मंगलवार, 19 नवंबर 2024

ब्रह्मांड में खोजा गया एक नया मॉलिक्यूल "2-Methoxyethanol": डॉ. प्रदीप सोलंकी

2-Methoxyethanol


समुद्र तल से 5000 मीटर ऊपर चाजनटोर पठार पर ALMA एंटेना की यह तस्वीर ALMA अर्ली साइंस की शुरुआत से कुछ दिन पहले ली गई थी। पठार पर उन्नीस एंटेना हैं। श्रेय: अल्मा (ईएसओ/एनएओजे/एनआरएओ)/डब्ल्यू. गार्नियर (अल्मा) एवं अलग-अलग आकाशगंगाओं में मौजूद अलग-अलग कण। | Credit: Phys.Org


हाल ही में वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में 2-Methoxyethanol नामक एक नया अणु खोजा है, जो अपने प्रकार के सबसे जटिल "मेथॉक्सी" अणुओं में से एक है। इसे MIT और अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम ने खोजा, जिन्होंने इस अणु का पृथ्वी पर स्पेक्ट्रम मापा और फिर इसे अंतरिक्ष में ALMA (Atacama Large Millimeter/sub millimeter Array) टेलीस्कोप का उपयोग कर पहचान किया। इससे तारा निर्माण के दौरान अंतरिक्ष में आणविक जटिलता के विकास को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी। 

खोज के मुख्य बिंदु:

  1. अणु का परिचय:

2-Methoxyethanol, जिसमें 13 परमाणु होते हैं, अब तक खोजे गए सबसे बड़े अंतरतारकीय अणुओं में से एक है। यह NGC 6334I नामक तारे के निर्माण क्षेत्र में पाया गया, लेकिन IRAS 16293-2422B जैसे अन्य क्षेत्रों में इसकी मौजूदगी नहीं मिली।

  1. खोज की प्रक्रिया:

पहले पृथ्वी पर इस अणु का रोटेशनल स्पेक्ट्रम मापा गया, जिसमें 8 से 500 गीगाहर्ट्ज़ के माइक्रोवेव से सब-मिलीमीटर वेव तक की फ्रिक्वेंसी शामिल थी। इस डेटा को अंतरिक्ष के सिग्नलों से मिलान करने के लिए उपयोग किया गया।

  1. रासायनिक महत्व:

2-Methoxyethanol जैसे अणु हमें यह समझने में मदद करते हैं कि तारे और ग्रह बनने के दौरान अंतरतारकीय रसायनशास्त्र कैसे विकसित होता है। यह खोज रासायनिक जटिलता और बड़े अणुओं के निर्माण के संभावित मार्गों पर प्रकाश डालती है।

  1. मशीन लर्निंग का उपयोग:

इस अणु को खोजने में मशीन लर्निंग का भी उपयोग किया गया, जिसने वैज्ञानिकों को संभावित अणुओं की पहचान में मदद की।

  1. महत्वपूर्ण शोध:
यह अध्ययन "Rotational Spectrum and First Interstellar Detection of 2-Methoxyethanol" शीर्षक के तहत The Astrophysical Journal Letters में प्रकाशित हुआ है।

इस खोज से अंतरिक्ष में जटिल कार्बन-आधारित अणुओं के निर्माण और उनकी रासायनिक संरचना के बारे में नई जानकारी प्राप्त हुई है। इससे भविष्य में जीवन के लिए आवश्यक कार्बनिक अणुओं की खोज के लिए नई दिशा मिल सकती है

हालांकि 2-Methoxyethanol का अंतरिक्ष में खोजा जाना खगोल रसायनशास्त्र की एक बड़ी उपलब्धि है। यह खोज जटिल अणुओं की उत्पत्ति, उनकी संरचना, और उनके निर्माण के रासायनिक मार्गों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। निम्नलिखित बिंदुओं में इस खोज का विस्तार से विवरण प्रस्तुत है:

1. ALMA का उपयोग और योगदान

  • ALMA (Atacama Large Millimeter/submillimeter Array):

यह टेलीस्कोप चिली के अटाकामा रेगिस्तान में स्थित है। यह इंटरस्टेलर माध्यम में गैस और धूल के कणों के उत्सर्जन का पता लगाने में सक्षम है, जो हमें अणुओं के रोटेशनल स्पेक्ट्रम की पहचान करने की अनुमति देता है।

  • ALMA का उपयोग NGC 6334I नामक क्षेत्र (जिसे कैट्स पॉ मॉडल भी कहते हैं) की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने के लिए किया गया। यहां 25 रोटेशनल लाइन्स का विश्लेषण किया गया, जिससे यह अणु पहचाना गया

2. 2-Methoxyethanol का परिचय

  • संरचना:
    यह एक जटिल ऑर्गैनिक अणु है जिसमें 13 परमाणु शामिल हैं। इसकी संरचना में एक मिथॉक्सी (CH₃O) समूह और एथेनॉल (CH₂CH₂OH) शामिल हैं।
  • अंतरिक्षीय महत्व:

यह अब तक खोजा गया सबसे जटिल "मेथॉक्सी" समूह वाला अणु है, जो जटिल कार्बन यौगिकों के निर्माण के प्रमाण देता है।

  • स्थान:
    यह NGC 6334I (तारों के निर्माण का क्षेत्र) में पाया गया, लेकिन IRAS 16293-2422B जैसे क्षेत्रों में इसकी उपस्थिति नहीं मिली, जो इसके निर्माण के स्थानीय रासायनिक कारकों की ओर इशारा करता है

3. खोज की प्रक्रिया

  • रोटेशनल स्पेक्ट्रम का मापन:

पृथ्वी पर इस अणु का रोटेशनल स्पेक्ट्रम 8 से 500 GHz तक की फ्रिक्वेंसी रेंज में मापा गया।

  • डेटा का मिलान:

ALMA द्वारा अंतरिक्ष से प्राप्त सिग्नल को इस डेटा से मिलाया गया। इसमें 25 से अधिक लाइनों का मेल हुआ, जो इस अणु की पहचान के लिए निर्णायक था


4. मशीन लर्निंग का योगदान

  • शोधकर्ताओं ने मशीन लर्निंग मॉडल का उपयोग संभावित अणुओं की पहचान करने और उनकी जांच को प्राथमिकता देने के लिए किया। 2-Methoxyethanol इस मॉडल द्वारा सुझाए गए जटिल अणुओं में से एक था।

5. रासायनिक मार्ग और प्रासंगिकता

  • निर्माण प्रक्रिया:

यह अणु संभवतः रेडिकल प्रतिक्रियाओं से बना है, जिसमें मेथेनॉल और अन्य छोटे अणु शामिल होते हैं।

  • वैज्ञानिक महत्व:

इसकी खोज से पता चलता है कि कैसे तारों के निर्माण क्षेत्रों में अणु रासायनिक रूप से जटिल बन सकते हैं। यह समझने में भी मदद करता है कि हमारे सौरमंडल के निर्माण से पहले जीवन-आधारित अणुओं का निर्माण कैसे हुआ होगा


6. शोध और प्रकाशन

  • शोधकर्ताओं की टीम:

यह खोज MIT के प्रोफेसर ब्रेट मैग्वायर के नेतृत्व में की गई, जिसमें फ्रांस, फ्लोरिडा, वर्जीनिया और कोपेनहेगन की टीमें शामिल थीं।

  • प्रकाशन:
    यह शोध "Rotational Spectrum and First Interstellar Detection of 2-Methoxyethanol Using ALMA Observations of NGC 6334I" नामक पेपर में प्रकाशित हुआ है। यह The Astrophysical Journal Letters में उपलब्ध है

7. भविष्य की दिशा

  • इस खोज से प्रेरित होकर वैज्ञानिक अन्य जटिल अणुओं की खोज करेंगे।
  • यह खोज यह भी दर्शाती है कि अंतरतारकीय क्षेत्रों में जीवन के लिए संभावित कार्बनिक अणु मौजूद हो सकते हैं।

References

1. SciTechDaily space_999.html) Scientific Journal on 2-Methoxyethanol Discovery - IOPScience

  https://scitechdaily.com/cosmic-revelation-mit-uncovers-a-new-space-molecule/                2. SpaceDaily https://www.spacedaily.com/reports/New_molecule_identified_in_interstellar_space_999.html 

Tag : #universe #astronomy #alma 

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लेखक:-

डॉ. प्रदीप सोलंकी 

  " मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ। " - डेसकार्टेस 

विज्ञान शिक्षक, शिक्षाविद, प्राणिविद, पर्यावरणविद, ऐस्ट्रोनोमर, करिअर काउन्सलर, ब्लॉगर, यूट्यूबर, एवं पूर्व सदस्य  टीचर्स हैन्ड्बुक कमिटी सीएम राइज़ स्कूल्स एवं पीएम श्री स्कूल्स परियोजना तथा पर्यावरण शिक्षण समिति, माध्यमिक शिक्षा मण्डल भोपाल मध्यप्रदेश  





रविवार, 14 जनवरी 2024

मां इजाबेल दी गामा (Isabel da Gama) और भारतीय मसाले तथा वास्कोडिगामा की भारत यात्रा के मायने:-

वास्को दी गामा (Vasco da Gama) की भारत यात्रा का उसकी मां इजाबेल दी गामा (Isabel da Gama) से बहुत ही गहरा संबंध है। वास्को दी गामा बचपन में जब भी अपने घर में मां के हाथ का बना खाना खाता था तो उसे एक अलग ही स्वाद और एहसास होता था। आखिर उसने एक दिन उससे पूछ ही लिया कि मां आपके हाथ के बनाये खाने में ऐसी क्या बात है कि वो सबसे अलग और स्वादिष्ट तो होता ही है परंतु उसकी महक और सुवासिता दूर दूर तक रहती है। ऐसी क्या बात है माँ.....तब उसे मां ने बताया कि बेटा इस खाने में दूर देश भारत से आये एक मसाले का कमाल है जिसे कालीमिर्च कहते हैं। बेटा यह मसाला बहुत ही कीमती है जो मंहगी धातुओं से भी ज्यादा मूल्यवान है। तब वास्को ने अपनी मां से कहा कि मां मैं उस देश में जरूर जाऊंगा जो मेरी मां के हाथ से बने खाने के स्वाद को बढ़ाता है। माँ ने कहा कि बेटा वो यहां से बहुत दूर है और समुद्र के रास्ते बेहद कठिन और रहस्यमय हैं। उस समय भाषा की समस्या के साथ साथ समुद्री लुटेरों का भी आतंक था। लेकिन उसी समय वास्कोडिगामा ने मां से वादा किया कि मां चाहे कुछ भी हो जाये में जरूर जाऊंगा। और उस समय पूरी दुनियां में भारतीय मसालों में कालीमिर्च और इलाइची की धूम मची हुई थी। इस कारण समुद्री व्यापार के नए नए रास्ते खोजने के लिए सरकार आम जनता को प्रोत्साहित करती थी और समूह बना कर समुद्री रास्ते खोजने के लिए दल भेजती थी। इसके लिए धन की व्यवस्था सरकार खुद करती थी। 

अभी हम जो लाल मिर्च का उपयोग मसालों में करते हैं वो तो काली मिर्च का विकल्प है जो पुर्तगालियों ने महंगी कालीमिर्च के स्थान पर उपयोग में लेना शुरू कर दिया था। जो उनके साथ साथ हमारे द्वारा भी उपयोग में लेना शुरू हो चुका था। आज भी लाल मिर्च का उपयोग भारतीय मसालों में बहुतायत में होता है और अपेक्षाकृत कालीमिर्च से बहुत अधिक सस्ती भी हैं। वास्को डी गामा भारत से काली मिर्च पुर्तगाल ले जाते थे। उस समय तक भारत में हरी मिर्च की खेती नहीं होती थी। भारत में हरी मिर्च को पुर्तगाली ही 16 वीं सदी में लेकर आए। आज भारत हरी मिर्च (मलयालम में मुलाकू) का सबसे बड़ा उत्पादक भी है।

तत्कालीन समय में भारत से कालीमिर्च का व्यापार सिल्क रुट के अलावा अन्य समुद्री रास्तों से भी वस्तु विनिमय के रूप में होता था। उस समय भारत पूरी duniyan की 24 फीसदी व्यापार की हिस्सेदारी का अकेला मालिक होता था। लेकिन धीरे धीरे भारत पर मसालों के दबाब के चलते पूरी duniyan की निगाहें टेढ़ी होती चली गईं और समुद्रों पर राज करने वाले देशों ने भारत पर कब्जा करना शुरू कर दिया। यूरोपीय देशों के पास जहाज बनाने की तकनीकी ने भारत की ग़ुलामी के रास्ते खोल दिये और परिस्थितियों में बदलाव आता चला गया। यह सब अब इतिहास का हिस्सा है। आज भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति धीरे धीरे सुदृढ़ होती जा रही है और विश्व की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुकी है। चलिए अब बात करते हैं वास्को दी गामा की....

वास्को दी गामा एक पुर्तगाली खोजकर्ता और समुद्री यात्री थे जो 8 जुलाई 1497 को भारत की खोज में 20 मई 1498 में भारत के मालबार तट पर केरल के कोझीकोड जिले के कालीकट (काप्पड़ गांव) में आगमन करने वाले पहले यूरोपीय यात्री बने। उनकी इस यात्रा में 170 नाविकों के दल के साथ चार जहाज लिस्बन से रवाना हुए। भारत यात्रा पूरी होने पर मात्र 55 आदमी ही दो जहाजों के साथ वापिस पुर्तगाल पहुंच सके। वह यूरोप से भारत सीधी यात्रा करने वाले जहाजों के कमांडर थे, जो केप ऑफ गुड होप, अफ्रीका के दक्षिणी कोने से होते हुए भारत के समुद्री तट तक पहुंचे थे। वह मोजाम्बिक, मोम्बासा, मालिन्दी होते हुए भारत के कालीकट बंदरगाह पहुंचे। "इंडियाज साइंटिफिक हेरिटेज" नाम की बुक में सुरेश सोनी ने पुरातत्वविद डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर के हवाले से लिखा है कि वास्को डी गामा भारत में एक खोजी व्यापारी की ही तरह आये थे, मगर एक गुजराती व्यापारी का पीछा करते हुए वह यहां पहुंचे। यहीं से कुछ दूर कोच्ची में वास्को की कब्र है। यहां से तीन बार वे पुर्तगाल गए और आये। वास्को के इंडिया आने के बाद पुर्तगाली भी भारत में आये और गोवा में उन्होंने अपना साम्राज्य स्थापित किया। इससे पहले, भारत के सागरीय रास्तों से यूरोपीय व्यापारियों के लिए रास्ते खोजने का प्रयास कई बार विफल हुआ था।   

वास्को दी गामा की भारत यात्रा का मुख्य उद्देश्य भारतीय समुद्री व्यापार के लिए नए रास्ते खोजना था, जिससे पुर्तगाल को मालबार तट से साम्राज्यवादी खजाने और व्यापारिक लाभ मिल सकते थे। उनके इस सफल प्रयास ने भारत और यूरोप के बीच संबंधों को एक नया मोड़ दिया और पुर्तगाली ब्राउनी से समुद्री रास्तों के रूप में ज्ञात होने वाले रास्ते पर भारत के साथ नए यूरोपीय व्यापारिक संबंधों की शुरुआत की। 

वास्कोडिगामा की यात्रा का विवरण कुछ इस प्रकार से है कि...














वे लिस्बन से यात्रा शुरू कर के मोजाम्बिक पहुंचे। यहां के सुल्तान की मदद से 20 मई 1498 को वे कालीकट के तट पर पहुंच गए। वहां किसी तरह से उन्होंने कालीकट के राजा से बातचीत और उपहार देकर उपकृत किया तथा उनसे कारोबार करने की संधि भी कर ली। 1502 को वास्को डी गामा फिर भारत आए और कोच्चि के राजा से व्यापार करने का समझौता किया। इसके तहत मसालों का कारोबार बनाए रखने की संधि हुई। 1524 में वास्को डी गामा तीसरी बार भारत पहुंचे और यहीं उनकी 24 मई 1524 को मौत हो गई। पहले उन्हें कोच्चि में ही दफनाया गया। बाद में 1538 में उनकी कब्र खोदी गई और वास्को डी गामा के अवशेषों को पुर्तगाल ले जाया गया। लिस्बन में आज भी उस जगह एक स्मारक है जहां से वास्को डी गामा ने पहली भारत यात्रा शुरू की थी। 

यहां आपको फिर से बता दें कि किसी भी व्यक्ति के बच्चों  की सफलता में उनके मां बाप की प्रेरणा और आशीर्वाद का बहुत महत्व होता है। इसी क्रम में वास्को की मां का भी अहम रोल था। वास्को दी गामा की मां का नाम इजाबेल दी गामा (Isabel da Gama) था। उनकी मां ने अपने पुत्र की समुद्री खोजी यात्रा के संचालन में न सिर्फ प्रोत्साहित किया वल्कि उसके साथी यात्रियों के लिए समर्थन भी प्रदान किया। उनकी सफलता के बाद, वास्को दी गामा ने भारतीय समुद्री राष्ट्रों और यूरोपीय व्यापारियों के बीच नए संबंधों की नींव रखी।

क्या हुआ इंडिया आने का फायदा:
वास्को डी गामा की इस खोज ने पश्चिमी देशों के लिए भारत के दरवाजे खोल दिए। इस खोज के साथ वास्को डी गामा अपने साथ ईसाई-मुस्लिम संघर्ष भी साथ लेकर आए, जिसके चलते कालीकट राज्य को पुर्तगाल के साथ सैन्य संघर्ष करना पड़ा। अपनी इस खोज के पूरी होने के बाद वास्को डी गामा को पुर्तगाल में राजकीय सम्मान दिया गया और उसे राजकीय उपाधि भी दी गई। 

यह भी रोचक है कि वास्को दी गामा की यात्रा के बाद भारतीय समुद्री राष्ट्रों और पुर्तगाली  साम्राज्यवाद के बीच भयंकर संघर्ष शुरू हुआ, जिसका परिणाम भारत के प्राचीन व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों की तोड़फोड़ के रूप में हुआ।

सूचना स्रोत

Internet Website & Newspapers.

Disclaimer: - इस लेख में स्वयं की मौलिकता एवं विभिन्न जानकारियों की सूचना के लिए Internet एवं विभिन्न समाचार पत्रों की वेबसाईट्स से ली गई सामग्री का भी उपयोग किया गया है। इस लेख का किसी भी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधियों से कोई भी लेना देना नहीं है। सिर्फ लोगों तक जानकारी के प्रसार हेतु इस लेख को लिखा गया है। इसका संबंध किसी की भावनाओं को आहत करने एवं कॉपीराइट के उल्लंघन के लिए बिल्कुल भी नहीं है।


 



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