गिद्ध लाशों को नहीं ढूंढते, बल्कि लाशें गिद्धों को बुलाती हैं: डॉ. प्रदीप सोलंकी
Vultures do not look for corpses, but corpses call vultures: Dr. Pradeep Solanki
सुनने में अजीब लग सकता है पर हाँ, यह सही है। सड़ती हुई लाश से निकलने वाले रसायन गिद्धों को बहुत आकर्षित करते हैं। सड़ती हुई लाश से निकलने वाले रसायन, जैसे कि एथिल मर्कैप्टन और अन्य वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOCs), गिद्धों को आकर्षित करते हैं क्योंकि उनकी गंध संवेदनशीलता बहुत तीव्र होती है। ये रसायन मृत शरीर के विघटन के दौरान उत्पन्न होते हैं, और गिद्ध इन्हें दूर से सूंघ सकते हैं।
खासकर गिद्धों को जानवरों का भेजा (Brain) बहुत पसंद होता है।
गिद्धों का दिमाग (brain) की ओर आकर्षण इसलिए हो सकता है क्योंकि यह उच्च पोषक तत्वों वाला हिस्सा होता है, जिसमें वसा और प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होते हैं। गिद्धों की शारीरिक संरचना और पाचन तंत्र इस तरह विकसित हुए हैं कि वे सड़ते हुए मांस को आसानी से पचा सकते हैं, जो अन्य जानवरों के लिए हानिकारक हो सकता है।
ये एथिल मरकैप्टन क्या है और ये कैसे बनता है? लाशों से इनका क्या संबंध है?
आइये इसे हम बिंदुवार समझने का प्रयास करेंगे -
एथिल मर्कैप्टन (Ethyl Mercaptan)
एथिल मर्कैप्टन (C₂H₅SH), जिसे एथेनथियोल भी कहा जाता है, एक वाष्पशील कार्बनिक यौगिक है। यह सल्फर युक्त यौगिक है, जिसकी गंध बहुत तीखी और अप्रिय होती है, जो सड़े हुए प्याज या गंधक जैसी होती है। यह गंध इतनी तेज होती है कि इसे मनुष्य और जानवर, जैसे गिद्ध, बहुत कम मात्रा में भी सूंघ सकते हैं। इसकी यह विशेषता इसे गिद्धों के लिए आकर्षक बनाती है।
एथिल मर्कैप्टन कैसे बनता है?
एथिल मर्कैप्टन मृत शरीर (लाश) के विघटन (decomposition) की प्रक्रिया के दौरान बनता है। जब कोई जानवर या इंसान मरता है, तो शरीर के ऊतकों (tissues) में मौजूद प्रोटीन और अन्य कार्बनिक पदार्थ बैक्टीरिया और एंजाइमों द्वारा टूटने लगते हैं। इस प्रक्रिया में बैक्टीरियल एवं रासायनिक प्रक्रिया के दौरान प्रोटीन टूटती है, जैसे कि -
लाशों के विघटन के दौरान एथिल मर्कैप्टन और अन्य वाष्पशील सल्फर यौगिकों का उत्सर्जन होता है, जो हवा में फैलकर एक विशिष्ट गंध पैदा करते हैं। गिद्धों की गंध संवेदनशीलता इतनी तीव्र होती है कि वे इन रसायनों को कई किलोमीटर दूर से भी पहचान लेते हैं। यह गंध गिद्धों को मृत शरीर की लोकेशन तक खींच लाती है। खासकर शुरुआती सड़न (putrefaction) के चरण में, जब ऊतक तेजी से टूटते हैं, एथिल मर्कैप्टन की मात्रा अधिक होती है, जो गिद्धों के लिए एक मजबूत संकेत (cue) का काम करती है।
अतिरिक्त जानकारी: क्या यह कहीं और भी उपयोग में आता है ?
में यहाँ गिद्धों की प्रजातियों, उनके संरक्षण की स्थिति, और पर्यावरण में उनकी उल्लेखनीय भूमिका के बारे में भी बात करना चाहूँगा:
गिद्ध बड़े मांसभक्षी पक्षियों की 22 प्रजातियों में से एक है जो मुख्यतः उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इन्हें एक्सीपिट्रिफॉर्मिस क्रम के अंतर्गत एक्सीपिट्रिडे (पुरानी दुनिया के गिद्ध) और कैथार्टिडे (नई दुनिया के गिद्ध) परिवारों में वर्गीकृत किया गया है। नई दुनिया के गिद्धों की 7 प्रजातियों में शामिल हैं: कोंडोर्स, और 15 पुरानी दुनिया की प्रजातियों में शामिल हैंलैमर्जियर और ग्रिफ़ॉन गिद्ध। हालाँकि दोनों समूहों के कई सदस्य समान दिखते हैं, लेकिन वे केवल दूर से ही संबंधित हैं।
भारत में गिद्धों की नौ प्रजातियाँ पाई जाती हैं, लेकिन दुर्भाग्य से, उनमें से कई अब आवास के नुकसान और मवेशियों पर इस्तेमाल होने वाली डाइक्लोफेनाक नामक दवा के ज़हर जैसी समस्याओं के कारण लुप्तप्राय हैं। गिद्ध मृत पशुओं से होने वाली बीमारियों को फैलने से रोककर प्रकृति को संतुलित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
हालाँकि गिद्धों की बहुत सारी जानकारी सड़नखोर जीवों की भूमिका, पर्यावरण की स्वच्छता तथा पोषक तत्वों का चक्रण (Nutrient Recycling) के बारे में इस लेख में एथिल मर्कैप्टन के साथ साथ पहले ही जान चुके हैं फिर भी कुछ बातों को जानना जरुरी है
पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन
जीवविज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते में सभी विद्यार्थिओं एवं आमजन को इसे पढने के लिए जरुर कहूँगा। एथिल मर्कैप्टन, गिद्ध, और अपराध विज्ञान का शोधपरक एवं मानवीय महत्व है, क्योंकि एथिल मर्कैप्टन, एक तीखी गंध वाला रसायन तथा सड़न की प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो गिद्धों जैसे सड़नखोर जीवों को मृत शरीरों की ओर आकर्षित करता है। यह शोधपरक अध्ययन न केवल जैविक और रासायनिक प्रक्रियाओं को समझने में मदद करता है, बल्कि अपराध विज्ञान में भी इसकी संभावित भूमिका को उजागर करता है। गिद्धों की असाधारण गंध संवेदनशीलता, जो एथिल मर्कैप्टन जैसे यौगिकों पर निर्भर करती है, फोरेंसिक विज्ञान में शवों की खोज और मृत्यु के समय के अनुमान को बेहतर बनाने में प्रेरणा दे सकती है। शोधपत्र, जैसे कि DeVault et al. (2004) और Vass (2012), इस बात को रेखांकित करते हैं कि सड़न के रसायनों और गिद्धों के व्यवहार का अध्ययन न केवल पारिस्थितिकी, बल्कि फोरेंसिक जांच में भी क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।
मानवीय दृष्टिकोण से, गिद्धों का संरक्षण और उनके पारिस्थितिक महत्व को समझना हमें पर्यावरण संतुलन और जैव विविधता के प्रति जागरूक बनाता है। गिद्ध, जो सड़नखोर के रूप में पर्यावरण को स्वच्छ रखते हैं, मानव स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण में भी योगदान देते हैं। भारत जैसे देशों में डाइक्लोफेनाक दवा के कारण गिद्धों की घटती आबादी ने हमें उनके संरक्षण की आवश्यकता सिखाई है। संरक्षण तकनीकें, जैसे कैप्टिव ब्रीडिंग और वुल्चर सेफ जोन, न केवल गिद्धों को बचाने में मदद करती हैं, बल्कि मानव और प्रकृति के बीच सह-अस्तित्व को बढ़ावा देती हैं। यह विषय विद्यार्थियों को विज्ञान, पर्यावरण, और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संबंध को समझने के लिए प्रेरित करता है।
गिद्धों और एथिल मर्कैप्टन की कहानी एक आकर्षक उदाहरण है कि कैसे प्रकृति और विज्ञान मिलकर मानव जीवन को बेहतर बना सकते हैं। साथ ही, इस रसायन और गिद्धों के व्यवहार का अध्ययन अपराध विज्ञान में शवों की खोज और जांच को बेहतर बनाने की संभावनाएँ खोलता है। यह विषय विद्यार्थियों को रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, और फोरेंसिक विज्ञान जैसे क्षेत्रों में गहरी रुचि जगाता है, साथ ही पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता के प्रति जिम्मेदारी का बोध कराता है। मुझे आशा है कि यह लेख विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत का कार्य करेगा। इस लेख को पढ़कर आप न केवल यह समझेंगे कि एक छोटा सा रसायन कैसे गिद्धों और अपराध जांच को जोड़ता है, बल्कि यह भी सीखेंगे कि प्रकृति के रहस्य वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से मानव समाज की मदद कैसे कर सकते हैं। यह आपको पर्यावरण संरक्षण, फोरेंसिक विज्ञान, और वैज्ञानिक खोजों में करियर की संभावनाओं के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करेगा। गिद्धों की कहानी पढ़ें और जानें कि कैसे प्रकृति और विज्ञान मिलकर एक स्वस्थ और सुरक्षित दुनिया बना सकते हैं!
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Source:
- शोध पत्र:
- DeVault, T.L., et al. (2004). Journal of Chemical Ecology. DOI: 10.1023/B:JOEC.0000042073.84769.3a
- Bump, J.K., et al. (2009). Oecologia. DOI: 10.1007/s00442-009-1356-3
- Vass, A.A. (2012). Journal of Forensic Sciences. DOI: 10.1111/j.1556-4029.2012.02194.x
- वेबसाइट:
- Bombay Natural History Society (BNHS): https://www.bnhs.org/vulture-conservation
- IUCN Red List (Vulture Species): https://www.iucnredlist.org
- Wikipedia (Thiol): https://en.wikipedia.org/wiki/Thiol
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वैज्ञानिक गिद्धों की विशेषज्ञता को कुशल सफाईकर्मियों के रूप में उजागर करते हैं , जो मृत पशुओं का मांस खाकर तथा बीमारियों के प्रसार को रोककर पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । वे प्रकृति के "सफाई दल" हैं, जिनमें रोगाणुओं को निष्क्रिय करने के लिए मजबूत पेट के एसिड जैसे अद्वितीय अनुकूलन होते हैं। हालाँकि, डाइक्लोफेनाक विषाक्तता जैसे कारकों के कारण उनकी आबादी में महत्वपूर्ण गिरावट आई है , जिससे संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिकों ने डाइक्लोफेनाक जैसी पशु चिकित्सा दवाओं के उपयोग के कारण, विशेष रूप से दक्षिण एशिया में, गिद्धों की आबादी में भारी गिरावट दर्ज की है। इस गिरावट ने पारिस्थितिकीय और यहां तक कि सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं भी पैदा कर दी हैं।
जवाब देंहटाएं1994 से पहले, सर्वेक्षण किए गए ज़िलों में मानव मृत्यु दर औसतन प्रति 1000 लोगों पर लगभग 0.9% थी, जो इस बात का आधार थी कि किसी विशेष ज़िले में गिद्धों की संख्या कितनी है। लेकिन 2005 के अंत तक, जिन क्षेत्रों में पारंपरिक रूप से गिद्धों की संख्या ज़्यादा थी, वहाँ मानव मृत्यु दर में औसतन 4.7% की वृद्धि देखी गई, यानी प्रति वर्ष लगभग 104,386 अतिरिक्त मौतें हुईं। इस बीच, जिन ज़िलों में गिद्धों का सामान्य निवास नहीं था, वहाँ मृत्यु दर 0.9% पर स्थिर रही।
जवाब देंहटाएंमौद्रिक क्षति की गणना के लिए, टीम ने पिछले शोध का सहारा लिया, जिसमें भारतीय समाज द्वारा एक जीवन बचाने के लिए खर्च की जाने वाली राशि का आर्थिक मूल्य लगभग 665,000 डॉलर प्रति व्यक्ति आंका गया था। इससे पता चलता है कि 2000 से 2005 तक गिद्धों की आबादी में कमी से होने वाली कुल आर्थिक क्षति 69.4 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष थी।
भूमध्यसागरीय अध्ययन संस्थान के संरक्षण वैज्ञानिक एंड्रिया सांतांगेली, जो इस शोध से जुड़े नहीं थे, कहते हैं कि ये आँकड़े अपने आप में आश्चर्यजनक नहीं हैं। उन्होंने और अन्य लोगों ने दशकों से जैव विविधता के नुकसान पर चिंता जताई है। लेकिन वे कहते हैं कि नए, नाटकीय आँकड़े सांसदों को कार्रवाई के लिए राजी करने में मदद कर सकते हैं। "अगर आप उन्हें आकर्षक आँकड़े देते हैं, तो नीति और संरक्षण उपायों को आगे बढ़ाना शायद आसान हो जाता है।"