मंगलवार, 13 मई 2025

पसीना: एक तरल दर्पण – जैव-रसायन, संकेत और स्वास्थ्य-क्रांति की ओर

पसीना: एक तरल दर्पण – जैव-रसायन, संकेत और स्वास्थ्य-क्रांति की ओर : Dr. Pradeep Solanki

Sweat: A liquid mirror – biochemistry, signals and towards a health revolution













हमारे मस्तिष्क में हमेशा यह प्रश्न उभरते हैं कि - क्या धूप में आए हुए पसीने और कसरत करते समय आये हुए पसीने में कोई अंतर होता है? इसी तरह क्या कोई Content wise difference होता है या फिर पसीने की पूरी जैव-रासायनिकी में ही अंतर दृष्टिगोचर होता है? आइये इन सभी महत्वपूर्ण सवालों को हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार पर शोधपरक जानकारी के साथ  विभिन्न शोधपत्रों के साथ उदाहरण सहित समझाने का प्रयास करेंगे

धूप में आने से और कसरत करने से उत्पन्न पसीने की जैव-रासायनिक संरचना में महत्वपूर्ण अंतर होता है। ये अंतर शरीर की प्रतिक्रिया के कारण होते हैं- धूप में शरीर केवल ऊष्मा को नियंत्रित करने का प्रयास करता है, जबकि कसरत के दौरान मांसपेशियों की सक्रियता और ऊर्जा व्यय के कारण पसीना निकलता है। 

यहाँ कुछ महत्वपूर्ण उद्धरण दिए गए हैं उन्हें समझने का प्रयास करें -

"Your sweat speaks what your lips can’t – the truth of your body’s inner world." — Biomedical Innovation Journal

"पसीना केवल परिश्रम का प्रतीक नहीं, अब यह शरीर की जीवंत बायोलॉजिकल डायरी है।"भारतीय जैव प्रौद्योगिकी संस्थान


पसीने की संरचना में अंतर: धूप बनाम कसरत

एक अध्ययन में, सात स्वस्थ पुरुषों को पहले 40°C तापमान वाले कमरे में बैठाया गया और फिर उन्हें दौड़ने का अभ्यास कराया गया। दोनों स्थितियों में शरीर का वजन 5% कम हुआ, लेकिन पसीने की संरचना में अंतर पाया गया:

  • सोडियम (Na⁺) और क्लोराइड (Cl⁻): कसरत के दौरान उत्पन्न पसीने में इनकी सांद्रता अधिक थी, जिससे अधिक नमक की हानि होती है।

  • यूरिया नाइट्रोजन और क्रिएटिनिन: धूप में बैठने से उत्पन्न पसीने में इनकी सांद्रता अधिक थी, जो मेटाबोलिक अपशिष्ट उत्पादों की अधिक उपस्थिति को दर्शाता है।

  • पोटेशियम (K⁺): दोनों स्थितियों में इसकी सांद्रता में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं पाया गया।

इससे संकेत मिलता है कि कसरत के दौरान अधिक नमक की हानि होती है, जबकि धूप में बैठने से उत्पन्न पसीने में मेटाबोलिक अपशिष्ट उत्पादों की अधिकता होती है।


पसीने के घटक

पसीना मुख्यतः निम्नलिखित घटकों से बना होता है:

  • जल (Water): पसीने का प्रमुख घटक।

  • इलेक्ट्रोलाइट्स: सोडियम (Na⁺), पोटेशियम (K⁺), क्लोराइड (Cl⁻), कैल्शियम (Ca²⁺), मैग्नीशियम (Mg²⁺)।

  • मेटाबोलाइट्स: यूरिया, क्रिएटिनिन, लैक्टेट।

  • अन्य: अमीनो एसिड, ग्लूकोज, हार्मोन, और त्वचा से निकलने वाले लिपिड्स।

पसीने की संरचना व्यक्ति की उम्र, लिंग, फिटनेस स्तर, आहार, और पर्यावरणीय परिस्थितियों पर निर्भर करती है।


जैव-रासायनिक विश्लेषण: शोधपत्रों के निष्कर्ष

  • Verde et al. (1982): इस अध्ययन में पाया गया कि पसीने की संरचना में व्यक्तिगत भिन्नताएं होती हैं, और यह पसीने के प्रवाह दर पर निर्भर करती है।
  • Murphy et al. (2019): इस अध्ययन में पाया गया कि पसीने में इलेक्ट्रोलाइट्स और अमीनो एसिड की सांद्रता व्यायाम की तीव्रता और अवधि के साथ बदलती है।

  • Nature में प्रकाशित शोधपत्र के अनुसार ​ऊष्मा के दौरान पसीने में 31 मेटाबोलाइट्स और 137 प्रोटीन बायोमार्कर की पहचान की गई।​ यह अध्ययन पसीने के माध्यम से ऊष्मा तनाव की निगरानी के लिए संभावित गैर-आक्रामक विधियों को दर्शाता है।

  • उस शोधपत्र "The molecular signature of heat stress in sweat..." (Nature Communications Biology, 2025) में यह पाया गया कि ऊष्मा के प्रभाव में शरीर से निकले पसीने में 31 मेटाबोलाइट्स और 137 प्रोटीन बायोमार्कर्स की पहचान की गई।

    यह बायोमार्कर शरीर की ऊष्माजनित प्रतिक्रियाओं को दर्शाते हैं और स्वास्थ्य निगरानी के लिए संभावित संकेतक हो सकते हैं। इनमें शामिल हैं:

    प्रमुख मेटाबोलाइट्स:

    1. Lactate ऊष्मा के कारण उत्पन्न हुआ थकान सूचक
    2. Urea नाइट्रोजन चयापचय से जुड़ा
    3. Creatinine मांसपेशियों की सक्रियता का संकेतक
    4. Amino acids जैसे Leucine, Isoleucine, Glutamate
    5. Cortisol metabolites तनाव और ऊष्मा प्रतिक्रिया से जुड़े

    प्रमुख प्रोटीन बायोमार्कर्स:

    1. Dermcidin पसीने में सामान्यत: पाया जाने वाला एंटीमाइक्रोबियल प्रोटीन
    2. Heat shock proteins (HSP70 family) ऊष्माजन्य तनाव प्रतिक्रिया प्रोटीन
    3. S100 calcium-binding proteins त्वचा की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में सहायक
    4. Cystatin-A त्वचा की सुरक्षा और घाव भरने में सहायक
    5. Immunoglobulin fragments प्रतिरक्षा प्रणाली की क्रियाशीलता के सूचक

    विशेष बिंदु:

    • ये मेटाबोलाइट्स और प्रोटीन्स न केवल गर्म वातावरण में बल्कि कसरत, उमस, और सुरक्षात्मक कपड़े पहनने की स्थिति में भी पाए गए।
    • ये बायोमार्कर व्यक्तिगत ऊष्मा सहनशीलता की जानकारी देने के लिए उपयोगी हो सकते हैं।

    पूरा डाटा और विश्लेषण आप इस शोधपत्र में देख सकते हैं, जहाँ Supplementary Tables में सभी 31 मेटाबोलाइट्स और 137 प्रोटीन बायोमार्कर की सूची दी गई है।


अक्सर यह बात भी कही जाती है कि - क्या अन्य जीवों की तरह मानव के पसीने में भी Pheromones होते हैं? अध्ययन के अनुसार उनमें भी यह फेरोमोंस देखे गए हैं और हम यहाँ उनकी पहचान, जैव-रासायनिकी, कार्य एवं महत्व पर शोधपरक प्रकाश डालने का प्रयास करते हैं

तमाम Studies के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मानव पसीने में फेरोमोन (Pheromones) पाए जाते हैं, जो जैव-रासायनिक संकेतक होते हैं और सामाजिक व यौन व्यवहारों को प्रभावित कर सकते हैं। हालाँकि, मानव फेरोमोन की पहचान और प्रभाव को लेकर वैज्ञानिक समुदाय में अभी भी शोध जारी है।


🔬 फेरोमोन की पहचान और जैव-रासायनिकी

मानव शरीर में तीन प्रमुख ग्रंथियाँएपोक्रीन (apocrine), एक्राइन (eccrine), और सिबेशियस (sebaceous)पसीने और अन्य स्रावों के माध्यम से फेरोमोन जैसे यौगिकों का स्राव करती हैं। विशेष रूप से, एपोक्रीन ग्रंथियाँ, जो बगल और जननांग क्षेत्रों में पाई जाती हैं, यौन और सामाजिक संकेतों से जुड़े यौगिकों का उत्पादन करती हैं।

प्रमुख फेरोमोन यौगिकों में शामिल हैं:

  • एंड्रोस्टेनोन (Androstenone): यह पुरुषों के पसीने में पाया जाता है और कुछ अध्ययनों के अनुसार, यह महिलाओं में यौन आकर्षण को प्रभावित कर सकता है।
  • एंड्रोस्टेडिनोन (Androstadienone): यह यौगिक पुरुषों के पसीने में पाया जाता है और महिलाओं में मूड और कोर्टिसोल स्तर को प्रभावित कर सकता है।
  • एंड्रोस्टेनोल (Androstenol): यह ताजे पसीने में पाया जाता है और सामाजिक आकर्षण से जुड़ा हो सकता है।
  • एस्ट्राटेट्रेनोल (Estratetraenol): यह महिलाओं के मूत्र और पसीने में पाया जाता है और पुरुषों में यौन आकर्षण को प्रभावित कर सकता है।

ये यौगिक त्वचा पर मौजूद बैक्टीरिया की क्रिया से गंधयुक्त यौगिकों में परिवर्तित होते हैं, जो फेरोमोन के रूप में कार्य कर सकते हैं।


कार्य और प्रभाव

हालाँकि मानवों में वॉमेरोनासल अंग (Vomeronasal Organ) अविकसित होता है, फिर भी सामान्य घ्राण प्रणाली के माध्यम से फेरोमोन का प्रभाव देखा गया है।

  • मूड और हार्मोन पर प्रभाव: एंड्रोस्टेडिनोन महिलाओं में कोर्टिसोल स्तर बढ़ा सकता है, जो तनाव और मूड को प्रभावित करता है।
  • यौन आकर्षण: कुछ अध्ययन बताते हैं कि एंड्रोस्टेनोन और एस्ट्राटेट्रेनोल विपरीत लिंग के व्यक्तियों में यौन आकर्षण को प्रभावित कर सकते हैं।
  • मासिक धर्म चक्र का समन्वय: कुछ शोधों में यह पाया गया है कि महिलाओं के पसीने में मौजूद फेरोमोन अन्य महिलाओं के मासिक धर्म चक्र को समन्वित कर सकते हैं।

📚 शोध और निष्कर्ष

मानव फेरोमोन पर शोध अभी भी जारी है, और कई निष्कर्षों को पुनःप्राप्त करना कठिन रहा है। हालाँकि, कुछ अध्ययन इस दिशा में महत्वपूर्ण संकेत प्रदान करते हैं:

  • एक अध्ययन में पाया गया कि पुरुषों के पसीने में मौजूद यौगिक महिलाओं के कोर्टिसोल स्तर को बढ़ा सकते हैं, जिससे मूड और यौन आकर्षण प्रभावित हो सकता है।
  • एक अन्य अध्ययन में यह देखा गया कि भय के दौरान उत्पन्न पसीने की गंध अन्य लोगों में एमिग्डाला (amygdala) को सक्रिय कर सकती है, जो भावनात्मक प्रतिक्रिया से जुड़ा होता है।

मानव पसीने में फेरोमोन की उपस्थिति पर शोध दर्शाता है कि भावनात्मक तनाव (Emotional stress) के दौरान निकले पसीने में ऐसे रासायनिक संकेतक (Chemical signals) होते हैं जिन्हें "Alarm pheromones" कहा जाता है। नीचे इस विषय पर शोध-संबंधी मुख्य बिंदुओं का सार है:

प्रमुख शोधपत्र:

"Second-Hand Stress: Neurobiological Evidence for a Human Alarm Pheromone"

(LR Mujica-Parodi et al., Nature Precedings)


फेरोमोन की पहचान कैसे की गई?

  • शोधकर्ताओं ने 144 व्यक्तियों के पसीने को दो स्थितियों में संग्रहित किया:
    • भावनात्मक तनाव: पहले-पहल स्काइडाइविंग करते समय।
    • शारीरिक व्यायाम: ट्रेडमिल पर दौड़ते समय।
  • यह पाया गया कि:
    • तनावपूर्ण पसीना मस्तिष्क के Amygdala क्षेत्र को सक्रिय करता है, जो डर और खतरे की प्रतिक्रिया से जुड़ा है।
    • जबकि व्यायाम से आया पसीना ऐसा प्रभाव नहीं दिखाता।

जैव-रासायनिकी (Biochemistry):

  1. फेरोमोन रसायन:
    • इंसानों में पहचाने गए फेरोमोन में शामिल हैं:
      • Androstadienone (AND)
      • Estratetraenol (EST)
      • Cortisol द्वारा प्रभावित सिग्नल्स
    • ये रसायन मुख्यतः बगल (Axillary) ग्रंथियों से स्रवित होते हैं।
  2. कार्य:
    • फेरोमोन्स दूसरों में चेतावनी, डर या सतर्कता की भावना उत्पन्न करते हैं।
    • वे संज्ञानात्मक प्रदर्शन (जैसे कि शब्द पहचान कार्य) को प्रभावित करते हैं।

प्रभाव और महत्व:

  • फेरोमोन शरीर की स्वचालित रासायनिक भाषा हैं, जो संवाद के लिए गंध का प्रयोग करते हैं।
  • ये विशेष रूप से अन्य व्यक्तियों के भावनात्मक और व्यवहारिक प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित कर सकते हैं।
  • जानवरों में यह क्षमता व्यापक है, और मानवों में भी सीमित लेकिन महत्वपूर्ण उपस्थिति मानी गई है।

आइए अब हम मानव फेरोमोन की रासायनिक संरचना, संश्लेषण, और मस्तिष्क पर प्रभाव को जैव-रासायनिक दृष्टिकोण से समझते हैं, विशेषकर तीन प्रमुख फेरोमोन यौगिकों पर केंद्रित रहते हुए:


1. एंड्रोस्टेडिनोन (Androstadienone - AND)

रासायनिक संरचना:

  • IUPAC नाम: 5α-androst-16-en-3-one
  • रासायनिक सूत्र: C19H26O
  • श्रेणी: स्टेरॉइडल फेरोमोन (steroid-derived)

निर्माण और स्राव:

  • यह यौगिक Testosterone के मेटाबोलिज्म द्वारा बगल की एपोक्रीन ग्रंथियों में बनता है।
  • इसमें मौजूद डबल बांड (dien) और केटोन समूह (C=O) इसे उड़नशील और क्रियाशील बनाते हैं।

मस्तिष्क पर प्रभाव:

  • महिलाओं में एंड्रोस्टेडिनोन का सूंघना:
    • Amygdala, hypothalamus, और prefrontal cortex को सक्रिय करता है।
    • Cortisol का स्राव बढ़ता है, जिससे तनाव और ध्यान की प्रक्रिया प्रभावित होती है।
    • भावनात्मक जुड़ाव और संवेदनशीलता बढ़ सकती है।

2. एंड्रोस्टेनोल (Androstenol)

रासायनिक संरचना:

  • IUPAC नाम: 5α-androst-16-en-3α-ol
  • रासायनिक सूत्र: C19H30O
  • गंध: मिट्टी जैसी / कस्तूरी जैसी

स्राव और निर्माण:

  • ताजे पसीने में उच्च स्तर पर पाया जाता है।
  • यह एक सामाजिक सिग्नल यौगिक है, जो लाइव गंध संकेत का काम करता है।

प्रभाव:

  • यह सामाजिक आकर्षण बढ़ाता है।
  • अध्ययनों के अनुसार, जब व्यक्ति इस यौगिक को सूंघता है, तो दूसरे व्यक्ति के प्रति अपनापन और मित्रता की भावना विकसित होती है।

3. एस्ट्राटेट्रेनोल (Estratetraenol - EST)

रासायनिक संरचना:

  • IUPAC नाम: 1,3,5(10),16-Estratetraen-3-ol
  • रासायनिक सूत्र: C18H24O

स्रोत:

  • महिलाओं के मूत्र व पसीने में पाया जाता है।
  • यह एक संभावित महिला फेरोमोन है।

प्रभाव:

  • पुरुषों में इसका प्रभाव यौन आकर्षण और संज्ञानात्मक प्रतिक्रिया में बदलाव के रूप में देखा गया है।
  • यह भी हाइपोथैलेमस क्षेत्र को सक्रिय करता है।

फेरोमोन की गंध का तंत्र (Olfactory Mechanism):

  • Main Olfactory Epithelium (MOE):
    • जहाँ सामान्य गंध रिसेप्टर होते हैं।
    • इंसानों में यही फेरोमोन भी पहचानते हैं, क्योंकि VNO (Vomeronasal Organ) अविकसित होता है।
  • G-Protein Coupled Receptors (GPCRs):
    • फेरोमोन इन रिसेप्टर्स से जुड़ते हैं और सिग्नल को olfactory bulb और फिर limbic system में भेजते हैं।
  • Neural Response Pathway:

Pheromone → Olfactory Receptor → Olfactory Bulb → Amygdala →

Hypothalamus → Hormonal/Behavioral Response


Clinical और Evolutionary Significance:

क्षेत्र

      संभावित लाभ / प्रभाव

यौन चयन

      उपयुक्त साथी की पहचान में संकेत

सामाजिक व्यवहार

      अपनापन, डर, चेतावनी या तनाव संकेत

हार्मोनल संतुलन

      हाइपोथैलेमस और पिट्यूटरी के ज़रिए हार्मोन स्राव में बदलाव


अन्य अध्ययन जो समर्थन करते हैं:

  • Chen & Haviland-Jones (2000): डर से उत्पन्न पसीने को लोग पहचान सकते हैं।
  • Prehn-Kristensen et al. (2009): तनावपूर्ण पसीना दूसरों के "startle reflex" को बढ़ा देता है।
  • Zhou & Chen (2009): तनावपूर्ण गंध दूसरों की चेहरे की व्याख्या को प्रभावित करती है।

आजकल तो यह भी कहा जा रहा है कि पसीने की जांच के आधार पर बहुत सारी गंभीर बीमारियों का पता भी लगाया जा सकता है। इसके लिए कुछ सेंसर आधारित डिवाइस भी और किट भी बनाये जा रहे हैं। आइये पूरा सच क्या हैशोधपरक जानकारी के साथ जानने की कोशिश करते हैं

यह बात पूरी तरह से शोध-आधारित और वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है कि पसीने (Sweat) की जांच के ज़रिए कई गंभीर और क्रॉनिक बीमारियों का प्रारंभिक स्तर पर पता लगाया जा सकता है। इसके लिए आजकल कई नैनो-बायोसेंसर आधारित डिवाइस, पहनने योग्य सेंसर (Wearable sensors) और स्मार्ट पैच विकसित किए जा रहे हैं।


पसीने की जांच से संभावित बीमारियाँ जिनकी पहचान की जा सकती है:

बीमारी

         पसीने में पता चलने वाले संकेतक (Biomarkers)

डायबिटीज

         ग्लूकोज, लैक्टेट

किडनी रोग

         यूरिया, क्रिएटिनिन

सिस्टिक फाइब्रोसिस

         क्लोराइड, सोडियम

डिहाइड्रेशन

         इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन

हार्मोनल असंतुलन

         कोर्टिसोल, टेस्टोस्टेरोन

गर्भावस्था संबंधित

         प्रोजेस्टेरोन, एस्ट्रोजेन

कैंसर संभाव्यता

         कुछ विशेष प्रोटीन और वाष्पशील यौगिक


प्रमुख Wearable Biosensor Technologies (शोध और विकास):



पसीने की जांच के माध्यम से गंभीर बीमारियों की पहचान और स्वास्थ्य निगरानी के लिए कई उन्नत सेंसर आधारित डिवाइस और किट विकसित की जा रही हैं। ये डिवाइस न केवल गैर-आक्रामक (non-invasive) हैं, बल्कि वास्तविक समय (real-time) में स्वास्थ्य संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं।


1. Graphene-based sweat sensors

  • यूसी बर्कले और सैन डिएगो यूनिवर्सिटी में विकसित।
  • ये सेंसर नैनोमीटर स्तर पर ग्लूकोज और लैक्टेट की सटीक मात्रा माप सकते हैं।

2. Colorimetric Skin Patches (रंग बदलने वाले पैच)

  • जब कोई बायोमार्कर अधिक हो जाता है, तो पैच का रंग बदल जाता है।
  • विशेषतः स्पोर्ट्स हेल्थ और हीट स्ट्रोक डिटेक्शन के लिए।

3. Flexible Microfluidic Sensors

  • MIT और Stanford के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित।
  • पसीने की धारा को माइक्रोचैनल में ले जाकर वास्तविक समय (real-time) मापन।

महत्वपूर्ण शोध पत्र (Research papers and institutions):

  1. Gao et al. (2016), Nature
    “Fully integrated wearable sensor arrays for multiplexed in situ perspiration analysis.”
    • पसीने के माध्यम से मल्टीपल बायोमार्कर की रियल-टाइम मॉनिटरिंग।
  2. Parlak et al. (2018), Science Advances
    • Wearable organic electrochemical sensors for glucose detection from sweat.
  3. World Health Organization (WHO) Reports
    • Non-invasive diagnostics में पसीना एक emerging frontier है।

भविष्य की संभावनाएँ:

  • पसीने के सैंपल से कोविड-19, ट्यूबरकुलोसिस और कैंसर जैसे रोगों की पहचान।
  • AI आधारित Wearable Devices पसीने का real-time डेटा क्लाउड में भेजेंगी।
  • इसका उपयोग मेडिकल चेकअप, एथलीट निगरानी, मिलिटरी, और यहां तक कि स्पेस मिशन में भी किया जा रहा है।

पसीने से बीमारियों की पहचान: वैज्ञानिक दृष्टिकोण

पसीना शरीर के विभिन्न जैविक संकेतकों (biomarkers) को दर्शाता है, जैसे:

  • ग्लूकोज: मधुमेह की निगरानी के लिए
  • लैक्टेट: मांसपेशियों की थकान और व्यायाम की तीव्रता का संकेत
  • सोडियम और पोटेशियम: इलेक्ट्रोलाइट संतुलन और डिहाइड्रेशन की स्थिति
  • क्लोराइड: सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसी बीमारियों की पहचान
  • कोर्टिसोल: तनाव और हार्मोनल असंतुलन का संकेत

इन संकेतकों की पहचान के लिए विकसित किए गए सेंसर अत्यधिक संवेदनशील और सटीक हैं, जो पसीने में मौजूद सूक्ष्म परिवर्तनों को भी पकड़ सकते हैं।


भारत में अनुसंधान और विकास

भारत में भी पसीने आधारित सेंसर के विकास पर कार्य हो रहा है:

  • CSIR-Central Electrochemical Research Institute (CECRI) के वैज्ञानिकों ने एक लचीला, कम लागत वाला पहनने योग्य सेंसर विकसित किया है, जो पसीने के माध्यम से स्वास्थ्य और शारीरिक स्थिति की निगरानी कर सकता है। यह सेंसर रक्त और अन्य आक्रामक परीक्षणों की आवश्यकता को समाप्त कर सकता है।

📈 बाजार की स्थिति और भविष्य की संभावनाएं

  • वैश्विक बाजार: 2023 में $3.9 बिलियन का था, जो 2033 तक $11.8 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है।
  • भारत में संभावनाएं: बढ़ती स्वास्थ्य जागरूकता और तकनीकी प्रगति के साथ, भारत में भी इन डिवाइसों की मांग में वृद्धि हो रही है।

💡 निष्कर्ष:

पसीना अब केवल शरीर की शीतलन प्रणाली नहीं है, बल्कि यह रक्त से निकले हुए micro-molecules (जैसे electrolytes, hormones, metabolites, proteins, antibodies आदि) का भी दर्पण है। यही कारण है कि वैज्ञानिक अब non-invasive diagnostics के लिए पसीने को “liquid biopsy” के रूप में देख रहे हैं।

जब शरीर बोलता है बिना बोले पसीने से रोगों का पूर्वानुमान और जैव-निगरानी की नई क्रांति।

धूप में बैठने और कसरत करने से उत्पन्न पसीने की संरचना में अंतर होता है। कसरत के दौरान पसीने में अधिक नमक की हानि होती है, जबकि धूप में बैठने से उत्पन्न पसीने में मेटाबोलिक अपशिष्ट उत्पादों की अधिकता होती है। यह जानकारी हाइड्रेशन और इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है, विशेषकर गर्म और आर्द्र जलवायु में।


Key Research Resources / प्रमुख स्रोत:

  1. Gao, Wei et al. (Nature, 2016):
    "Fully integrated wearable sensor arrays for multiplexed in situ perspiration analysis”
  2. Choi, Jungil et al. (Science Translational Medicine, 2017):
    “Wearable sweat biosensor for cystic fibrosis diagnosis”
  3. Sharma, S. et al. (Biosensors and Bioelectronics, 2020)
  4. MIT Media Lab Reports on Sweat-based COVID-19 detection
  5. CSIR India, CECRI – Indigenous sweat sensor development
  6. NCBI ​Nature PMC Science 

  7. PubMed+1Physiology Journals+1

  8. PubMed+1unboundmedicine.com+1

  9. Physiology Journals


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टिप्पणी:-

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लेखक:-

डॉ. प्रदीप सोलंकी 

  " मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ। " - डेसकार्टेस 

विज्ञान शिक्षक, शिक्षाविद, प्राणिविद, पर्यावरणविद, ऐस्ट्रोनोमर, करिअर काउन्सलर, ब्लॉगर, यूट्यूबर, एवं पूर्व सदस्य  टीचर्स हैन्ड्बुक कमिटी सीएम राइज़ स्कूल्स एवं पीएम श्री स्कूल्स परियोजना तथा पर्यावरण शिक्षण समिति, माध्यमिक शिक्षा मण्डल भोपाल मध्यप्रदेश  

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सोमवार, 17 फ़रवरी 2025

"नेपल्स, इटली के वैज्ञानिकों ने खोजा अंडा पकाने का सही तरीका: विज्ञान और तापमान का खेल"

"नेपल्स, इटली के वैज्ञानिकों ने खोजा अंडा पकाने का सही तरीका: विज्ञान और तापमान का खेल"

"Scientists from Naples, Italy discover the perfect way to cook an egg: a game of science and temperature"



सामान्य  परिचय


अंडा एक ऐसा भोजन है जिसे सही तरीके से पकाने के लिए विज्ञान की समझ आवश्यक होती है। हाल ही में इटली के नेपल्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक शोध किया, जिसमें यह पता चला कि अंडे की जर्दी और सफेद भाग (एग व्हाइट) अलग-अलग तापमान पर पकते हैंइस अध्ययन के अनुसार, अगर अंडे को सही तापमान और समय के संतुलन के साथ पकाया जाए, तो उसका स्वाद, बनावट और पोषक तत्व बेहतर बनाए रखे जा सकते हैं। इस विधि के अनुसार, अंडे को पहले 100 डिग्री सेल्सियस पर 2 मिनट तक उबाला जाता है, फिर उसे चूल्हे से हटाकर 2 मिनट के लिए गर्म पानी के बर्तन में रखा जाता है। इस प्रक्रिया को कुल 32 मिनट तक दोहराया जाता है। यह विधि अंडे की जर्दी और सफेद भाग के विभिन्न रासायनिक गुणों को ध्यान में रखते हुए विकसित की गई है, ताकि दोनों हिस्से समान रूप से पकें और पोषक तत्व संरक्षित रहें।





अंडे के दो भाग और उनका रासायनिक अंतर


एक अंडा मुख्य रूप से अंडे की सफेदी (एल्ब्यूमिन) और अंडे की जर्दी से बना होता है, जिसमें जर्दी में अधिकांश वसा और वसा में घुलनशील विटामिन होते हैं जबकि सफेद भाग में अधिकांश प्रोटीन होता है; पोषण की दृष्टि से, अंडे प्रोटीन, कोलीन, कई बी विटामिन (जैसे बी 12 और राइबोफ्लेविन), विटामिन ए, विटामिन डी, सेलेनियम और लौह और फास्फोरस जैसे खनिजों का एक समृद्ध स्रोत हैं , इनमें से अधिकांश पोषक तत्व जर्दी में केंद्रित हैं। अंडे उन कुछ खाद्य पदार्थों में से एक हैं जिन्हें संपूर्ण प्रोटीन माना जाता है, क्योंकि उनमें सभी 9 आवश्यक अमीनो एसिड होते हैं। अमीनो एसिड को 'शरीर के लिए निर्माण खंड' माना जाता है क्योंकि वे प्रोटीन बनाने में मदद करते हैं।

आपको ऊर्जा देने के अलावा, आपका शरीर अंडे में पाए जाने वाले प्रोटीन का उपयोग निम्नलिखित कार्यों के लिए करता है:

  • शरीर के ऊतकों और कोशिकाओं का निर्माण और मरम्मत करना
  • स्वस्थ मांसपेशियों का निर्माण और रखरखाव
  • मजबूत बाल और नाखून विकसित करें
  • संक्रमण से लड़ने में मदद करें
  • आपके शरीर के तरल पदार्थों को संतुलन में रखने में मदद करें
 

अंडे के मुख्य घटक: 



  • अंडे का सफ़ेद भाग (एल्ब्यूमिन): इसमें मुख्य रूप से पानी और प्रोटीन होता है, तथा वसा बहुत कम होती है।   
  • अंडे की जर्दी: अंडे में अधिकांश वसा, कोलेस्ट्रॉल, विटामिन ए, डी, ई, तथा लौह, फास्फोरस और कोलीन जैसे महत्वपूर्ण खनिज होते हैं।   

अंडे की पोषण संबंधी विशेषताएं:

  • उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन: अंडे सभी आवश्यक अमीनो एसिड के साथ एक सम्पूर्ण प्रोटीन प्रोफ़ाइल प्रदान करते हैं।   
  • कोलीन: मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व, विशेष रूप से गर्भावस्था और प्रारंभिक विकास के दौरान।   
  • विटामिन बी12 और बी2 (राइबोफ्लेविन): कोशिका चयापचय और ऊर्जा उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण।   
  • सेलेनियम: एक एंटीऑक्सीडेंट जो प्रतिरक्षा कार्य का समर्थन करता है।   
  • ल्यूटिन और ज़ेक्सैंथिन: कैरोटीनॉयड आंखों के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।   
विचारणीय महत्वपूर्ण बिन्दु:
अंडे प्रकृति के सबसे पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों में से एक हैं। 
  •  एक बड़े (53 ग्राम) ग्रेड-ए अंडे में 6 ग्राम प्रोटीन और केवल 70 कैलोरी होती है।
  • कोलेस्ट्रॉल: यद्यपि अण्डों में कोलेस्ट्रॉल होता है, लेकिन हालिया शोध से पता चलता है कि मध्यम मात्रा में अण्डे का सेवन अधिकांश स्वस्थ व्यक्तियों के रक्त कोलेस्ट्रॉल के स्तर को महत्वपूर्ण रूप से नहीं बढ़ाता है।   
  • वसा संरचना: अण्डों में अधिकांश वसा असंतृप्त होती है, जिसे "स्वस्थ" वसा माना जाता है।   
  • पोषक तत्व सामग्री में भिन्नता: अंडे का पोषण प्रोफाइल मुर्गी की नस्ल और उसके आहार के आधार पर थोड़ा भिन्न हो सकता है।

नेपल्स के वैज्ञानिकों की नई विधि

नेपल्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अंडे पकाने के लिए एक विशेष तकनीक विकसित की, जिससे जर्दी और सफेदी दोनों सही तरीके से पक सकें।

नई प्रक्रिया:

  • अंडे को पहले 100°C (212°F) पर 2 मिनट तक उबाला जाता है।
  • फिर इसे चूल्हे से हटाकर गर्म पानी में 2 मिनट के लिए रखा जाता है
  • इस प्रक्रिया को कुल 32 मिनट तक दोहराया जाता है, जिससे अंडे का पूरा भाग समान रूप से पक सके।

इस विधि के फायदे:

  • संतुलित तापमान नियंत्रण – अंडे के दोनों हिस्से समान रूप से पकते हैं।
  • बेहतर बनावट – सफेदी न तो बहुत कठोर होती है, न ही जर्दी ज्यादा सूखती है।
  • पोषक तत्वों का संरक्षण – अधिक तापमान पर पकाने से कई विटामिन और प्रोटीन नष्ट हो सकते हैं। यह विधि इसे कम से कम प्रभावित करती है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण: अंडे पकाने में तापमान का महत्व

शोध में यह पाया गया कि सही तापमान पर पकाने से अंडे के प्रोटीन बेहतर तरीके से संरक्षित रहते हैं।

  • ज़्यादा तापमान (85°C+): प्रोटीन अधिक कठोर हो जाता है, जिससे अंडा रबड़ जैसा लगने लगता है।
  • कम तापमान (60-70°C): प्रोटीन का सही जमाव होता है, जिससे अंडा नरम और स्वादिष्ट बनता है।

इसका वैज्ञानिक आधार मैयर-रेक्स (Maillard Reaction) और डेनैचुरेशन प्रोसेस है, जिसमें उच्च तापमान पर प्रोटीन की संरचना बदलने लगती है।


कैसे अपनाएं यह विधि घर पर?

यदि आप इस तकनीक को घर पर आज़माना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए स्टेप्स का पालन करें:

  1. अंडे को उबलते पानी (100°C) में 2 मिनट तक रखें।
  2. इसके बाद इसे गर्म पानी (80°C) में 2 मिनट के लिए रखें।
  3. इस प्रक्रिया को 30 मिनट तक दोहराएं।
  4. अंडे को ठंडे पानी में डालें और फिर छीलकर देखें – आपको एक समान रूप से पका हुआ अंडा मिलेगा।

निष्कर्ष


अंडे की संरचना में कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO₃) से बना एक खोल होता है, जो अर्धचालक झिल्ली के रूप में कार्य करता है और वायु एवं आर्द्रता को अपने छिद्रों से गुजरने की अनुमति देता है। अंडे की जर्दी और सफेद भाग के पकने के तापमान अलग-अलग होते हैं, इसलिए उन्हें सही तरीके से पकाने के लिए तापमान और समय का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। इस नई विधि से अंडे के दोनों हिस्सों को समान रूप से पकाया जा सकता है, जिससे उनकी बनावट और स्वाद में सुधार होता है। नेपल्स, इटली के वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया है कि अंडा पकाने का सही तरीका केवल उबालने या फ्राई करने तक सीमित नहीं है। तापमान और समय के सही संतुलन से अंडे के पोषक तत्वों को सुरक्षित रखते हुए उसकी बनावट और स्वाद को भी बेहतर बनाया जा सकता है।

अब जब विज्ञान ने अंडे पकाने की इस अनूठी विधि को खोज लिया है, तो क्यों न इसे अपने किचन में अपनाया जाए?

स्वस्थ, संतुलित आहार बनाए रखने के लिए, कनाडा के खाद्य गाइड में उम्र और लिंग के आधार पर हर दिन 1-3 सर्विंग मीट और विकल्प खाने की सलाह दी जाती है। इसमें विभिन्न प्रकार के प्रोटीन स्रोत शामिल हैं, जैसे मांस, मुर्गी, मछली, बीन्स और अंडे।

अधिक जानकारी के लिए, आप नीचे दिए गए वीडियो में अंडे उबालने का सही तरीका देख सकते हैं:



संदर्भ (References):

  1. The Sigma News "इटली के वैज्ञानिकों की नई अंडा पकाने की विधि" (thesigmanews.com)
  2. Testbook "अंडे के खोल की संरचना" (testbook.com)
  3. YouTube वीडियो "अंडे उबालने का सही तरीका" (YouTube)
  4. thesigmanews.com
  5. testbook.com

कीवर्ड्स (Keywords):

  • अंडा पकाने का सही तरीका
  • अंडे की जर्दी और सफेदी का तापमान
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अंडा उबालना
  • अंडे का पोषण और सही पकाने की विधि
  • अंडे के रासायनिक गुण
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  • नेपल्स, इटली के वैज्ञानिकों का शोध

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लेखक:-

डॉ. प्रदीप सोलंकी 

  " मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ। " - डेसकार्टेस 

विज्ञान शिक्षक, शिक्षाविद, प्राणिविद, पर्यावरणविद, ऐस्ट्रोनोमर, करिअर काउन्सलर, ब्लॉगर, यूट्यूबर, एवं पूर्व सदस्य  टीचर्स हैन्ड्बुक कमिटी सीएम राइज़ स्कूल्स एवं पीएम श्री स्कूल्स परियोजना तथा पर्यावरण शिक्षण समिति, माध्यमिक शिक्षा मण्डल भोपाल मध्यप्रदेश  

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