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शनिवार, 28 दिसंबर 2024

केंट होविंड ने एक चौंकाने वाला सच बताया, "सुबह 4 बजे पक्षियों का चहचहाना दरअसल पौधों को जगा रहा है।"

केंट होविंड ने एक चौंकाने वाला सच बताया, "सुबह 4 बजे पक्षियों का चहचहाना दरअसल पौधों को जगा रहा है।"

जिस व्यक्ति ने यह बात कही वह अपनी विवादास्पद टिप्पणियों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका नाम है केंट ई. होविंद, एक अमेरिकी ईसाई कट्टरपंथी प्रचारक और कर रक्षक हैं। वह युवा पृथ्वी सृजनवादी आंदोलन में एक विवादास्पद व्यक्ति हैं, जिनका मंत्रालय बाइबिल में पाए गए उत्पत्ति निर्माण कथा की शाब्दिक व्याख्या के पक्ष में जीव विज्ञान, भूभौतिकी और ब्रह्मांड विज्ञान के क्षेत्र में वैज्ञानिक सिद्धांतों को नकारने पर केंद्रित है। इंटरनेट पर इनके बारे में काफी कुछ है और विकिपिडिया पर इनकी डिटेल्स बेहतर तरीके से जान सकते हैं।  अंत में, और सबसे महत्वपूर्ण बात, हमें यह समझना चाहिए कि होविंद विज्ञान के प्रति एक ऐसे दृष्टिकोण को अपना रहे हैं और उसे प्रभावी ढंग से व्यक्त कर रहे हैं जो न केवल सांस्कृतिक रूप से निहित है, बल्कि दार्शनिक रूप से सिद्धांतबद्ध भी है। उत्तर-आधुनिकतावादी दर्शन और विज्ञान अध्ययनों के भीतर एक पूरी परंपरा है जो "ज्ञानोदय विज्ञान" के प्रति एक निश्चित रूप से उभयनिष्ठ दृष्टिकोण रखती है। यह परंपरा विको और हर्डर से लेकर हाइडेगर और फ्रैंकफर्ट स्कूल से लेकर फौकॉल्ट तक फैली हुई है। बाद के सभी बहु-विविध कार्यों का केंद्रीय विषय चिकित्सा, कानूनी और राजनीतिक विज्ञानों द्वारा हमें प्रदान की गई झूठी मुक्ति है। अपने काम,  द ऑर्डर ऑफ़ थिंग्स में , फौकॉल्ट लिखते हैं:

हम यह मानने के लिए प्रवृत्त हैं कि मनुष्य ने स्वयं से स्वयं को मुक्त कर लिया है, क्योंकि उसने यह खोज कर ली है कि वह न तो सृष्टि के केन्द्र में है, न ही अन्तरिक्ष के मध्य में है, और न ही शायद जीवन के शिखर और चरमोत्कर्ष पर है; लेकिन यद्यपि मनुष्य अब संसार के राज्य में संप्रभु नहीं है, यद्यपि वह अब अस्तित्व के केन्द्र में शासन नहीं करता है, फिर भी मानव विज्ञान खतरनाक मध्यस्थ हैं।


Kent Hovind का यह दावा कि "सुबह 4 बजे पक्षियों का चहचहाना पौधों को जगाने का काम करता है" एक रोचक विचार हो सकता है, लेकिन इसे प्रमाणित करने के लिए ठोस वैज्ञानिक प्रमाणों की आवश्यकता है। इस विषय पर अब तक जो शोध हुआ है, उसमें पक्षियों के चहचहाने और पौधों पर उनके प्रभाव को लेकर निम्नलिखित पहलुओं पर चर्चा की गई है:

1. पक्षियों का चहचहाना और पौधों का परस्पर संबंध

  • पक्षियों का सुबह जल्दी चहचहाना मुख्य रूप से संचार, प्रजनन और क्षेत्र चिह्नित करने से संबंधित है। यह प्राकृतिक प्रक्रिया सूर्य के उगने से पहले शुरू होती है।
  • कुछ अध्ययन संकेत देते हैं कि ध्वनि तरंगें (जैसे संगीत, कंपन या चहचहाने की आवाज़) पौधों की वृद्धि और विकास पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं। यह प्रभाव पौधों के कोशिका विभाजन और एंजाइम गतिविधियों को उत्तेजित करने से जुड़ा हो सकता है।

2. ध्वनि का पौधों पर प्रभाव

  • ध्वनि विज्ञान और पौधे: एक अध्ययन के अनुसार, ध्वनि तरंगें पौधों में जड़ वृद्धि, अंकुरण, और कुछ हार्मोन्स (जैसे ऑक्सिन) को सक्रिय कर सकती हैं।
  • शोध उदाहरण:
    • South China Agricultural University (2010) ने पाया कि संगीत और ध्वनि कंपन गेहूं की जड़ों और बीज अंकुरण को बढ़ावा दे सकते हैं।
    • The Journal of Integrative Agriculture (2017) ने यह दावा किया कि ध्वनि कंपन पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकती हैं।

3. क्या पक्षियों का चहचहाना पौधों को "जगाता" है?

  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, पौधे प्रकाश की तीव्रता और अवधि (फोटोपीरियड) के आधार पर अपनी गतिविधियाँ नियंत्रित करते हैं।
  • सुबह के समय सूर्य की रोशनी की तीव्रता जैसे-जैसे बढ़ती है, पौधे सक्रिय होते हैं (जैसे स्टोमाटा खुलना और प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया)।
  • पक्षियों का चहचहाना पौधों पर अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डाल सकता है, क्योंकि यह एक प्राकृतिक संकेत है कि दिन शुरू हो रहा है।

4. सीधे प्रभाव का प्रमाण

वर्तमान में ऐसा कोई प्रत्यक्ष वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है जो यह स्थापित कर सके कि पक्षियों का चहचहाना पौधों को "जगाने" का कार्य करता है। यह दावा अधिक संभावना है कि ध्वनि तरंगों के अप्रत्यक्ष प्रभाव के साथ जुड़ा हो सकता है।

5. क्या यह सत्य है?

कुल मिलाकर, पक्षियों के चहचहाने और पौधों की गतिविधियों के बीच संबंध संभावित है, लेकिन इसे साबित करने के लिए अभी और गहन शोध की आवश्यकता है।

उदाहरण और संदर्भ

  1. Journal of Integrative Agriculture, 2017: ध्वनि कंपन और पौधों की वृद्धि।
  2. South China Agricultural University, 2010: संगीत का पौधों की जड़ों पर प्रभाव।
  3. Plant Communication: पौधों की प्रतिक्रियाएँ ध्वनि और पर्यावरणीय संकेतों पर।

पक्षियों का सुबह चहचहाना निश्चित रूप से पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे पौधों को जगाने के सीधे कारण के रूप में मानने से पहले वैज्ञानिक प्रमाणों की आवश्यकता है। यदि आप इस विषय पर गहराई से शोध करना चाहते हैं, तो कृषि ध्वनिकी (Agricultural Acoustics) और बायोम्यूजिकोलॉजी (Biomusicology) पर केंद्रित अध्ययन मददगार हो सकते हैं।

अब सवाल यह उठता है कि क्या Agricultural Acoustics और Biomusicology से सम्बंधित ऐसे कोई शोधपत्र हैं जो पक्षियों के चहचहाने का संबंध पौधों को जगाने या उनके स्टोमेटा के खुलने एवं बंद होने से संबंधित हो?

वर्तमान में, पक्षियों के चहचहाने और पौधों के स्टोमेटा (रंध्र) के खुलने या बंद होने के बीच सीधे संबंध पर केंद्रित शोध सीमित है। हालांकि, ध्वनि तरंगों का पौधों पर प्रभाव एक अध्ययन का विषय रहा है। उदाहरण के लिए, कुछ शोधों में पाया गया है कि ध्वनि तरंगें पौधों की वृद्धि और विकास को प्रभावित कर सकती हैं। हालांकि, इन अध्ययनों में स्टोमेटा की गतिविधियों पर ध्वनि के प्रभाव की विशेष रूप से जांच नहीं की गई है।

स्टोमेटा के खुलने और बंद होने की प्रक्रिया मुख्य रूप से रक्षक कोशिकाओं की सक्रियता पर निर्भर करती है। जब ये कोशिकाएं स्फीत (टर्गिड) होती हैं, तो रंध्र खुलते हैं, और जब वे हौली (फ्लेसिड) होती हैं, तो रंध्र बंद हो जाते हैं। यह प्रक्रिया पौधों में जल संतुलन और गैस विनिमय के लिए महत्वपूर्ण है।

यदि आप इस क्षेत्र में गहराई से अध्ययन करना चाहते हैं, तो 'प्लांट एकॉस्टिक्स' और 'बायोम्यूजिकोलॉजी' के अंतर्गत ध्वनि और पौधों के बीच परस्पर क्रिया पर केंद्रित शोधपत्रों की खोज कर सकते हैं। हालांकि, पक्षियों के चहचहाने और स्टोमेटा की गतिविधियों के बीच सीधे संबंध पर वर्तमान में सीमित जानकारी उपलब्ध है। हालांकि स्टोमेटा, गुटेशन, और ब्लीडिंग से संबंधित अधिक जानकारी के लिए, यूट्यूब पर बहुत सारे वीडियो देखे जा सकते हैं।
 
पक्षियों के चहचहाने का संबंध मनुष्यों के प्राकृतिक वातावरण एवं उनकी दैनिक गतिविधियों से जरूर हो सकता है। इस संबंध में शोधपरक जानकारी के लिए और भी विस्तार से अध्ययन की आवश्यकता को समझते हुए आइए कुछ और जानने की कोशिश करते हैं? 

पक्षियों के चहचहाने और उनके मनुष्यों के प्राकृतिक वातावरण तथा दैनिक गतिविधियों पर प्रभाव को लेकर काफी अध्ययन हुए हैं। ये अध्ययन पर्यावरणीय ध्वनियों, जैव विविधता, और मानवीय स्वास्थ्य एवं मनोविज्ञान के बीच संबंधों को समझने का प्रयास करते हैं। नीचे कुछ शोधपरक जानकारी दी गई है:

1. पक्षियों के चहचहाने का मनोवैज्ञानिक प्रभाव

  • मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: पक्षियों के चहचहाने की आवाज़ तनाव को कम करने और मन की शांति बढ़ाने में मददगार हो सकती है।
    • एक अध्ययन (Proceedings of the National Academy of Sciences, 2021) में यह पाया गया कि प्राकृतिक ध्वनियाँ, विशेष रूप से पक्षियों की आवाज़ें, मानसिक स्वास्थ्य में सुधार और तनाव के स्तर को कम करने में सहायक होती हैं।
  • सकारात्मक मूड: पक्षियों के चहचहाने को "बायोफिलिक डिज़ाइन" (Biophilic Design) में शामिल किया गया है, जो मनुष्यों में सकारात्मक भावनाएँ पैदा करने के लिए प्रकृति से जुड़ाव को बढ़ावा देता है।

2. मानव दिनचर्या और पक्षियों का चहचहाना

  • सुबह की शुरुआत का संकेत: पक्षियों का चहचहाना सूर्य के उगने से पहले शुरू होता है, जो मनुष्यों के लिए सुबह की शुरुआत का संकेत बनता है। यह प्राकृतिक अलार्म घड़ी की तरह कार्य करता है।
  • शहरी जीवन में महत्व: शहरी वातावरण में, जहाँ कृत्रिम ध्वनियाँ (जैसे वाहन और मशीनों की आवाज़) हावी होती हैं, पक्षियों के चहचहाने से लोग प्रकृति से जुड़ाव महसूस करते हैं।
    • शोधकर्ताओं ने पाया है कि शहरी क्षेत्रों में पक्षियों की विविधता और उनकी ध्वनियाँ मनुष्यों के मानसिक कल्याण में योगदान करती हैं।

3. पर्यावरण और जैव विविधता पर प्रभाव

  • पारिस्थितिक संकेतक: पक्षियों के चहचहाने का उपयोग पारिस्थितिक संतुलन और जैव विविधता का आकलन करने के लिए किया जाता है।
    • यदि किसी क्षेत्र में पक्षियों का चहचहाना कम हो रहा है, तो यह पर्यावरणीय समस्याओं (जैसे वनों की कटाई, प्रदूषण) का संकेत हो सकता है।
  • कृषि में भूमिका: पक्षियों के चहचहाने से किसानों को यह समझने में मदद मिलती है कि सुबह का समय हो गया है, जो कृषि कार्यों के लिए आदर्श समय हो सकता है।

4. मानव शरीर पर प्रभाव

  • सर्केडियन रिद्म (Circadian Rhythm): पक्षियों का चहचहाना सर्केडियन रिद्म को नियमित करने में सहायक हो सकता है। यह प्राकृतिक ध्वनि मेलाटोनिन हार्मोन को नियंत्रित करने और नींद-जागने के चक्र को सुधारने में मदद करती है।
  • ध्यान और योग में उपयोग: ध्यान और योग अभ्यासों में पक्षियों की आवाज़ का उपयोग किया जाता है, क्योंकि यह एकाग्रता और मानसिक शांति में सहायक होती है।

5. उदाहरण और अध्ययन

  • Ecological Indicators Journal (2018): पक्षियों की ध्वनियों का उपयोग पर्यावरणीय स्वास्थ्य के संकेतकों के रूप में किया जाता है।
  • Frontiers in Psychology (2017): पक्षियों की ध्वनियों ने प्रतिभागियों में तनाव के स्तर को कम करने और मानसिक स्पष्टता बढ़ाने में मदद की।
  • University of Exeter Study (2022): यह अध्ययन बताता है कि सुबह पक्षियों की ध्वनियों से जुड़ाव अधिक खुशी और सकारात्मकता का अनुभव करा सकता है।

निष्कर्ष

पक्षियों का चहचहाना मनुष्यों के प्राकृतिक वातावरण और दैनिक गतिविधियों में सकारात्मक प्रभाव डालता है। यह न केवल जैव विविधता का संकेतक है, बल्कि मनुष्य के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को भी सुधारता है। इसके अलावा, यह मनुष्य और प्रकृति के बीच संबंध को गहरा करता है।

यदि आप और विस्तृत शोध पढ़ना चाहते हैं, तो पर्यावरणीय ध्वनियों और उनके प्रभावों पर केंद्रित शोधपत्रों को देखें, जैसे कि "Ecological Indicators" और "Frontiers in Psychology"

References:  

Doubtnuthttps://www.doubtnut.com

Wikipedia & Internet Websites 

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लेखक:-

डॉ. प्रदीप सोलंकी 

  " मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ। " - डेसकार्टेस 

विज्ञान शिक्षक, शिक्षाविद, प्राणिविद, पर्यावरणविद, ऐस्ट्रोनोमर, करिअर काउन्सलर, ब्लॉगर, यूट्यूबर, एवं पूर्व सदस्य  टीचर्स हैन्ड्बुक कमिटी सीएम राइज़ स्कूल्स एवं पीएम श्री स्कूल्स परियोजना तथा पर्यावरण शिक्षण समिति, माध्यमिक शिक्षा मण्डल भोपाल मध्यप्रदेश  



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