Cannibalism का संबंध कुछ जीवों के जीनोम (Genome) में मौजूद विशेष जीन अभिव्यक्तियों से हो सकता है।

  • उदाहरण: मेंढक और मछलियों में पाए जाने वाले शिकार और भोजन के लिए प्रेरित जीन।
    • शोध: 2020 में Nature Ecology & Evolution में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, आनुवंशिक चयन उन जीवों में Cannibalism को बढ़ावा देता है जहां भोजन की कमी होती है और आत्मसंरक्षण प्राथमिकता बन जाती है।

2. भोजन की कमी (Scarcity of Resources)

भोजन की उपलब्धता में कमी Cannibalism का एक प्रमुख कारण है। जब अन्य खाद्य स्रोत उपलब्ध नहीं होते, तो जीव स्वजातिभक्षण का सहारा लेते हैं।

  • उदाहरण:
    • भेड़िये की मछली (Sand tiger shark) के भ्रूण अपने ही भ्राताओं को गर्भ में खा जाते हैं। यह व्यवहार आनुवंशिक प्रतिस्पर्धा के कारण होता है।
    • शोध: Science Advances (2018) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, संसाधन-निर्भर प्रतिस्पर्धा भ्रूणीय Cannibalism को प्रभावित करती है।

3. पारिस्थितिकीय और पर्यावरणीय कारण

Cannibalism का संबंध पर्यावरणीय परिस्थितियों और पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना से भी है।

  • संरक्षण के लिए व्यवहार: कुछ प्रजातियां अपने वंश के कमजोर सदस्यों को खाकर अन्य संतानों को बचाने का प्रयास करती हैं।
  • उदाहरण:
    • ब्लैक विडो मकड़ी (Black widow spider) नर को मादा द्वारा खा लिया जाता है, जिससे मादा के प्रजनन में सुधार होता है।
    • शोध: Biology Letters (2019) में यह बताया गया कि इस व्यवहार का उद्देश्य ऊर्जा संरक्षण और प्रजनन की सफलता बढ़ाना है।

4. जीवों का विकासवादी दृष्टिकोण (Evolutionary Perspective)

Cannibalism कभी-कभी संवर्धन (Fitness) बढ़ाने और प्रजातियों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए एक विकासवादी रणनीति हो सकती है।

  • उदाहरण:
    • मेंढक (Bullfrog) अपने छोटे टैडपोल को खाकर अपनी प्रजाति के लिए संसाधन बचाते हैं।
    • शोध: Evolutionary Biology (2022) में प्रकाशित एक पेपर के अनुसार, Cannibalism की संभावना उन प्रजातियों में अधिक होती है, जिनमें वंश प्रतिस्पर्धा उच्च होती है।

5. हार्मोन और न्यूरोलॉजिकल प्रभाव

कुछ प्रजातियों में हार्मोनल असंतुलन या न्यूरोलॉजिकल संकेत भी Cannibalism के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।

  • उदाहरण: प्रार्थना करने वाले टिड्डे (Praying mantis) के नर मादा द्वारा संभोग के बाद खाए जाते हैं। यह हार्मोनल संकेतों और प्रजनन की प्रक्रिया से जुड़ा है।
  • शोध: Journal of Experimental Biology (2020) ने इस घटना को हार्मोन आधारित प्रतिक्रिया के रूप में परिभाषित किया।

6. मानव जाति में Cannibalism

मानव समाज में Cannibalism का संबंध संस्कृति, परंपराओं और तनावपूर्ण परिस्थितियों से भी हो सकता है।

  • उदाहरण:
    • डोनर पार्टी (1846-1847) में भोजन की कमी के कारण जीवित रहने के लिए मानव Cannibalism देखा गया।
    • शोध: Anthropological Journal (2019) ने बताया कि यह व्यवहार अत्यधिक भूख और सामाजिक संरचना के टूटने का परिणाम था।

निष्कर्ष

निष्कर्षतः इन शोधपरक जांच पड़ताल एवं शोधपत्रों के अध्ययन उपरांत हम यह दर्शा सकते हैं कि Cannibalism एक जटिल व्यवहार है जो आनुवंशिक, पारिस्थितिकीय और पर्यावरणीय कारकों का संयुक्त परिणाम हो सकता है। शोध यह इंगित करते हैं कि Cannibalism प्रजातियों की विकासवादी अनुकूलन का हिस्सा हो सकता है, जो संसाधनों की कमी और प्रजातियों के अस्तित्व की गारंटी देता है।

प्रमुख शोधपत्रों के संदर्भ:

  1. Nature Ecology & Evolution (2020)
  2. Science Advances (2018)
  3. Biology Letters (2019)
  4. Journal of Experimental Biology (2020)
  5. Evolutionary Biology (2022)
  6. Anthropological Journal (2019)
  7. https://www.srotefeatures.in/srote/

इन शोधों से स्पष्ट होता है कि Cannibalism को समझने के लिए मल्टी-डिसिप्लिनरी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। 

अब आते हैं आपके दूसरे सवाल पर -

रदनकों में स्वजाति भक्षण (Cannibalism in Canines): Cannibalism (स्वजाति भक्षण) के लक्षण कई प्रकार के Canines (कुत्तों की प्रजाति, जैसे भेड़िये, लोमड़ी, कुत्ते) में पाए जाते हैं। यह व्यवहार आमतौर पर आहार की कमी, पर्यावरणीय दबाव, सामाजिक संरचना में बदलाव, या आनुवंशिक प्रवृत्ति का परिणाम हो सकता है।


1. Canines में Cannibalism के लिए जिम्मेदार Genes

Cannibalism के लिए कोई एक विशिष्ट जीन ज़िम्मेदार नहीं है, बल्कि यह कई आनुवंशिक, विकासात्मक और पर्यावरणीय कारकों का परिणाम है।

(a) आनुवंशिक प्रवृत्ति

  • Aggression और Dominance से जुड़े जीन:

    • MAOA (Monoamine oxidase A): इस जीन का संबंध आक्रामकता और सामाजिक व्यवहार से है। इसके उत्परिवर्तन (mutation) से Canines में हिंसक प्रवृत्तियाँ बढ़ सकती हैं।
    • DRD4 (Dopamine receptor D4): यह जीन डोपामिन सिग्नलिंग को नियंत्रित करता है और Canines में जोखिम भरे और आक्रामक व्यवहार को प्रभावित कर सकता है।
  • सहज भोजन प्रवृत्ति (Foraging genes):

    • FGF21 (Fibroblast growth factor 21): यह जीन ऊर्जा के कम स्तर पर भोजन की खोज करने और आपातकालीन परिस्थितियों में पोषण के लिए स्वजाति भक्षण को बढ़ावा देने में सहायक हो सकता है।

(b) पोषण से संबंधित जीन

  • LEP (Leptin gene): यह जीन भूख को नियंत्रित करता है। इसकी असामान्य अभिव्यक्ति भूख से प्रेरित आक्रामकता और Cannibalism को बढ़ावा दे सकती है।

2. विकासक्रम में बदलाव: Cannibalism क्यों विकसित हुआ?

(a) पोषण की कमी और भोजन की उपलब्धता

  • भूख और आपातकालीन परिस्थितियाँ:

    • विकासक्रम में, Canines ने अपनी जीवित रहने की क्षमता बढ़ाने के लिए Cannibalism को अपनाया। भोजन की कमी या पारिस्थितिक दबाव के समय, स्वजाति भक्षण ने पोषण बनाए रखने में मदद की।
  • उदाहरण:

    • भेड़िये (Wolves): जब शिकार कम होता है, तो ये अपने मृत साथियों या शावकों को खा सकते हैं।

(b) सामाजिक संरचना का प्रभाव

  • Dominance और Territory:

    • विकासक्रम के दौरान, Dominant Canines ने सत्ता और संसाधनों को बनाए रखने के लिए अपने समूह के कमजोर सदस्यों का शिकार किया।
  • उदाहरण:

    • Alpha male भेड़िये अक्सर कमजोर शावकों को खा सकते हैं यदि समूह के संसाधन सीमित हों।

(c) आनुवंशिक और पर्यावरणीय अनुकूलन

  • Genetic Plasticity:
    • आनुवंशिक रूप से, Canines में आक्रामक और पोषण-उन्मुख व्यवहार विकसित हुआ, जो Cannibalism की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करता है।
  • Evolutionary Pressure:
    • भौगोलिक और पर्यावरणीय बदलावों ने Canines को अपने व्यवहार में विविधता लाने के लिए मजबूर किया।

(d) सहज व्यवहार का विकास

  • सामाजिक संतुलन बनाए रखने के लिए:
    • Cannibalism कभी-कभी समूह में संक्रमण या बीमारियों को रोकने के लिए किया जाता है। यह "Survival of the Fittest" का एक आदिम उदाहरण है।

3. Canines में Cannibalism के व्यवहार के उदाहरण

(a) भेड़िये (Wolves):

  • जब शिकार उपलब्ध नहीं होता है, तो भेड़िये अपने मृत साथियों या शावकों को खा लेते हैं।
  • शोध: "Journal of Wildlife Management" (2019) में प्रकाशित एक अध्ययन ने दिखाया कि अलास्का के भेड़ियों में Cannibalism अत्यधिक शिकार दबाव के समय बढ़ जाता है।

(b) घरेलू कुत्ते (Domestic Dogs):

  • अत्यधिक भूख, तनाव, या पर्यावरणीय दबाव के कारण घरेलू कुत्तों में Cannibalism देखा गया है।

(c) कोयोट (Coyotes):

  • कोयोट्स में यह व्यवहार तब देखा गया जब वे शहरी क्षेत्रों में भोजन की कमी का सामना करते हैं।

4. आधुनिक शोध और निष्कर्ष

(a) Genetic Studies on Cannibalism:

  • "Nature Communications" (2021) में प्रकाशित एक अध्ययन ने दिखाया कि आक्रामकता और सामाजिक व्यवहार से संबंधित जीन Canines में Cannibalism को प्रभावित कर सकते हैं।
  • विशेष रूप से, MAOA और DRD4 जीन की अभिव्यक्ति में परिवर्तन इस प्रवृत्ति को बढ़ा सकता है।

(b) Evolutionary Adaptation:

  • "Evolutionary Ecology" (2018) में एक शोध ने बताया कि भोजन की कमी और पारिस्थितिकी तंत्र के दबावों ने Canines को Cannibalism के व्यवहार में ढालने के लिए मजबूर किया।

निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि Canines में Cannibalism का विकास आनुवंशिक प्रवृत्तियों (MAOA, DRD4, LEP) और पारिस्थितिकीय दबावों के संयुक्त प्रभाव का परिणाम है। विकासक्रम में, यह व्यवहार पोषण बनाए रखने और सामाजिक संरचना को संतुलित करने के लिए विकसित हुआ।

प्रमुख शोधपत्र:

  1. Journal of Wildlife Management (2019)
  2. Nature Communications (2021)
  3. Evolutionary Ecology (2018)

ये अध्ययन यह दर्शाते हैं कि Cannibalism, Canines के लिए एक व्यवहारिक रणनीति है जो पोषण और सामाजिक अस्तित्व के लिए विकसित हुई है।

भेड़ियों के अलावा कुत्तों में Cannibalism का व्यवहार आश्चर्यजनक एवं जीन स्थानांतरण की दृष्टि से बुरा व्यवहार है। इस व्यवहार के लिए कुत्तों में कौन से Genes सक्रिय हो जाते हैं? आइए शोधपरक अध्ययन के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं।   


कुत्तों (Domestic Dogs) में Cannibalism का व्यवहार दुर्लभ, परंतु चिंताजनक है। यह व्यवहार आहार की कमी, तनावपूर्ण परिस्थितियों, या आनुवंशिक प्रवृत्तियों के कारण हो सकता है। भेड़ियों के विपरीत, घरेलू कुत्तों में Cannibalism को अक्सर अस्वास्थ्यकर पर्यावरण या आक्रामक जीन अभिव्यक्ति का परिणाम माना जाता है।

कुत्तों में Cannibalism के लिए सक्रिय जीन

कुत्तों में Cannibalism के लिए जिम्मेदार कोई एकल जीन नहीं है। यह जीन अभिव्यक्ति के जटिल नेटवर्क का परिणाम है, जिसमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित जीन शामिल हो सकते हैं:

1. MAOA (Monoamine oxidase A):

  • भूमिका:
    यह जीन सेरोटोनिन और डोपामिन के चयापचय को नियंत्रित करता है। इसके कम स्तर के कारण आक्रामकता और हिंसक व्यवहार बढ़ सकते हैं।
  • शोध:
    • "Nature Genetics" (2021) के अनुसार, MAOA की गड़बड़ी से कुत्तों में असामान्य हिंसक प्रवृत्तियाँ हो सकती हैं।

2. DRD4 (Dopamine receptor D4):

  • भूमिका:
    डोपामिन सिग्नलिंग में शामिल यह जीन आक्रामकता और सामाजिक अस्थिरता को बढ़ावा देता है।
  • शोध:
    • "Journal of Animal Behavior" (2019) ने इसे जोखिम-लेने वाले और आक्रामक व्यवहारों से जोड़ा।

3. SLC6A4 (Serotonin transporter gene):

  • भूमिका:
    यह जीन तनाव प्रबंधन और सामाजिक व्यवहार में भूमिका निभाता है। इसकी गड़बड़ी से तनावपूर्ण परिस्थितियों में कुत्तों का Cannibalism की ओर झुकाव बढ़ सकता है।

4. LEP (Leptin gene):

  • भूमिका:
    भूख को नियंत्रित करने वाला यह जीन कुपोषण के समय Cannibalism के व्यवहार को ट्रिगर कर सकता है।

5. BDNF (Brain-derived neurotrophic factor):

  • भूमिका:
    यह जीन मस्तिष्क के विकास और अनुकूलन में सहायक है। इसका असंतुलन कुत्तों में तनाव और आक्रामकता को जन्म दे सकता है।

विकासक्रम और जीन स्थानांतरण का प्रभाव

(a) पारंपरिक से घरेलू कुत्ते (Domestication)

  • कुत्तों के पालतू बनने के क्रम में उनकी मूल आक्रामक प्रवृत्तियों को दबाया गया। लेकिन तनाव, भूख, और सामाजिक अस्थिरता इन "सुप्रयुक्त" जीन को पुनः सक्रिय कर सकती है।
  • भेड़ियों से कुत्तों में जीन स्थानांतरण के दौरान कुछ आक्रामकता वाले जीन संरक्षित रहे।

(b) Genetic Drift और Mutation:

  • आनुवंशिक विचलन (genetic drift) और उत्परिवर्तन ने कुछ कुत्तों में Cannibalism की प्रवृत्ति को पनपने दिया, विशेष रूप से उन नस्लों में जो कठिन परिस्थितियों (जैसे ग्रामीण या जंगली क्षेत्र) में जीवित रहीं।

(c) सामाजिक संरचना का पतन:

  • कुत्तों में Cannibalism का व्यवहार सामाजिक अनुशासन की कमी और असामान्य तनावपूर्ण माहौल में विकसित हो सकता है।

उदाहरण:

  1. भूख और तनाव:

    • एक अध्ययन में पाया गया कि युद्ध-ग्रस्त क्षेत्रों में छोड़े गए कुत्ते अक्सर Cannibalism का सहारा लेते हैं।
    • शोध: "Comparative Psychology Journal" (2020)
  2. पालतू कुत्तों में घटनाएँ:

    • तनाव, मालिक से अलगाव, और भोजन की कमी के कारण घरेलू कुत्तों में इस प्रवृत्ति के मामले दर्ज किए गए हैं।

निष्कर्ष

कुत्तों में Cannibalism के लिए कई आनुवंशिक जीन जिम्मेदार हो सकते हैं, विशेष रूप से MAOA, DRD4, और SLC6A4। यह व्यवहार अक्सर तनाव, भूख, और सामाजिक अस्थिरता के कारण उत्पन्न होता है। आधुनिक शोध इस पर ध्यान केंद्रित कर रहा है कि कैसे आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों के बीच संतुलन से इस प्रवृत्ति को समझा और नियंत्रित किया जा सकता है।

अंत में आपका तीसरा सवाल भी हल करने की कोशिश करते हैं -

ये बड़ा ही मासूम सा सवाल है, जो अक्सर विद्यार्थियों के मन में उठ सकता है कि क्या जीव जंतुओं की तरह पेड़ पौधों में भी स्वजाति भक्षण के लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं? यदि हाँ तो कैसे और क्यों हैं? आइए इसे भी समझने  की कोशिश करते हैं।  


पेड़-पौधों में स्वजाति भक्षण (Cannibalism) का व्यवहार सीधे तौर पर जीव-जंतुओं जैसा स्पष्ट नहीं होता, लेकिन कुछ परिस्थितियों में पौधों के बीच प्रतिस्पर्धा और स्वजातीय अवशोषण के रूप में इसके लक्षण पाए जाते हैं। इसे "प्लांट कैनिबलिज्म" या "इन्ट्रास्पेसिफिक नुट्रिशनल एब्जॉर्प्शन" कहा जा सकता है। यह मुख्यतः निम्नलिखित प्रक्रियाओं में देखा जाता है: 




1. गिरते पत्तों और मृत जैव पदार्थों का अवशोषण (Nutrient Recycling)

पौधे अपने आसपास गिरी हुई पत्तियों, मृत जड़ों और शाखाओं से पोषक तत्वों को पुनः अवशोषित करते हैं।

  • कैसे:

    • जब पौधे अपनी ही पत्तियों को गिराते हैं, तो वह मिट्टी में सड़ती हैं और नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और अन्य पोषक तत्व छोड़ती हैं। पौधे इन्हें जड़ों के माध्यम से पुनः अवशोषित कर लेते हैं।
    • इसे "डिट्रिटस कैनिबलिज्म" भी कहा जा सकता है।
  • उदाहरण:

    • डेविडिया इंवोलुकराटा (Davidia involucrata) जैसे पौधे अपने गिरे हुए पत्तों को पोषक तत्व स्रोत के रूप में उपयोग करते हैं।
  • शोध:

    • Journal of Ecology (2015) ने पाया कि मृत पत्तों और जैविक सामग्री से पोषक तत्वों का पुनःअवशोषण पौधों के पोषण को सुधारता है।

2. बीजों का अवशोषण (Seed Cannibalism)

कुछ पौधे अपने ही बीजों या अंकुरों को नष्ट कर पोषक तत्वों का उपयोग करते हैं।

  • कैसे:
    • प्रतिस्पर्धा को कम करने और संसाधनों को सीमित करने के लिए पौधे कमजोर बीजों को समाप्त करते हैं।
  • उदाहरण:
    • सूरजमुखी (Sunflower) जैसे पौधे कभी-कभी अपने अंकुरों को सड़ाकर पोषक तत्वों के पुनः उपयोग में सक्षम होते हैं।
  • शोध:
    • Plant Biology Journal (2018) ने दर्शाया कि यह व्यवहार उन क्षेत्रों में अधिक देखा जाता है जहां संसाधनों की कमी होती है।

3. जड़ों द्वारा प्रतिस्पर्धी स्वजाति अवशोषण (Root Cannibalism)

कुछ पौधों में जड़ें आस-पास के कमजोर स्वजातीय पौधों से पोषक तत्व खींचने का प्रयास करती हैं।

  • कैसे:
    • पौधे अपने आसपास के कमजोर पौधों की जड़ों से एंजाइम छोड़कर पोषक तत्व खींचते हैं।
  • उदाहरण:
    • कटथोर्न (Acacia) पौधे अपने आसपास की जड़ों से पोषक तत्व अवशोषित करने की क्षमता रखते हैं।
  • शोध:
    • Ecological Research (2021) ने दिखाया कि स्वजातीय पौधों के बीच जड़ प्रतिस्पर्धा से पोषक तत्व चक्र बढ़ता है।

4. एलेलोकेमिकल कैनिबलिज्म (Allelochemical Cannibalism)

कुछ पौधे अपने ही हिस्सों से रसायनिक यौगिक (Allelochemicals) निकालकर आसपास के पौधों को प्रभावित करते हैं।

  • कैसे:
    • यह रसायन अन्य पौधों की वृद्धि को रोककर पोषक तत्वों को नियंत्रित करता है।
  • उदाहरण:
    • सज्जन घास (Sorghum) और नीम (Neem) अपने ही गिरे हुए पत्तों के रसायनों का उपयोग अन्य पौधों पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए करते हैं।
  • शोध:
    • Journal of Plant Interactions (2020) ने बताया कि एलेलोकेमिकल गतिविधि संसाधन-कमी वाले क्षेत्रों में कैनिबलिज्म जैसा प्रभाव पैदा करती है।

5. परजीवी पौधों में स्वजाति भक्षण (Parasitic Plants and Cannibalism)

परजीवी पौधों में कभी-कभी स्वजातीय परजीविता देखी जाती है।

  • कैसे:
    • यह तब होता है जब परजीवी पौधा अपनी ही प्रजाति के पौधे पर निर्भर हो जाता है।
  • उदाहरण:
    • कसकुटा (Cuscuta) जैसे परजीवी पौधे कभी-कभी अपने ही परिवार के पौधों को संसाधन के लिए प्रभावित करते हैं।
  • शोध:
    • American Journal of Botany (2017) ने यह दर्शाया कि परजीवी पौधों में यह व्यवहार पोषण के लिए आवश्यक हो सकता है।

6. कृषि में स्वजाति भक्षण का उपयोग

मल्चिंग (Mulching) और कम्पोस्टिंग जैसी प्रक्रियाओं में किसानों द्वारा पौधों के हिस्सों को मिट्टी में मिलाया जाता है, जिससे अन्य पौधों को पोषण मिलता है।


निष्कर्ष

पेड़-पौधों में स्वजाति भक्षण के लक्षण उनके पोषण, प्रतिस्पर्धा, और विकासात्मक अनुकूलन का हिस्सा हैं।

  • यह व्यवहार संसाधन की कमी, पारिस्थितिक संतुलन और जीवित रहने की अनुकूलन क्षमता का परिणाम है।
  • शोधपत्रों से स्पष्ट है कि यह व्यवहार पौधों में विकास और प्रजातियों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने में सहायक है।

प्रमुख शोधपत्रों के संदर्भ:

  1. Journal of Ecology (2015)
  2. Plant Biology Journal (2018)
  3. Ecological Research (2021)
  4. Journal of Plant Interactions (2020)
  5. American Journal of Botany (2017)

इन अध्ययनों से यह समझा जा सकता है कि पौधों में स्वजाति भक्षण एक प्राकृतिक अनुकूलन प्रक्रिया है।

इसके अलावा अक्सर विद्यार्थियों के मन में यह सवाल उठ सकता है कि कीट भक्षी पादपों का कीटों के माध्यम से नाइट्रोजन या पोषक तत्वों का प्राप्त करना क्या स्वजातीभक्षण से प्रेरित लक्षण है या फिर कुछ और है?

आइए इस सवाल को भी उपयुक्त प्रामाणिक शोधपरक व्याख्या एवं उदाहरणों सहित समझने की कोशिश करते हैं। 

 

कीटभक्षी पादपों (Carnivorous plants) द्वारा कीटों का उपयोग मुख्य रूप से पोषण के वैकल्पिक स्रोत के रूप में किया जाता है, न कि यह स्वजातिभक्षण (Cannibalism) का परिणाम है। इन पौधों का कीटभक्षण व्यवहार उनके पारिस्थितिकीय और पोषक तत्वों की कमी वाले वातावरण में जीवित रहने के अनुकूलन का हिस्सा है। इसे स्वजाति भक्षण से प्रेरित लक्षण नहीं माना जा सकता। इसके कारण और व्याख्या निम्नलिखित हैं:

1. पोषक तत्वों की कमी का कारण

कीटभक्षी पौधे अक्सर उन पारिस्थितिक तंत्रों में पाए जाते हैं जहां मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटैशियम जैसे पोषक तत्वों की अत्यधिक कमी होती है।

  • इन पौधों ने अपने पत्तों और संरचनाओं को इस तरह अनुकूलित कर लिया है कि वे कीटों को फंसाकर उनसे पोषक तत्व प्राप्त कर सकें।

  • उदाहरण:

    • नेपेंथेस (Nepenthes) और सारासेनिया (Sarracenia) ऐसे अम्लीय दलदली क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां मिट्टी पोषक तत्वों से वंचित होती है।
  • शोध:

    • Nature Ecology & Evolution (2018) में प्रकाशित अध्ययन ने दिखाया कि कीटभक्षी पौधों का विकास पोषक तत्वों की कमी वाले वातावरण में अनुकूलन का परिणाम है।

2. स्वजाति भक्षण से अंतर

  • स्वजाति भक्षण (Cannibalism): इसमें जीव अपनी ही प्रजाति के सदस्यों को खाकर पोषण प्राप्त करते हैं।
  • कीटभक्षी पौधे: यह पौधे अपने पोषण के लिए अन्य प्रजातियों (कीटों) का उपयोग करते हैं, न कि अपनी प्रजाति के अन्य पौधों या बीजों का।
  • इसलिए यह व्यवहार स्वजाति भक्षण से अलग है।

3. कीटभक्षी पौधों के शारीरिक अनुकूलन

कीटभक्षी पौधे अपने शिकार को पकड़ने और पचाने के लिए विशेष शारीरिक संरचनाओं का विकास करते हैं:

  • संरचनाएँ:
    • पिचर पत्तियाँ (Pitcher leaves): जैसे नेपेंथेस में।
    • चिपचिपे ट्रैप (Sticky traps): जैसे ड्रोसेरा (Drosera) में।
    • स्नैप ट्रैप: जैसे वीनस फ्लाई ट्रैप (Dionaea muscipula)
  • ये संरचनाएँ पौधों को कीड़ों को पचाने और उनसे पोषक तत्व निकालने में मदद करती हैं।

4. नाइट्रोजन और अन्य पोषक तत्वों का अवशोषण

कीटभक्षी पौधे कीड़ों से नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और अन्य आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त करते हैं।

  • कैसे:

    • कीड़ों के पाचन के दौरान पौधों की विशेष ग्रंथियाँ एंजाइम छोड़ती हैं जो प्रोटीन को तोड़कर नाइट्रोजन और अन्य पोषक तत्व मुक्त करती हैं।
  • उदाहरण:

    • वीनस फ्लाई ट्रैप 30% तक अपनी नाइट्रोजन आवश्यकता शिकार से पूरी करता है।
  • शोध:

    • Journal of Experimental Botany (2017) ने दिखाया कि कीटभक्षी पौधे नाइट्रोजन के लिए विशेष रूप से कीड़ों पर निर्भर करते हैं।

5. पोषण रणनीति: विकासवादी अनुकूलन

कीटभक्षी पौधों का यह व्यवहार विकासवादी अनुकूलन का हिस्सा है।

  • जहां अन्य पौधे मिट्टी से पोषक तत्व प्राप्त करते हैं, वहां कीटभक्षी पौधों ने कीड़ों के माध्यम से पोषण का तरीका विकसित किया।

  • उदाहरण:

    • यूट्रीकुलेरिया (Utricularia): यह पौधा जलीय कीड़ों को पकड़कर पोषण प्राप्त करता है।
  • शोध:

    • Evolutionary Biology Journal (2020) ने बताया कि यह रणनीति उन पारिस्थितिकी तंत्रों में विकसित हुई जहां पोषक तत्व सीमित थे।

6. कीटभक्षी पौधों का मानव उपयोग

  • कृषि: पोषक तत्वों की कमी वाले क्षेत्रों में इन पौधों का उपयोग किया जाता है।
  • अनुसंधान: इन पौधों की पाचन प्रणाली का उपयोग एंजाइम विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी में हो रहा है।

निष्कर्ष

कीटभक्षी पौधों का कीटों से पोषक तत्व प्राप्त करना पोषण की कमी वाले वातावरण में अनुकूलन का हिस्सा है, न कि यह स्वजाति भक्षण का परिणाम है। यह व्यवहार पारिस्थितिकीय और विकासवादी दबावों का उत्तर है।

प्रमुख शोधपत्रों के संदर्भ:

  1. Nature Ecology & Evolution (2018)
  2. Journal of Experimental Botany (2017)
  3. Evolutionary Biology Journal (2020)

इन अध्ययनों से यह स्पष्ट है कि कीटभक्षी पौधों का यह व्यवहार उनकी जीवित रहने की अद्वितीय रणनीति का हिस्सा है। 

इस तरह हम Cannibalism की पूरी कहानी को समझ सकते हैं। आशा करता हूँ कि आपको ये लेख पसंद आएगा। यदि आपको लेख के संबंध में कुछ भी महसूस हो या आपने कहीं भी इस तरह की घटना देखी हो तो जरूर कमेन्ट बॉक्स में लिखना।  

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विशेष घटना:   

में कल 29 दिसंबर 2024 को रात 10:30 PM पर जब इस लेख को लिख रहा था तभी घर के सामने Cannibalism की घटना से रूबरू होने का मौका मिला। पूरी घटना को मैंने अपने Facebook अकाउंट पर विस्तार से लिखा है। जिसकी लिंक में नीचे दे रहा हूँ। जरूर पढ़ें, आपको अच्छा लगेगा। https://www.facebook.com/share/p/18J1Qnd1fy/

इसे प्रकृति का आश्चर्य कहें या संयोग कहें कि में जब थोड़ी ही देर पहले करीब 10:30 PM पर अपने ब्लॉग "Scientia: A Corpus of Human Knowledge" के लिए "Cannibalism" यानी "स्वजातिभक्षण" पर एक लेख ही लिख रहा था कि बाहर से अचानक ही घर के सामने ही ब्याही कुतिया के पिल्ले की रोने/चिल्लाने की आवाज आई। में तुरंत ही बाहर गया तो देखा कि कुतिया अपने ही कमजोर बच्चे को, मोहल्ले के बच्चों द्वारा बनाये गए घर के अंदर ही अंदर उसे मारने का प्रयास कर रही थी। जब मैंने उसे एक डंडा लेकर डाँटा और बाहर की ओर निकाला तो समझ आया कि वो भूखी थी, तुरंत ही बिटिया से एक रोटी जो बच गई थी और कुछ 05 या 06 ब्रेड के पीस थे उनको उसे खिलाया तब जाकर वो शांत हुई। वर्ना उस कमजोर बच्चे का मरना तय था शायद। में इसे फिलहाल अपने द्वारा किये गए प्रयास की सफलता कह सकता हूँ, पर यह सफलता कब तक रहेगी यह सुनिश्चित नहीं है। क्योंकि यह उनकी आहार श्रृंखला का हिस्सा है, जिसे हम स्वजाति भक्षण या Cannibalism कहते हैं। जो भी हो हम प्रकृति को अभी तक पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं। लेकिन यह तय है कि हमारी प्रकृति के साथ बड़े ही ग़ज़ब की और अनोखी बॉन्डिंग होती है। वर्ना ऐसा शायद ही देखने को मिले कि आप जिस टॉपिक पर लेख लिख रहे हों और वो आपके सामने ही घटित हो जाये या होने वाली हो। ऐसा तभी संभव है जबकि हमारी इंद्रियों के साथ प्रकृति से सामंजस्य बैठ जाये। खैर जो भी हो, यह भी अध्ययन का विषय है कि ऐसा होता है? और क्यों होता है? या कैसे घटित हो जाता है? यह अभी मेरे लिए रहष्य ही है, हालांकि इस संबंध में पढ़ा तो काफी है पर फिर भी नाकाफी है। लेख के लिए पढ़ना तो पढ़ेगा ही। cannibalism के संबंध में इसे और भी जानने की कोशिश अवश्य करूँगा। जल्दी ही इस पर आर्टिकल आपके समक्ष होगा।


टिप्पणी:-

आपको हमारा ये लेख कैसा लगा? आप अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणियों द्वारा हमें अवगत जरूर कराएँ। साथ ही हमें किन विषयों पर और लिखना चाहिए या फिर आप लेख में किस तरह की कमी देखते हैं वो जरूर लिखें ताकि हम और सुधार कर सकें। आशा करते हैं कि आप अपनी राय से हमें जरूर अवगत कराएंगे। धन्यवाद !!!!!

लेखक:-

डॉ. प्रदीप सोलंकी 

  " मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ। " - डेसकार्टेस 

विज्ञान शिक्षक, शिक्षाविद, प्राणिविद, पर्यावरणविद, ऐस्ट्रोनोमर, करिअर काउन्सलर, ब्लॉगर, यूट्यूबर, एवं पूर्व सदस्य  टीचर्स हैन्ड्बुक कमिटी सीएम राइज़ स्कूल्स एवं पीएम श्री स्कूल्स परियोजना तथा पर्यावरण शिक्षण समिति, माध्यमिक शिक्षा मण्डल भोपाल मध्यप्रदेश 



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