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शुक्रवार, 3 जनवरी 2025

"अनाज-प्रधान आहार का पोषणीय प्रभाव: अधिक मल त्याग और कम अवशोषण के कारण एवं समाधान"

 "अनाज-प्रधान आहार का पोषणीय प्रभाव: अधिक मल त्याग और कम अवशोषण के कारण एवं समाधान"

"Nutritional impact of a cereal-based diet: Causes and solutions for increased bowel movement and reduced absorption"

भारत और अन्य देशों में, जहां मुख्य आहार अनाज-आधारित है, वहां मल त्याग का अधिक होना आहार की संरचना और पोषण तत्वों की अनुपातिक कमी से संबंधित है। इस विषय पर किए गए शोध और वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर निम्नलिखित जानकारी दी जा सकती है:


1. अनाज-आधारित आहार और फाइबर की उच्च मात्रा

  • अनाज (जैसे चावल, गेहूं, जौ, मक्का) में कार्बोहाइड्रेट और फाइबर की मात्रा अधिक होती है।
  • फाइबर का मुख्य कार्य आंतों की सफाई करना और मल को नरम बनाना है, लेकिन यह पचता नहीं है और शरीर इसे ऊर्जा या पोषण के रूप में उपयोग नहीं कर सकता।
  • शोध: फाइबर युक्त आहार मल के वॉल्यूम को बढ़ाता है। उच्च-फाइबर आहार लेने वाले व्यक्तियों में मल त्याग की आवृत्ति और मात्रा बढ़ जाती है।

2. पोषक तत्वों की कम जैव उपलब्धता

  • अनाज में मौजूद कुछ एंटी-न्यूट्रिएंट्स (जैसे फाइटिक एसिड) खनिजों और पोषक तत्वों के अवशोषण को बाधित करते हैं।
  • नतीजतन, आहार का बड़ा हिस्सा पचने से पहले मल के रूप में बाहर निकल जाता है।
  • उदाहरण: एक अध्ययन में पाया गया कि चावल और गेहूं आधारित आहार में लोहे और कैल्शियम का अवशोषण कम होता है।

3. प्रोटीन की कमी

  • प्रोटीन का पाचन और अवशोषण अधिक प्रभावी होता है, और इसका अधिकांश हिस्सा शरीर में उपयोग हो जाता है।
  • भारत और अन्य अनाज-प्रधान देशों में प्रोटीन (विशेष रूप से उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन) का सेवन कम होता है।
  • शोध: WHO के अनुसार, विकासशील देशों में आहार का केवल 10-15% हिस्सा प्रोटीन से आता है, जबकि विकसित देशों में यह प्रतिशत अधिक है।

4. आहार विविधता का अभाव

  • मुख्य रूप से अनाज पर आधारित आहार में आवश्यक विटामिन, खनिज, और फैट की कमी होती है।
  • फल, सब्जी, और पशु-आधारित प्रोटीन की कम खपत से आंतों की प्रक्रिया अप्रभावी हो जाती है।
  • उदाहरण: भारत में शाकाहारी भोजन के कारण फैट और प्रोटीन का सेवन सीमित होता है, जिससे आंतों में पोषक तत्वों का अवशोषण प्रभावित होता है।

5. शारीरिक और सामाजिक प्रभाव

  • उच्च मात्रा में मल त्याग से पोषण की कमी, कुपोषण, और पाचन समस्याएं हो सकती हैं।
  • उदाहरण: भारत में मल्टी-ड्रग रेजिस्टेंट इन्फेक्शन्स और डायरिया जैसी समस्याएं भी आहार की संरचना से जुड़ी हो सकती हैं।

6. वैज्ञानिक समाधान और सुझाव

  • आहार विविधता: अनाज के साथ दालें, बीन्स, नट्स, और पशु उत्पादों (दूध, अंडे) को शामिल करना।
  • फोर्टिफिकेशन: अनाज का विटामिन और खनिजों से फोर्टिफिकेशन करना।
  • फर्मेंटेशन: अनाज को फर्मेंट करके पोषक तत्वों की जैव उपलब्धता बढ़ाई जा सकती है।
  • शोध: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (NIN), हैदराबाद, ने अनाज-आधारित आहार के पोषण स्तर को सुधारने के लिए अध्ययन किए हैं।

निष्कर्ष:

अनाज-प्रधान आहार का बड़ा हिस्सा मल के रूप में बाहर निकलने का मुख्य कारण पोषण तत्वों का सीमित अवशोषण और प्रोटीन की कमी है। फाइबर और एंटी-न्यूट्रिएंट्स जैसे तत्व इस प्रक्रिया को और जटिल बनाते हैं। आहार में विविधता और संतुलन लाने से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।

अब सवाल ये उठता है कि - क्या इस संबंध में आहार-प्रक्रिया को लेकर क्या भारत में किसी प्रकार का अध्ययन हुआ है?

भारत में आहार-प्रक्रिया और पोषण संबंधी कई महत्वपूर्ण अध्ययन हुए हैं, जो अनाज-प्रधान आहार के प्रभाव और पोषक तत्वों की उपलब्धता पर केंद्रित हैं। प्रमुख अध्ययनों और निष्कर्षों का सारांश निम्नलिखित है:


1.
कोलुथुर गोपालन का अनुसंधान

प्रसिद्ध पोषण वैज्ञानिक कोलुथुर गोपालन (1918–2019) ने भारतीय खाद्य पदार्थों के पोषण मूल्यों का व्यापक विश्लेषण किया। उन्होंने 500 से अधिक खाद्य पदार्थों का अध्ययन कर भारतीय संदर्भ में उपयुक्त आहार की संस्तुति की। उनके नेतृत्व में किए गए सर्वेक्षणों में प्रोटीन, ऊर्जा, और अन्य खाद्य घटकों की कमियों की पहचान की गई, जिससे 2002 में मध्याह्न भोजन योजना (अब 'प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना') लागू की गई।

2. लैंसेट ग्लोबल हेल्थ अध्ययन

हाल ही में 'लैंसेट ग्लोबल हेल्थ' जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने भारतीय आबादी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को उजागर किया है। इस अध्ययन के अनुसार, भारत में लोग आयरन, कैल्शियम, और फोलेट जैसे महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का सामना कर रहे हैं, जो उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं।

3. हरित क्रांति और पोषण सुरक्षा पर प्रभाव

कुछ अध्ययनों ने संकेत दिया है कि हरित क्रांति के दौरान विकसित की गई ऊंची पैदावार वाली फसल किस्मों में खनिज तत्वों की मात्रा कम हो गई। इससे अनाज में जिंक और आयरन जैसे महत्वपूर्ण खनिजों की उपलब्धता में कमी आई है, जो पोषण सुरक्षा के लिए चुनौती प्रस्तुत करता है।

4. राष्ट्रीय पोषण संस्थान (NIN) की पहल

हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय पोषण संस्थान (NIN) ने 'मेरी आज की थाली' नामक पहल के माध्यम से संतुलित आहार के महत्व पर जागरूकता बढ़ाई है। इस पहल में विभिन्न खाद्य समूहों की अनुशंसित मात्रा और उनके पोषण मूल्य के बारे में जानकारी प्रदान की गई है, जिससे लोगों को संतुलित आहार अपनाने में सहायता मिलती है।

5. पोषक अनाजों का पोषण मूल्य

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि सामान्यतः प्रयुक्त अनाज जैसे चावल, गेहूं, और मक्का की तुलना में पौष्टिक अनाजों (मिलेट्स) में बेहतर पौष्टिक गुणवत्ता होती है। इन अनाजों में ऊर्जा, प्रोटीन, और खनिज तत्वों की मात्रा अधिक होती है, जो आहार में विविधता लाने में सहायक हो सकते हैं।

निष्कर्ष

इन अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि भारत में अनाज-प्रधान आहार के कारण पोषक तत्वों की कमी एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्या है। संतुलित और विविध आहार अपनाने, जिसमें फल, सब्जियां, दालें, और पशु-आधारित उत्पाद शामिल हों, से इस समस्या का समाधान संभव है। सरकारी योजनाएं और जागरूकता कार्यक्रम इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

यहाँ एक सवाल ये भी उठता है कि- क्या एशियाई देशों में अनाज की खपत एवं उचित आहार प्रक्रिया तथा पोषण के उचित मानकों को लेकर कोई वैश्विक अध्ययन किये गए ?

जी हाँ, सरकारी जनहित की खाद्य संबंधी योजनाओं को लागू करने भारत सहित एशियाई देशों में अनाज की खपत, आहार प्रक्रियाएं, और पोषण मानकों पर कई वैश्विक संस्थानों द्वारा अध्ययन किए गए हैं। प्रमुख निष्कर्ष निम्नलिखित हैं:


1. पोषक अनाजों (मिलेट्स) का महत्व

एशिया और अफ्रीका में मिलेट्स को मुख्यधारा में लाने के लिए नीति आयोग और संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) ने मिलकर पहल की है। इसका उद्देश्य मिलेट्स की खेती और खपत को बढ़ावा देना है, जिससे खाद्य और पोषण सुरक्षा में सुधार हो सके।

2. वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट 2024

अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की खपत बढ़ रही है, जिससे कुपोषण और मोटापे की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुपोषण से पीड़ित जनसंख्या का अनुपात 2011 में 15.4% से बढ़कर 2021 तक 16.6% हो गया है।

3. स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड 2024

इस रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में लगभग 2.33 बिलियन लोगों को मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा। भारत में 194.6 मिलियन कुपोषित व्यक्ति हैं, जो विश्व में सबसे अधिक हैं। इसके अलावा, 55.6% भारतीय पोषक आहार का खर्च वहन नहीं कर सकते।

4. अनाजों में पोषक तत्वों की कमी

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिकों ने आधुनिक किस्मों के गेहूं और चावल के पोषण मूल्य की जांच की है। अध्ययन में पाया गया कि इन अनाजों में पोषक तत्वों की मात्रा कम हो गई है, जिससे शरीर को आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिल पा रहे हैं।

5. मिलेट्स का उत्पादन और खपत

भारत मिलेट्स के उत्पादन में प्रमुख भूमिका निभाता है, जो एशिया के 80% मिलेट्स का उत्पादन करता है। मिलेट्स की खपत बढ़ाने से पोषण सुरक्षा में सुधार हो सकता है।

निष्कर्ष

इन अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि एशियाई देशों में अनाज की खपत और पोषण मानकों के बीच सीधा संबंध है। पोषक अनाजों की खपत बढ़ाने, आहार विविधता अपनाने, और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की खपत कम करने से पोषण संबंधी चुनौतियों का समाधान किया जा सकता है।

क्या भारत में त्यागे जाने वाले मल का कभी रासायनिक विश्लेषण किया गया है, जिससे उनके आहार के बारे में जानकारी मिलती हो?

भारत में मानव मल के रासायनिक विश्लेषण पर सीमित अध्ययन उपलब्ध हैं। हालांकि, सामान्यतः मल के रासायनिक घटकों का विश्लेषण आहार की गुणवत्ता और पाचन तंत्र की कार्यप्रणाली के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। भारत में मल का रासायनिक विश्लेषण कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों और शोधों के अंतर्गत किया गया है। इन विश्लेषणों का मुख्य उद्देश्य यह समझना होता है कि आहार में खपत होने वाले पोषक तत्वों का शरीर में कितनी मात्रा में अवशोषण होता है और बाकी तत्व मल के रूप में बाहर निकलते हैं। इस प्रकार के विश्लेषणों से निम्नलिखित महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है:



1.
आहार में फाइबर का योगदान:
  • भारत में कई क्षेत्रों में विशेष रूप से अनाज जैसे चावल, गेहूं, और दालों का अधिक सेवन किया जाता है, जो शरीर में रेजीड्यूल फाइबर का स्रोत होते हैं।
  • मल के रासायनिक विश्लेषण में पाया गया कि भारतीय आहार में रेजीड्यूल फाइबर की उच्च मात्रा होती है, जो पाचन क्रिया को सुगम बनाती है, लेकिन यह अधिक मल का कारण भी बनता है। फाइबर शरीर द्वारा पूरी तरह से अवशोषित नहीं हो पाता और बाहर निकल जाता है।

2. प्रोटीन और वसा की कमी:

  • भारतीय आहार में प्रोटीन और वसा की कम खपत की समस्या भी सामने आई है। विशेष रूप से शाकाहारी आहार में प्रोटीन की कमी होती है, जो शरीर के ऊतकों के निर्माण और मरम्मत के लिए आवश्यक है।
  • रासायनिक विश्लेषणों में यह पाया गया कि भारतीय आहार में प्रोटीन का अवशोषण कम होता है, जिससे शरीर में पोषक तत्वों का संतुलन गड़बड़ाता है और अनावश्यक तत्व मल के रूप में बाहर निकलते हैं।

3. मिनरल्स और विटामिन्स की कमी:

  • भारत में आहार में मिनरल्स (जैसे कैल्शियम, आयरन) और विटामिन्स (विशेष रूप से विटामिन B12) की कमी देखी जाती है। यह मल के रासायनिक विश्लेषणों में भी देखा गया, जहां मल में इन पोषक तत्वों के स्तर का विश्लेषण किया गया और पाया गया कि शरीर इन्हें पूर्ण रूप से अवशोषित नहीं कर पा रहा है।
  • इसके परिणामस्वरूप, इन पोषक तत्वों का कुछ हिस्सा मल में अनवांछित रूप से निकलता है।

4. कैलोरी अवशोषण में कमी:

  • कुछ अध्ययनों में यह पाया गया कि भारतीय आहार में कैलोरी का अवशोषण भी अपेक्षाकृत कम होता है। खासकर जब लोग पारंपरिक आहार खाते हैं जिसमें अनाज और रेशेदार खाद्य पदार्थ अधिक होते हैं, तो मल में अधिक कैलोरी बाहर निकलने का कारण बनती है।
  • इस प्रकार, भारत में मल का रासायनिक विश्लेषण यह संकेत करता है कि शरीर में कैलोरी अवशोषण की दक्षता में कमी है, जिससे अत्यधिक मल त्याग होता है।

5. मल के रासायनिक तत्व:

  • भारत में विभिन्न शोधों ने मल के रासायनिक तत्वों का विश्लेषण किया है, जैसे कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, वसा, और लवण। इन तत्वों के विश्लेषण से यह जानकारी मिली है कि आहार में इनकी संतुलित मात्रा नहीं होने के कारण शरीर को पूरे पोषक तत्व नहीं मिल पाते, और इससे अधिक मल का उत्पादन होता है।
  • विशेष रूप से, शाकाहारी आहार में वसा और प्रोटीन की कम खपत के कारण मल में फैटी एसिड्स और कुछ अपचनीय तत्व अधिक होते हैं।

निष्कर्ष:

मल के रासायनिक विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय आहार में उच्च मात्रा में रेजीड्यूल फाइबर, प्रोटीन और वसा की कमी, और कुछ माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की अपर्याप्तता के कारण अधिक मल त्याग होता है। यह आहार के पोषणीय असंतुलन का परिणाम है और इससे शरीर में पोषक तत्वों का अवशोषण भी कम होता है। इन मुद्दों को सुधारने के लिए आहार में सुधार और संतुलित पोषण की आवश्यकता है।

स्रोत एवं संदर्भ 

  •  - एनसीईआरटी 
  • - कृषक जगत 
  • --पत्रिका 
  • - NIN 
  • - अपनी पाठशाला 
  • - डाउन टू अर्थ (हिन्दी)
  • - नीति आयोग (वेबसाईट)
  • - रेस आईएएस & दृष्टि आईएएस  

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लेखक:-

डॉ. प्रदीप सोलंकी 

  " मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ। " - डेसकार्टेस 

विज्ञान शिक्षक, शिक्षाविद, प्राणिविद, पर्यावरणविद, ऐस्ट्रोनोमर, करिअर काउन्सलर, ब्लॉगर, यूट्यूबर, एवं पूर्व सदस्य  टीचर्स हैन्ड्बुक कमिटी सीएम राइज़ स्कूल्स एवं पीएम श्री स्कूल्स परियोजना तथा पर्यावरण शिक्षण समिति, माध्यमिक शिक्षा मण्डल भोपाल मध्यप्रदेश 


 

 

 

 

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