मंगलवार, 25 जुलाई 2023

How can trees talk to each other? - Dr. Pradeep Solanki

How trees talk to each other?

पेड़ आपस में बात कैसे करते हैं?

(English/हिंदी)



Trees can talk to each other through underground fungal networks that connect their roots.

These networks, sometimes called the Wood Wide Web, allow trees to share water, nutrients and distress signals about drought, disease, or insect attacks. 

They also help trees to search for kin, cooperate with allies, and compete with rivals.

Trees do not have mouths, so they do not really “talk”, but they use volatile chemicals and fungal filigrees to send and receive messages. Different species of trees and fungi form different types of partnerships, depending on their needs and abilities. Some trees can even recognize and prefer their own offspring or relatives and transfer more resources to them.

The Wood Wide Web is an ancient and complex system that helps forests to function as a whole. It plays a key role in maintaining the health and diversity of the ecosystem, as well as storing carbon and mitigating climate change.

However, it is also threatened by human activities, such as logging, agriculture and urbanization that disrupt the soil and damage the fungal networks. 

If you want to learn more about how trees talk to each other, you can check out these links:

  • Inexpensive Tree Care: Do Trees ‘Talk’ To Each Other? Yes, they do. Sorta.

https://inexpensivetreecare.com/blog/trees-talk/

  • Yale E360: Exploring How and Why Trees ‘Talk’ to Each Other

https://e360.yale.edu/features/exploring_how_and_why_trees_talk_to_each_other

  • Smithsonian Magazine: Do Trees Talk to Each Other?
  • https://www.smithsonianmag.com/science-nature/the-whispering-trees-180968084/
  • BBC News: How trees secretly talk to each other.
  • https://www.bbc.co.uk/news/av/science-environment-44643177

I hope this helps you understand how trees talk to each other. If you have any questions or want more information, please let me know.


पेड़ आपस में कैसे बात करते हैं ?

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पेड़ अपनी जड़ों को जोड़ने वाले भूमिगत कवक नेटवर्क के माध्यम से एक दूसरे से बात कर सकते हैं। ये नेटवर्क, जिन्हें कभी-कभी "वुड वाइड वेब" भी कहा जाता है, पेड़ों को पानी, पोषक तत्व और सूखे, बीमारी या कीड़ों के हमलों के बारे में संकट के संकेत साझा करने की अनुमति देते हैं।

वे पेड़ों को अपने रिश्तेदारों अर्थात अपनी प्रजाति के पेड़ों की खोज करने, सहयोगियों के साथ सहयोग करने और प्रतिद्वंद्वियों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में भी मदद करते हैं।

पेड़ों के मुंह नहीं होते हैं, इसलिए वे वास्तव में "बात" नहीं करते हैं, लेकिन वे संदेश भेजने और प्राप्त करने के लिए वाष्पशील रसायनों (अस्थिर) और फंगल फ़िलीग्रीस (कवक जाल) का उपयोग करते हैं। पेड़ों और कवक की विभिन्न प्रजातियाँ अपनी आवश्यकताओं और क्षमताओं के आधार पर विभिन्न प्रकार की साझेदारियाँ बनाती हैं।

कुछ पेड़ अपनी संतानों या रिश्तेदारों अर्थात अपने से ही उत्पन्न प्रजाति/ स्वप्रजाति को भी पहचान और पसंद कर सकते हैं तथा उन्हें अधिक संसाधन हस्तांतरित कर सकते हैं।

वुड वाइड वेब एक प्राचीन और जटिल प्रणाली है जो जंगलों को समग्र रूप से कार्य करने में मदद करती है। यह पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य और विविधता को बनाए रखने के साथ-साथ कार्बन का भंडारण करने और जलवायु परिवर्तन को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालाँकि, इसे मानवीय गतिविधियों, जैसे लॉगिंग, कृषि और शहरीकरण से भी खतरा है, जो मिट्टी को बाधित करते हैं और फंगल नेटवर्क को नुकसान पहुंचाते हैं।

यदि आप इस बारे में अधिक जानना चाहते हैं कि पेड़ एक-दूसरे से कैसे बात करते हैं, तो आप इन लिंक को देख सकते हैं:

पेड़ों की सस्ती देखभाल: क्या पेड़ एक दूसरे से 'बातचीत' करते हैं?

हाँ वे करते हैं। सॉर्टा।

https://inexpentivetreecare.com/blog/trees-talk/

येल ई360: यह पता लगाना कि पेड़ एक-दूसरे से कैसे और क्यों बात करते हैं?

https://e360.yale.edu/features/exploring_how_and_why_trees_talk_to_each_other

स्मिथसोनियन पत्रिका: क्या पेड़ एक दूसरे से बात करते हैं?

https://www.smithsonianmag.com/science-nature/the-whispering-trees-180968084/

बीबीसी समाचार: कैसे पेड़ एक दूसरे से गुप्त रूप से बात करते हैं?

https://www.bbc.co.uk/news/av/science-environment-44643177


मुझे आशा है कि इससे आपको यह समझने में मदद मिलेगी कि पेड़ एक दूसरे से कैसे बात करते हैं। यदि आपके कोई प्रश्न हैं या अधिक जानकारी चाहते हैंतो कृपया मुझे बताएं I


References: Some books & Internet websites & BBC Science news.


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गुरुवार, 20 जुलाई 2023

खुशियों के त्यौहार दीवाली पर उल्लुओं की आफ़त: समाज का एक विकृत चेहरा - डॉ. प्रदीप सोलंकी

खुशियों के त्यौहार दिवाली पर उल्लुओं की आफ़तसमाज का एक विकृत चेहरा 

- डॉ. प्रदीप सोलंकी

       गुना, (म.प्र.) 16 नवम्बर, 2020  


दीपावली के नजदीक आते आते उल्लुओं के खरीदने व बेचने का बाज़ार अपने चरम पर होता है, साथ ही उन जानवरों का भी जिनकी किसी न किसी रूप में बलि दी जाती है I ये तब है जबकि भारत में उल्लुओं के साथ साथ सभी वन्य जीव “भारतीय वन्य जीव अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 के तहत संरक्षित हैं I उल्लू को संरक्षित पक्षियों की सूची में प्रथम श्रेणी में शामिल किया गया है, जबकि पहले यह चतुर्थ श्रेणी में शामिल था I इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर (IUCN) ने उल्लुओं को लुप्तप्राय जातियों में शामिल किया है I उल्लुओं को पकड़ने-बेचने पर तीन साल या उससे ज्यादा की सजा का प्रावधान है, लेकिन इसके बाबजूद भी दीपावली के अवसर पर इन सारे नियमों को धता बताते हुए वृहद मात्रा में उल्लुओं का शिकार धड़ल्ले से किया जाता है I हालाँकि वन विभाग अलर्ट भी जारी कर्ता है और सतत निगरानी भी, फिर भी उल्लुओं का शिकार हम सबको सोचने पर विवश करता है कि आखिर हमारी शिक्षा पद्धति में कहाँ कमीं रह गयी जिससे शिकारी धार्मिक अंधविश्वास में बुरी तरह से जकड़े रह कर, बिना किसी सजा के डर के शिकार करता ही है I दीवाली में मुंहमांगे दाम पर बिकते हैं उल्लू: सामान्य दिन कोई भी उल्लू आपको 300 से 500 रुपये में मिल जाएगा। लेकिन दीवाली के दिन इसकी कीमतें आसमान छूतीं हैं। दीवाली वाले दिन उल्लू मुंहमांगी कीमत पर बिकते हैं। आमतौर पर दीवाली वाले दिन उल्लू की कीमत 10,000 से शुरू होती है और ये कीमत उल्लू की खासियत के साथ बढ़ती रहती है। इस वजह से उल्लुओं की बलि दी जाती है - कोई भी धर्म बेजुबानों की जान लेना नहीं सिखाता और ना ही कोई देवी-देवता किसी जानवर की बलि नहीं मांगते। लेकिन कुछ लोग अपना स्वार्थ साधने के लिए इस तरह की भ्रांतियां समाज में फैलाते हैं और फिर इसका फायदा भी उठाते हैं। हमारा आपसे बस इतना ही कहना है कि इस तरह के किसी भी अंधविश्वास का आप हिस्सा ना बनें और अगर बेजुबानों की मौत का खेल आपके सामने खेला जाता है तुरंत अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन में शिकायत करें। अगर इंसान जानवर को मारेगा तो इंसान और जानवर में क्या फर्क रह गया।



भारत में उल्लू की 32 प्रजातियां हैं. सभी 1972 के वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के तहत आती हैं. लेकिन इसके बावजूद पुरानी दिल्ली में उल्लू बेचे जाते हैं I पुरानी दिल्ली की एक सड़क पंछी बाजार के तौर पर मशहूर है. स्थानीय लोग इसे कबूतर बाजार कहते हैं. इस बाजार के कई फड़ों में दुर्लभ पंछी पिंजरे में दिखाई पड़ते हैं I तामसी पूजा कराने वाले तांत्रिकों ने लोगों में फैले अंधविश्वास का फायदा उठाते हुए सिर्फ अपना उल्लू सीधा किया। यही वजह है कि उल्लुओं की करीब 32 प्रजातियों में से 18 की खूब तस्करी होती है । बॉम्बे नैचरल हिस्ट्री सोसायटी की रिपोर्ट के अनुसार आज इन 18 प्रजातियों का अस्तित्व खतरेमें है । वन्य जीवों की तस्करी रोकने इनके व्यापार पर नजर रखने के लिए ट्रैफिक इंडिया नामक संस्था भी सक्रिय है संस्था के असोसिएट डाइरेक्टर एम. के. एस. पाशा के अनुसार उनकी संस्था ने भारत सरकार, सभी राज्य सरकारों, कस्टम, वनविभाग, भारतीय रेलवे, सभी पब्लिक ट्रांसपोर्ट एजेंसियों, पूरे पुलिस तंत्र, पब्लिक से इन जीवों की तस्करी रोकने में मदद की अपील की है।

 



उल्लू की अवैध तस्तरी व्यापार पर विश्व प्रकृति निधि (वर्ल्ड लाइल्ड फंड- डब्लूडब्लूएफ) की अध्ययन रिपोर्ट इमपैरिल्ड कस्टोडियन्स ऑफ नाइट (खतरे में रात के पहरेदार) के मुताबिक दिवाली करीब आते ही भौतिक लाभ के लिए किए जाने वाले विभिन्न तांत्रिक अनुष्ठानों, काले जादू या टोने टोटके के लिए उल्लू के विभिन्न अंगों की मांग बढ़ जाती है। इस रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड देश के उन रायों में शामिल है जहां उल्लू का अवैध कारोबार निर्वाध गति से जारी है और जहां दीपावली के मौके पर इसकी मांग बढ़ जाती है।यह सब तब हो रहा है जबकि उल्लू प्रजाति के व्यापार व शिकार को वन्यजीव संरक्षण कानून-1972 के तहत प्रतिबंधित किया गया है और भारत 1978 के संयुक्तराष्ट्र के संकटग्रस्त पक्षियों के अवैध व्यापार के लिए हुई संधि का भागीदार है। उल्लू पकड़ने वालों के साक्षात्कार, व्यापक फील्ड सर्वेक्षण पर आधारित रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड व राजस्थान में उल्लू का अवैध व्यापार जारी है। उत्तराखंड में तो हिंदू बहेलिया समुदाय व मुस्लिन भटियारा समुदाय इस काम में लिप्त है। ये दोनों समुदाय हल्द्वानी व दून क्षेत्र में खासे सक्रिय रहते हैं। पारंपरिक तौर पर ये दोनों समुदाय पक्षियों को पकड़ कर उनका व्यापार करते थे, पर उल्लू के व्यापार में फायदा देखते हुए दीपावली के आसपास ये उल्लू यादा पकड़ने लगते हैं। अब हरिद्वार, नैनीताल व पिथौरागढ़ में उल्लू के अवैध व्यापार के मामले सामने आने लगे हैं। तंत्र-मंत्र में विश्वास करने वाले लोग उल्लू की खोपड़ी, पंख, कान, पंजे, दिल, लीवर, आंत, गुर्दे, पेट, चोंच, खून, आंख व अन्य हिस्सों का अपने तंत्र-मंत्र में इस्तेमाल करते हैं यहां तक कि कई दुकानदार उल्लू के अंगों को दुकान में इस उम्मीद के साथ रखते हैं कि इससे उनका व्यापार बढ़ जाएगा। कई लोग इस तरह का अंधविश्वास व्याप्त है कि उल्लू के अंग रखने से बच्चों को बुरी ताकतों से बचाया जा सकता है,जिसके लिए बड़े पैमाने पर तांत्रिकों की सलाह पर बच्चों को बुरी नजर से बचाने के लिए उल्लू के पंजे की मांग बढ़ जाती है। बता दें, बलि देने से पहले उल्लुओं की खातिरदारी की जाती है। तांत्रिक क्रिया के तहत उल्लू को शराब और मांस खिलाया जाता है। इस दौरान तांत्रिक उल्लुओं के पंख, आंख समेत शरीर के कई हिस्से की पूजा भी करते हैं।

शास्त्रों में बलि मना है। तंत्र के द्वारा भौतिक इच्छाओं की पूर्ति ठीक नहीं। इसे रोका जाए। उनके मुताबिक अंधविश्वासी लोग गड़ा खजाना हासिल करने, लक्ष्मी को खुश करने, दुश्मनों के सर्वनाश के लिए तंत्र क्रिया, कई ज्योतिषी पद्मावती विद्या में साधना के लिए, काली पूजा के दौरान बलि के नाम पर इस पक्षी की हत्या करने पर आमादा हैं

वन राज के राज में वन्य प्राणियों पर खतरे की तलवार लगातार लटक रही है। नील गाय, हाथी, सांभर, चीतल जैसे प्राणियों के बाद अब दुर्लभ बार्न उल्लुओं की शामत आई हुई है। 

क्या है बार्न उल्लुओं की खासियत-  प्रख्यात पक्षी वैज्ञानिक डा. सलीम अली की पुस्तक के अनुसार कौए से बड़े आकार वाले ये उल्लू दुर्लभ हैं तथा इनके बड़े से गोल सिर के चारो ओर सुस्पष्ट कंठी जैसे पर होते हैं। इनके पंख सुनहली आभा लिए हुए सफेद व धूसर रंगों वाले होते हैं। आम तौर पर उल्लुओं की बेसुरी चीख के कारण लोग उन्हें अशुभ मानते हैं, लेकिन कई इलाके में बार्न उल्लू को लक्ष्मी का वाहन मान कर उनकी पूजा की जाती है। ये आम तौर पर घरों के आसपास रहते हैं तथा चूहों को अपना भोजन बनाते हैं। इस कारण ये कृषि के लिए उपयोगी समझा जाता है।

 

आखिर ऐसे कौन से कारण हैं कि मानव ऐसे अपराध करने को विवश हो जाता है ?

1. सबसे पहला कारण जो समझ में आता है वो है “अशिक्षा”, जिसके चलते बिना कोई मेहनत किये मानव धन के लालच में आकर इस तरह के अपराध करता ही है, उसे लगता है कि किसी तथाकथित जानवर की हत्या करने के बाद कोई देवीय चमत्कार होगा और वो मालामाल हो जायेगा I जबकि सब जानते हैं कि ऐसा कुछ भी नहीं होता, वल्कि पकडे जाने पर जेल भी जाना पड़ता है और मानसिक रूप से अपराध बोध से भी ग्रसित होता है I पूरा जीवन बर्बाद तो होता ही है साथ ही उसका पूरा परिवार अपराध की छाया में सफ़र करता है I    

2. भारत में बेरोजगारी और निपुणता की कमीं (Unskilled) भी युवाओं को अपराध की ओर धकेलता है I व्यक्ति जैसा कार्य चाहते हैं वैसा मिलता नहीं और मार्किट में जैसा जॉब उपलब्ध होता है वैसे स्किल्ड अभ्यर्थी भी नहीं मिलते I

3. भारत में धार्मिक अन्धविश्वास की जड़ें ज्यादा गहरीं हैं, क्योंकि यहाँ जितना प्रचार प्रसार शिक्षा का नहीं होता उतना धार्मिक कर्मकांडों का होता है I उल्लू को लक्ष्मी देवी का वाहन माना जाता है फिर भी दिवाली पर धनतेरस के दिन ही उल्लू की बलि दी जाती है I ये बात समझ से परे है कि जिसे देवी का वाहन माना है उसी की हत्या हो रही है, आखिर कहाँ कमीं है इस पर विचार अवश्य होना चाहिए I मीडिया भी कम दोषी नहीं है, आप अख़बार में रोज़ देख सकते हैं कि किस तरह की ख़बरों की प्रधानता रहती है I ये भारत का दुर्भाग्य है कि देश में जितने विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय एवं चिक्तिसालय होने चाहिए थे उससे ज्यादा यहाँ धार्मिक स्थल व संस्थान हैं I आप समझ सकते हैं कि ऐसे में भारत को विश्वगुरु कैसे बनायेंगे ?

4. देश में राजनितिक इच्छा शक्ति की कमीं भी नज़र आती है वर्ना इतने कठोर कानून होने के बाबजूद भी वन्य जीवन का शिकार इसलिए धडल्ले से हो पाता है क्योंकि कानून का पालन सख्ती से नहीं कराया जाता I अन्यथा जिस तरह से रेलवे की संपत्ति को कोई भी नुक्सान पहुंचाने से पहले दस बार सोचता है उसी प्रकार यहाँ भी कानून का पालन कराया जा सकता है और जरूरत पड़ने पर कठोर कानून का निर्माण भी I

5. भारत में भ्रस्टाचार की कहीं भी कोई भी कमीं नज़र नहीं आती, जिसके चलते अपराधी वेखौफ़ हो कर अपराध करते हैं और पकडे जाने पर सजा से भी बरी हो जाते हैं I इसे सिस्टम का दोष ही कहेंगे कि आज़ादी से लेकर आज तक वन्य जीवन को पूरी तरह से सुरक्षित नहीं कर पाए हैं, जबकि देश में तकनिकी तौर पर काफी हद तक विकास कर लिया गया है I  

         इन सब कारणों को समझने के बाद हमें उल्लू के बारे में भी जानना जरुरी है I उल्लू एक बेहद शर्मीला व रात्रिचर प्राणी है, जिसे दिन की अपेक्षा रात में स्पष्ट दिखाई देता है I ये अपनी गर्दन को पूरी घुमा देता है तथा इसके कान भी बेहद संवेदनशील होते है, जरा सी आहट मिलने पर भी ये ये अपने शिकार को दबोच लेता है I क्योंकि इसके पैरों में टेड़े नाखूनों वाली चार-चार अंगुलियाँ होती हैं, जिससे इसे शिकार को को दबोचने में विशेष सुविधा मिलती है I ये किसानों का मित्र भी है, क्योंकि ये अपने विशेष भोजन चूहे का शिकार कर्ता है I ये संसार के लगभग सभी भागों में मिलते हैं I  

Facts:-

पक्षी विशेषज्ञ - गोपाल राजू के अनुसार :

एशियाई और विशेष रूप से भारतीय देशों में आस्था, धर्म और अन्धविश्वास के नाम पर दीपावली पास आते ही निरीह पक्षी उल्लू पर संकट मंडराने लगता है। यदि उल्लू के संहार पर रोक नहीं लगी तो जल्दी ही यह भी विलुप्त पक्षियों की श्रेणी में आ जायेगा।

ब्राजील, चाइना,इटली और स्वीडन के पक्षी विशेषज्ञों ने गंभीर चेतावनी दी है कि यदि उल्लू पर्यावण से विलुप्त हो गया तो अन्धाधुन्ध चूहों की बढ़ती फौज अनाज संकट के साथ-साथ घातक बीमारियाँ फैला देगी। उल्लू फसलों को नुकसान पहुँचाने वाले जीवों जैसे चूहे, चमकादड़, टिड्डी, सांप, छछूंदर आदि का सफाया करके फसल की रक्षा करते हैं। उल्लू चूंकि मांसाहारी है इसलिए फसलों को इससे कोई हानि नहीं है।

पौराणिक मान्यताओं में उल्लू को लक्ष्मी जी का वाहन कहा गया है। तांत्रिक, मांत्रिक, ओझा, अघोरी आदि कुछ विशेष मुहूर्तों में सम्मोहन, मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, आरोग्य, धन-धान्य और ऐश्वर्य आदि के लिए उल्लू की बलि देकर उसके प्रत्येक अवयव जैसे आँख, पंजा, मांस, रक्त, पंख, खाल आदि का उपयोग करते हैं।

दूसरे अपनी सूरत,बोली, वीराने में रहने की आदत और मृत्यु का सूचक होने के भय के कारण उसको मनहूस मानकर भी लोग उसको अकारण मार देते हैं । जब से हैरी पाटर फिल्म आयी है तब से इस पक्षी का देखा देखी में और भी सफाया होने लगा है। हाल ही में पकड़े गए दर्जनों पक्षियों के दुश्मनों की बातों से यह खुलासा किया है मध्य प्रदेश के वरिष्ठ वन संरक्षक जे बी लाल ने। धर्म, आस्था, रूढि़ और अन्धविश्वास के कारण वृक्ष, पशु पक्षी पर्यावण आदि का संरक्षण होता है और देखा जाये तो यही सब वस्तुत: विनाश का कारण भी बनते हैं। उल्लू को भी अब कोई ऐसी ही आस्था विलुप्त होने से बचा सकती है।

सुंदर जीवन जीने की चीन की फैंग शुई शैली से उल्लुओं के संरक्षण में बहुत बल मिला है। हम सब भी इसको इस दीपावली में अपनाकर संभवत: उल्लुओं के प्रति फैले भय, भ्रम और अंधविश्वास को दूर करके उनके संरक्षण में मदद उनकी कर सकते हैं। इन दिनों फैंग शुई में उल्लू के प्रमुख गैजेट अनेक रंग-रूप में खूब बिक रहे हैं। यह समृद्धि के सूचक हैं। यदि किसी बीमार को काले रंग का उल्लू फैंग शुई गैजेट उपहार में दिया जाये तो उसको स्वास्थ्य लाभ होने लगता ह। इसी प्रकार पीला गैजेट प्रेम और शांति का प्रतीक है।

सुख-समृद्धि के लिए सुनहरा, परस्पर प्रेम के लिए गुलाबी, सौभाग्य के लिए लाल, बच्चों की एकाग्रता के लिए श्वेत गैजेट उपहार में देने बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस सबसे उल्लू के प्रति फैला भ्रम और भय लोगों के मन से दूर हो कर उनके संरक्षण में मदद मिल सकती है।

पौराणिक महत्त्व :- जिन पक्षियों को रात में अधिक दिखाई देता है, उन्हें रात का पक्षी (Nocturnal Birds) कहते हैं। बड़ी आंखें बुद्धिमान व्यक्ति की निशानी होती है और इसलिए उल्लू को बुद्धिमान माना जाता है। हालांकि ऐसा जरूरी नहीं है पर ऐसा विश्वास है। यह विश्वास इस कारण है, क्योंकि कुछ देशों में प्रचलित पौराणिक कहानियों में उल्लू को बुद्धिमान माना गया है। प्राचीन यूनानियों में बुद्धि की देवी, एथेन के बारे में कहा जाता है कि वह उल्लू का रूप धारकर पृथ्वी पर आई हैं। भारतीय पौराणिक कहानियों में भी यह उल्लेख मिलता है कि उल्लू धन की देवी लक्ष्मी का वाहन है और इसलिए वह मूर्ख नहीं हो सकता है। हिन्दू संस्कृति में माना जाता है कि उल्लू समृद्धि और धन लाता है।

उल्लू की जीव वैज्ञानिक जानकारी –

उल्लू पक्षियों की स्त्रिगिफोर्मेस गण से आते हैं, जिनकी लगभग 200 प्रजातियाँ ज्यादातर एकांकी और रात्रि में शिकार करने वाली अर्थात रात्रिचर होतीं हैं  

References :-

1. Deshbandhu Samachar Patra

2. Dailyhunt Online News.

3. Live Hindustan.com

4. navbharattimes.indiatimes.com

5. Royal Bulletin 

6. Jagran

7. Other sources of information...

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