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सोमवार, 4 नवंबर 2024

"राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 2021: वर्तमान समय में विज्ञान की उपयोगिता" - डॉ. प्रदीप सोलंकी

 

"राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 2021: वर्तमान समय में विज्ञान की उपयोगिता

- डॉ. प्रदीप सोलंकी

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 2021: प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष के राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की मुख्य थीम "विज्ञान, तकनीकी एवं नवाचार : शिक्षा, कौशल और कार्य पर प्रभाव" है। जिसका मुख्य उद्देश्य आमजन और विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति जागरूकता पैदा करने एवं वैज्ञानिक मुद्दों की सार्वजनिक समझ बढ़ाना है इस प्रकार के आयोजन में विज्ञान मेले, सार्वजनिक भाषणरेडियो तथा टेलीविज़न पर कार्यक्रमों का प्रसारण, विज्ञान फिल्में, थीम और अवधारणाओं के आधार पर विज्ञान प्रदर्शनियां, वाद-विवाद एवं क्विज प्रतियोगिताओं, व्याख्यान, विज्ञान मॉडल प्रदर्शनियां और कई अन्य कई प्रकार की गतिविधियां शामिल रहती हैं मुझे लगता है कि कोविड 19 के संक्रमण काल में इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पुरे देश में भागीरथी प्रयास होने चाहिए पूरा देश आज़ादी के पहले से अवैज्ञानिक गतिविधियों में लिप्त रहा है, जिसके कारण आज भी भारतीयों का अधिकांश हिस्सा बीमारी की अवस्था में बजाय चिकित्सक के पास जाने के नीम हकीमों के पास जाने में सुरक्षित महसुस करता रहा है और अंततः ठगा जाता है देश ने आजादी के बाद तरक्की तो खूब की मगर अवैज्ञानिकता को फैलाने के प्रयास भी पंडाल लगा कर उतने ही ज्यादा किये गए, हैरानी की बात देखिये कि आम जनता को अगर छोड़ भी दें तब भी देश के किसी भी वैज्ञानिक समुदाय ने इन करतूतों का कभी भी खुलकर विरोध नहीं किया विद्यार्थियों को इनके हानि लाभ कभी बताये ही नहीं गए और वे भी इस दिशा में विरोध जाहिर नही कर पाए, यही कारण है कि उन्हें भी मोर के आंसुओं से मोरनी के गर्भवती होनेजैसे वक्तव्य सुनने को मिले लेकिन अफ़सोस तब भी वैज्ञानिक समुदाय आगे नही आया, और आया भी होगा तो ज्यादा सुनने में नहीं आया  

अब बात करते हैं की आखिर डॉ. सी. वी. रामन कौन हैं और इनका इस विज्ञान दिवस से क्या सम्बन्ध ?

आजादी के पहले जब देश को सांप सपेरों के देश के रूप में पश्चिम में प्रचारित किया जाता था उस समय चंद्रशेखर वेंकट रमन एक भारतीय भौतिक विज्ञानी के रूप में, जो मुख्य रूप से प्रकाश प्रकीर्णन के क्षेत्र में अपने काम के लिए जाने जाते थे उन्होंने अपने छात्र के. एस. कृष्णन के साथ, वो कर दिखाया जिसकी किसी को भी कोई उम्मीद नहीं थी, क्योंकि उस समय 1928 में उन्होंने पाया कि जब प्रकाश एक पारदर्शी सामग्री का पता लगाता है, तो कुछ विक्षेपित प्रकाश तरंगदैर्ध्य और आयाम बदल जाते हैं यह घटना एक नए प्रकार का प्रकाश प्रकीर्णन था और बाद में इसे रमन प्रभाव (रमन प्रकीर्णन) कहा गया। यह एक असाधारण खोज थी और दुनियां को पता लगा कि जब कोई एकवर्णी प्रकाश द्रवों और ठोसों से होकर गुजरता है तो उसमें आपतित प्रकाश के साथ अत्यल्प तीव्रता का कुछ अन्य वर्णों का प्रकाश देखने में आता है, इस प्रभाव को ही रमन प्रभाव कहते हैं

कहने का तात्पर्य है कि जब प्रकाश दृव से प्रकिर्णित होता है तो अधिकांश फोटोन उसी आवृति से प्रकिर्णित होते हैं जिससे वे द्रव पर आपतित होते हैं लेकिन लगभग एक करोड़ फोटोन में से एक फोटोन ऐसा होता है जिसकी आवृति प्रकीर्णन और आपतन में परिवर्तित होता है अर्थात आपतित प्रकाश के फोटोन की आवृति का मान भिन्न होता है जिसे रमन प्रभाव के नाम से जाना जाता है

विज्ञान के क्षेत्र में इस असाधारण खोज के लिए डॉ. सी. वी. रमन ने 1930 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जीता और विज्ञान की किसी भी शाखा में नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले एशियाई व्यक्ति थे डॉ. सी. वी. रमन 1948 में भारतीय विज्ञान संस्थान से रिटायर हो गए  और एक साल बाद बैंगलोर में ही रमन शोध संस्थान की स्थापना की वे आजीवन इसके निदेशक के रूप में कार्य करते रहे और 1970 में अपनी मृत्युपर्यंत तक वहाँ सक्रिय रहे

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का इतिहास : वैसे इसका इतिहास बहुत पुराना नहीं है फिर भी १९८६ में राष्ट्रीय विज्ञान, तकनीकी एवं संचार परिषद् ने भारत सरकार को डॉ. सी. वी. रमन साहेब की याद में 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाने का आग्रह किया जिसे स्वीकार कर लिया गया और प्रति वर्ष भारत के सभी शैक्षणिक, वैज्ञानिक, तकनीकी, चिकित्सा और अनुसंधान संस्थानों में मनाया जाने लगा और एक थीम भी इस अवसर पर रखी जाने लगी

हालाँकि पहले राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (28 फरवरी 1987) के अवसर पर राष्ट्रीय विज्ञान, तकनीकी एवं संचार परिषद् ने विज्ञान और संचार के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रयासों को मान्यता देने के लिए राष्ट्रीय विज्ञान लोकप्रियिकरण संस्थान की घोषणा की थी।

प्रति वर्ष राष्ट्रीय विज्ञान दिवस एक राष्ट्रीय वैज्ञानिक पर्व के रूप में पुरे देश में मनाया जाता है, लेकिन अफ़सोस कि यह परंपरा सिर्फ वैज्ञानिक संस्थानों, विश्वविद्यालय, महाविद्यालय एवं शिक्षण संस्थानों तक ही सीमित रहता है जबकि इस परंपरा को आधुनिकता के साथ आमजन तक पहुंचाने की जरूरत है जिससे कि लोगों के दैनिक जीवन में उपयोग किए जाने वाले विज्ञान के महत्व के बारे में संदेश फैले तथा मानव कल्याण के लिए विज्ञान के क्षेत्र में सभी गतिविधियों, प्रयासों और उपलब्धियों को प्रदर्शित किया जा सके।

Ref. :-

1. Internet websites.

2. News Paper & Media.  

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