मुर्गियों में कैल्शियम चयापचय, अंडे के खोल निर्माण एवं जैव-परिवर्तन की वैज्ञानिक समीक्षा
मुर्गियों में कैल्शियम चयापचय, अंडे के खोल निर्माण एवं ‘बायो-ट्रांस्म्यूटेशन’ दावों का वैज्ञानिक विश्लेषण
हमारे देश में यह चर्चा हमेशा से रही है कि आखिर मुर्गियों में इतना Calcium कहाँ से आता है कि वे रोज एक अंडा बना सकें ? चलिए आज इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि मुर्गियाँ कैसे अपने शरीर में इतना कैल्सीयम एकत्रित करती हैं, Bio-Transformation के जरिए या फिर Bio-Transmutation के जरिए ? या फिर कुछ और ही कहानी है -
मुर्गियों में आहार से कैल्शियम अवशोषण एवं अंडे के खोल निर्माण का विज्ञान
कैल्शियम स्रोत एवं आंतीय अवशोषण
कमर्शियल मुर्गियाँ लगभग प्रत्येक 24 घंटे में एक अंडा देती हैं, इसलिए उन्हें अंडे के कठोर खोल निर्माण के लिए बड़ी मात्रा में कैल्शियम की आवश्यकता होती है। सामान्यतः चिकन के भोजन (जैसे दाना) में कैल्शियम की मात्रा सीमित होती है, अतः अंडे देने वाली मुर्गियों को अतिरिक्त कैल्शियम-युक्त आहार (जैसे चूना, सीप के गोले या बोन मील) दिया जाता है। भोजन में शामिल कैल्शियम मुख्यतः छोटी आंत (विशेषकर डुओडेनम और जेजुनम) द्वारा सक्रिय तंत्रों से अवशोषित होता है। इस सक्रिय अवशोषण में कैल्शियम-ट्रांसपोर्टर प्रोटीन और कैल्बिंडिन जैसे कैल्शियम बाँधने वाले प्रोटीन की भूमिका होती है। चूँकि रोजमर्रा के भोजन से मिलने वाला कैल्शियम अंडे के लिए पर्याप्त नहीं होता, मुर्गियों में आत्मसात कैल्शियमयुक्त आहार के प्रति विशेष भूख विकसित होती है और आंत में कैल्शियम अवशोषण की क्षमता बढ़ जाती है। सक्रिय विटामिन D (1,25(OH)₂D₃) आंत से कैल्शियम अवशोषण को बढ़ावा देता है, जबकि पैराथायरॉयड हार्मोन (PTH) हड्डियों से कैल्शियम के मुक्त होने को प्रेरित करता है।
कैल्शियम चक्र एवं संचय
मुर्गी के शरीर में कैल्शियम का बड़ा भंडार हड्डियों में होता है। यौवन अवस्था की शुरुआत में एस्ट्रोजन हार्मोन के प्रभाव से लंबी हड्डियों और फेनी हड्डियों की मज्जा में “मेडुलरी हड्डी” बनती है। यह अस्थि-मज्जा में बनने वाली अस्थिर अस्थि है, जो अण्डे के खोल निर्माण के समय तत्परता से कैल्शियम मुहैया कराती है। व्यावसायिक मुर्गी के शरीर को प्रतिदिन लगभग 2 ग्राम कैल्शियम की आवश्यकता होती है, जिसे आहार से दिन में प्राप्त किया जाता है। चूंकि मुर्गी दिन में खाना खाती है लेकिन अधिकांश अंडे का खोल रात्रि में तैयार होता है, इसलिए अंडा बनने के समय करीब 20–40% कैल्शियम हड्डियों के रिसोर्प्शन से प्राप्त होता है। इस दैनिक चक्र में मैडुलरी हड्डी का तेजी से टूटना (रिसोर्प्शन) और बाद में पुनः निर्माण शामिल होता है। पैराथायरॉयड हार्मोन (PTH) हड्डियों से कैल्शियम के मुक्त होने की दर को बढ़ाता है, जबकि सक्रिय विटामिन D₃ आंत में कैल्शियम के अवशोषण को बढ़ावा देता है। एस्ट्रोजन (और टेस्टोस्टेरोन) हार्मोन अंडा देने की तैयारी में मैडुलरी हड्डी निर्माण को प्रोत्साहित करते हैं। इन सब प्रक्रियाओं का समन्वय मुर्गी में कैल्शियम की स्थिर मात्रा बनाए रखता है।
अंडाशय एवं शेल ग्रंथि में अंडा निर्माण
मुर्गी के प्रजनन तंत्र में अंडाशय से निकलकर अंडा क्रमशः अलग-अलग खंडों से गुजरता है। इसका संक्षिप्त चक्र इस प्रकार होता है:
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इन्फंडिबुलम (Infundibulum): अंडाशय से निकला योल्क यहाँ लगभग 15–30 मिनट तक रहता है (फेर्टिलाइज़ेशन यदि हो तो इसी चरण में होता है)।
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मैग्नम (Magnum): अगले ~3.25–3.5 घंटे तक अंडे की सफेदी (एल्ब्यूमेन) बनती है।
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इस्थ्मस (Isthmus): करीब 1 घंटा यहाँ बिता और अंडे के चारों ओर अन्दर-बाहरी मेम्ब्रेन की परतें बनती हैं।
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शेल ग्रंथि (यूटरस): लगभग 19–20 घंटे तक अंडे के अंतिम आकार में आने और खोल बनने की प्रक्रिया होती है। शेल ग्रंथि की ऊतक कोशिकाएँ रक्त से आयनिक कैल्शियम और कार्बोनेट आयन ले जाती हैं और इन्हें ऊपरी इलस्ट्रिस्थान (shell lumen) में कैल्शियम कार्बोनेट के रूप में निक्षेपित करती हैं, जिससे अंडे का कठोर खोल बनता है।
अंडे के खोल की संरचना और निर्माण
हार्मोन एवं नियंत्रक तंत्र
मुर्गी में कैल्शियम होमियोस्टेसिस कई हार्मोन द्वारा नियंत्रित होता है। पैराथायरॉयड हार्मोन (PTH) ऑस्टेओक्लास्ट नामक कोशिकाओं को सक्रिय करके हड्डियों से कैल्शियम के मुक्त होने को बढ़ाता है, जबकि सक्रिय विटामिन D₃ आंत में कैल्शियम अवशोषण को बढ़ावा देता है। उच्च एस्ट्रोजन स्तर अंडा उत्पादन के पहले मैडुलरी हड्डी निर्माण को उत्तेजित करते हैं। इन हार्मोन और अन्य नियामक तंत्रों का समन्वय मुर्गी के शरीर में कैल्शियम की मात्रा को नियंत्रित रखता है और आवश्यकतानुसार सीधे रक्तप्रवाह में या हड्डी भंडार से कैल्शियम मुहैया कराता है।
“जब शेल ग्रंथि (रात में) सक्रिय होती है तो मुर्गियों की आंत से कैल्शियम का अवशोषण लगभग 72% तक बढ़ जाता है, जिससे हड्डियों से कैल्शियम की जरूरत कम हो जाती है।”
क्या वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह मान्यता सत्य है कि मुर्गियों के शरीर में पोटैशियम जैसे तत्व कैल्शियम में परिवर्तित होते हैं — यानी क्या यह जैव-परिवर्तन (Bio Transmutation) होता है। चलिए इसकी पुष्टि या खंडन के लिए उपलब्ध वैज्ञानिक प्रमाण, शोध या विवादों की जानकारी के आधार पर डिटेल्स जानने की कोशिश करते हैं।
मुर्गियों में पोटैशियम से कैल्शियम में जैव-परिवर्तन की वैज्ञानिक समीक्षा
जैव-परिवर्तन (Bio-Transmutation) की अवधारणा और इतिहास
“केर्व्रान ने दावा किया कि मुर्गियां अपने आहार के पोटेशियम को ‘कम-ऊर्जा ट्रांसम्यूटेशन’ द्वारा कैल्शियम में बदल सकती हैं, लेकिन बाद की शोधों ने यह सिद्ध नहीं किया; ‘केर्व्रान प्रभाव’ का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं पाया गया।”
फ्रांसीसी वैज्ञानिक कॉरेंटिन लुइ कर्व्रान ने 1960 के दशक में दावा किया कि जीवों के भीतर एक तत्व दूसरे तत्व में परिवर्तन कर सकता है। उदाहरणतः उन्होंने यह अनुभव किया कि कैल्शियम-रहित आहार पर भी मुर्गियाँ अंडों के खोल में पर्याप्त कैल्शियम बना लेती थीं। कर्व्रान ने इसे “बायोलॉजिकल ट्रांसम्यूटेशन” कहा और प्रस्तावित किया कि मुर्गियाँ अपने आहार का पोटैशियम अणुओं को कैल्शियम में परिवर्तित कर सकती हैं। इस तरह की प्रक्रिया हेतु कर्व्रान ने रसायन की बजाय एक प्रकार की अल्प-ऊर्जा न्यूक्लियर प्रतिक्रिया (low-energy transmutation) की कल्पना की, जिसमें एंजाइमिक क्रियाओं द्वारा “कमज़ोर परमाणु बल” का उपयोग हो सकेगा।
वैज्ञानिक प्रामाणिकता और परीक्षण
परंपरागत विज्ञान के अनुसार जैविक प्रक्रियाओं से तत्व-रूपांतरण असंभव है। तत्वीय संरक्षण के नियम के तहत जीवन तंत्र में किसी तत्व का दूसरे में रूपांतरण नहीं होता। आधुनिक अनुसंधानों में कर्व्रान के दावों की पुष्टि नहीं मिली। इटली के शोधकर्ताओं ने नियंत्रित प्रयोग में कोई जैविक ट्रांसम्यूटेशन नहीं पाया और यह दिखाया कि यदि मुर्गियों के चारे में कैल्शियम कम होता है तो वे हड्डियों से कैल्शियम खींच कर अंडे में प्रयोग करती हैं। इस प्रकार, ओट में मौजूद कैल्शियम अंशतः उपलब्ध हो सकता है या शरीर से निकाला जाता है, न कि पोटैशियम से नया कैल्शियम उत्पन्न होता है। विज्ञान लेखक जोए श्वार्ज़ ने स्पष्ट किया है कि “कर्व्रान प्रभाव अस्तित्व में नहीं है… कर्व्रान ने केवल त्रुटिपूर्ण अवलोकनों के आधार पर गलत निष्कर्ष निकाला”।
मुख्य बिंदु:
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जलीय और जैव रसायनिक प्रक्रियाओं में तत्व की संख्या अपरिवर्तित रहती है।
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मुर्गियों का कैल्शियम अंडे के खोल के लिए हड्डियों से जुटाया जा सकता है; तत्कालीन आहार में कैल्शियम की कमी को भी ध्यान में रखा जाता है।
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वैज्ञानिक प्रयोगों (जैसे शेफ़ील्ड विश्वविद्यालय के मिल्टन वैनराइट का अध्ययन) में किसी भी जैविक रूपांतरण का पता नहीं चला और शोधकर्ता कहते हैं कि यह घटना “अस्तित्वहीन” प्रतीत होती है।
परम्परागत जैव-रसायन और न्यूक्लियर भौतिकी का दृष्टिकोण
रासायनिक और भौतिकी के सिद्धांत इस दावे के खंडन करते हैं। न्यूक्लियर ट्रांसम्यूटेशन (तत्वांतरण) के लिए परमाणु संलयन या विखंडन प्रक्रियाएँ जरूरी हैं, जिनमें अत्यधिक ऊर्जा लगती है। उदाहरणतः संलयन प्रतिक्रियाओं के लिए लगभग 15,000,000 केल्विन तापमान की आवश्यकता होती है, जो किसी भी जीवित कोष में प्राप्त नहीं हो सकती। वैज्ञानिक स्रोत बताते हैं कि दो नाभिकों को आपस में टकराने के लिए उच्च तापमान देकर ही प्रतिकर्षण को पार किया जा सकता है। जीवों के शरीर का तापमान तथा एंजाइमिक परिवेश इन चरम स्थितियों से कोसों दूर है। अत: न्यूक्लियर संलयन की तरह कोई प्रक्रिया जैविक स्तर पर संभव नहीं है। पोटैशियम और हाइड्रोजन को जोड़कर कैल्शियम बनाने की कल्पना “कोई वैज्ञानिक आधार नहीं रखती”।
उपलब्ध शोध एवं निष्कर्ष
वैज्ञानिक साहित्य में जैव-परिवर्तन की कोई विश्वसनीय शोध-पत्रिका या प्रयोगात्मक पुष्टि नहीं है। कुछ अप्रयुक्त एवं विवादास्पद जर्नलों (जैसे Journal of Condensed Matter Nuclear Science इत्यादि) में इस विषय पर समीक्षाएँ प्रकाशित हुई हैं, लेकिन इन्हें मुख्यधारा के वैज्ञानिक समाज ने नहीं अपनाया। अधिकांश अध्ययनों या कथित परीक्षणों के परिणाम नकारात्मक रहे हैं। उदाहरण के लिए, शेफ़ील्ड विश्वविद्यालय की रिपोर्ट में कहा गया कि कर्व्रान के सिद्धांत के समर्थन में कोई सबूत नहीं मिला और यह सिद्धांत मौलिक रूप से असंभव लगता है। वैज्ञानिक समुदाय का मानना है कि जैव-परिवर्तन के दावे क्वैक साइंस की श्रेणी में आते हैं, न कि स्थापित विज्ञान में।
‘बायो-ट्रांसफ़ॉर्मेशन’ से अंतर
ध्यान देने योग्य है कि जैव-रसायन में बायोट्रांसफॉर्मेशन शब्द का प्रयोग किसी अणु का जीव द्वारा रासायनिक रूपांतरण (जैसे दवा का चयापचय) के लिए होता है। यह प्रक्रिया एंजाइम द्वारा अणुओं की रासायनिक संरचना बदलने की ओर इशारा करती है। इसमें तत्वों का परिवर्तन शामिल नहीं होता। जबकि ‘बायोलॉजिकल ट्रांसम्यूटेशन’ के दावे में तत्वों (जैव अणुओं के मूल तत्वों) के नाभिकीय स्तर पर बदले की बात होती है। सरलतः, बायोट्रांसफॉर्मेशन = रासायनिक रूपांतरण (जैविक अणु स्तर पर), जबकि बायोलॉजिकल ट्रांसम्यूटेशन = कथित परमाणु परिवर्तन (विवादास्पद सिद्धांत)।
निष्कर्ष:-
सारांशतः, मुर्गियों के शरीर में पोटैशियम को कैल्शियम में परिवर्तित करने का दावा वैज्ञानिक दृष्टि से असंभव है। इस परंपरागत रसायनिकी और न्यूक्लियर भौतिकी दोनों के सिद्धांतों से मेल नहीं खाता। न तो विश्वसनीय प्रयोगों में ऐसी प्रक्रिया देखी गई है और न ही कोई मान्यता प्राप्त शोध-पत्र इसे पुष्ट करता है। इस प्रकार, जैव-परिवर्तन (Bio-Transmutation) की अवधारणा को आधुनिक विज्ञान में खारिज किया गया है। बायोट्रांसफॉर्मेशन से यह पूर्णतः भिन्न है क्योंकि वह तत्वों के बदले की नहीं बल्कि अणुओं के रासायनिक परिवर्तन की बात करता है।
संदर्भ:
उपरोक्त जानकारी विभिन्न वैज्ञानिक शोध-पत्रों और पुनरावलोकनों पर आधारित है जो मुर्गियों में कैल्शियम चयापचय तथा अंडे के खोल निर्माण की जटिल प्रक्रियाओं को दर्शाती हैं।
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